भारत की सशस्त्र सेनाएं अब वैश्विक रक्षा कूटनीति में सक्रिय भूमिका निभा रही
पिछले कुछ वर्षो में भारत सिर्फ सवाल उठाने के बजाय आगे बढ़कर समाधान देने वाले देश के रूप में उभरा है। यही समय की जरूरत है। वैश्विक परिदृश्य चुनौतीपूर्ण है लेकिन भारत जैसी उभरती शक्ति के लिए इसमें अवसर हैं जिन्हें भुनाकर अपना स्थान लेना ही होगा।
हर्ष वी पंत। पिछले हफ्ते अफगानिस्तान को लेकर अपने पारंपरिक रवैये से इतर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के नेतृत्व में भारत ने कई देशों के साथ वार्ता की अगुआई की। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत इस मसले में अपनी भूमिका को कमजोर नहीं पड़ने देना चाहता है। तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान की तरफ से आ रही चुनौतियां क्षेत्रीय स्तर पर व्यापक प्रतिक्रिया और सुरक्षा की नई व्यवस्था की मांग कर रही हैं। आतंकवाद, खुली सीमा और ड्रग तस्करी जैसी समस्याओं से कोई देश अकेले नहीं लड़ सकता है। क्षेत्रीय स्तर पर गठजोड़ की जरूरत है और इसके लिए सुरक्षा एजेंसियों को मिलकर काम करना होगा। क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में भारत का नेतृत्व अहम है। भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ-साथ यूरेशिया की भी बड़ी ताकत है। भारत कुछ ऐसी शक्तियों में से है, जो एक ओर रूस और ईरान की प्राथमिकताओं को साध सकता है, तो दूसरी ओर पश्चिमी देशों को भी संभाल सकता है।
सिर्फ अफगानिस्तान मामले तक ही भारत की सक्रियता सीमित नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले कुछ साल में भारत ने अपने हितों के लिए क्षेत्रीय एवं वैश्विक मसलों पर सक्रियता बढ़ाई है। भारत को वैश्विक प्रशासन के मौजूदा स्वरूप से फायदा मिला है, लेकिन भारत ने यह भी रेखांकित किया है कि मौजूदा वैश्विक प्रशासनिक व्यवस्था हमारी चिंताओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं करती है। किसी भी उभरती ताकत का व्यवहार ऐसा ही होना चाहिए। वैश्विक संस्थान किसी शक्ति को उभरने में मदद करते हैं, लेकिन समय के साथ उन्हीं में से बहुत सी व्यवस्थाएं वैश्विक संतुलन में होते बदलाव के साथ नहीं चल पाती हैं। इसलिए मुख्य रणनीति कुछ व्यवस्थाओं को बनाए रखने और कुछ में बदलाव की रहती है। भारत ने अब यह समझ लिया है कि वैश्विक व्यवस्था में सहयोगी मात्र होने के बजाय उसे अब नेतृत्वकर्ता की भूमिका में आना होगा। इसके लिए प्रतिबद्धता और संसाधनों की जरूरत होगी। वैश्विक उत्पादों का लाभार्थी मात्र होने के बजाय इन्हें बनाने और संभालने में भी भूमिका निभानी होगी। हाल के दिनों में भारत ने अपने कई फैसलों से इस तस्वीर की बानगी पेश भी की है। जरूरत सिर्फ इतनी है कि देश को इसी मंशा के साथ इसे बरकरार रखना भी होगा।
भारत को अग्रणी ताकत बनाने की भारतीय नीति निर्माताओं की इच्छा में इसकी झलक भी मिलती है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है कि भारत अब संतुलन बनाने वाली शक्ति ही नहीं, बल्कि नेतृत्वकर्ता बन रहा है। लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में पीछे रहने के बाद अब भारत अपनी सक्रियता बढ़ा रहा है। पिछले कुछ वर्षो में भारत की विदेश नीति में बदलाव दिखा है। ‘लुकिंग ईस्ट’ से ‘एक्टिंग ईस्ट’ की नीति पर बढ़ते हुए भारत ने कुछ पारंपरिक सीमाओं को तोड़ा है और दक्षिण एशिया से बाहर अपना प्रभाव बढ़ाया है। भारत की सशस्त्र सेनाएं अब वैश्विक रक्षा कूटनीति में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
[प्राध्यापक, किंग्स कॉलेज, लंदन]