Independence Day 2022: परिवारवाद और भ्रष्टाचार पर कड़े प्रहार की तैयारी
Independence Day 2022 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन के माध्यम से महत्वाकांक्षी एजेंडे को आगे रखते आए हैं। इस बार यह अवसर और भी खास था क्योंकि देश अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा था।
उमेश चतुर्वेदी। लाल किले की प्राचीर से चाहे कोई भी प्रधानमंत्री हो, वह देश को समावेशी संदेश देने का प्रयास करता है। इसके साथ ही वह अपनी सरकार की आगामी नीतियों और कार्यक्रमों की झलक भी प्रस्तुत करता है। इन अर्थो में देखें तो 76वें स्वतंत्रता दिवस के मुख्य समारोह में लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन सभी कसौटियों पर खरा और समावेशी भाषण दिया। लेकिन इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने एक और बड़ी बात कही। उन्होंने परिवारवाद पर जोरदार हमला बोला। इतना ही नहीं, उन्होंने इसे एक बड़ी बुराई बताते हुए इससे निपटने में देश का सहयोग मांगा है। इसका संदेश यह है कि आने वाले दिनों में राजनीति में गहरे तक पैठ चुकी इस बुराई से सरकारी स्तर पर भी निबटा जाएगा और भाजपा इससे राजनीतिक स्तर पर भी जूङोगी।
प्रधानमंत्री ने अपने समावेशी भाषण में राजनीति के परिवारवाद को जोड़ते हुए कहा, ‘जब मैं भाई-भतीजावाद, परिवारवाद की बात करता हूं तो लोगों को लगता है कि मैं केवल राजनीतिक क्षेत्र की बात कर रहा हूं। दुर्भाग्य से राजनीति की इस बुराई ने हिंदुस्तान की सभी संस्थाओं में परिवारवाद को पोषित कर दिया है। इससे मेरे देश की प्रतिभा को नुकसान होता है। मैं भाई-भतीजावाद के खिलाफ जंग में युवाओं का साथ चाहता हूं।’ लाल किले से प्रधानमंत्री ने बेशक राजनीति के साथ ही दूसरे क्षेत्रों में जारी परिवारवाद पर भी निशाना साधा, लेकिन यह भी सच है कि जब तक राजनीति से इस बुराई को दूर नहीं किया जाएगा, समाज के अन्य क्षेत्रों से इसे दूर करना आसान नहीं होगा।
सरकारी तंत्र में गहरी जड़ें
यह सच है कि सरकारी तंत्र में परिवारवाद गहरे तक जड़ें जमा चुका है। सरकारी तंत्र का प्रभावी तबका अपने बच्चों को ऊंची नौकरियां दिलाने के लिए अपनी ओर से ऐसा प्रयास करता है, ताकि संबंधित परीक्षा में उसके स्वजनों को अच्छे अंक मिल सकें। सरकारी तंत्र में पक्की नौकरियां कम होती गई हैं। लेकिन यह भी सच है कि तृतीय श्रेणी की अब भी अस्थायी तौर पर जितनी नौकरियों की जगह बनती है, उनमें सामान्य नागरिक को मौका कम ही मिल पाता है, उस दफ्तर विशेष में पहले से जमे लोग अपने परिवार और रिश्तेदारों के बच्चे-बच्चियों के लिए किसी तरह स्थान का जुगाड़ कर लेते हैं। उच्च न्यायपालिका में जो कालेजियम व्यवस्था है, उसे ध्यान में रखकर न्यायतंत्र के रसूखदार लोग अपने परिवारजनों की कानून की पढ़ाई और प्रैक्टिस शुरू कराते हैं और इसी व्यवस्था का फायदा उठाकर अपने बच्चों को उच्च न्यायपालिका में स्थापित करने में किंचित सफल भी हो जाते हैं।
राजनीति में परिवारवाद
राजनीति में परिवारवाद तो खुला खेल हो गया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी में यह धारणा स्थापित ही हो गई है कि पूरी पार्टी के लोगों के बीच यदि कोई एका बनाए रख सकता है तो वह गांधी-नेहरू परिवार का ही व्यक्ति हो सकता है। यही वजह है कि नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी होते हुए राजीव गांधी, संजय गांधी और सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी में ही कांग्रेस की उम्मीद दिखती है। प्रियंका गांधी से होते हुए यह बात उनके बच्चों तक जाने वाली है। दिलचस्प यह है कि उसका समर्थक वर्ग भी राजतंत्र की प्रजा की भांति भक्तिभाव से इस परिवारवादी व्यवस्था के प्रति नतमस्तक नजर आता है।
रही बात क्षेत्रीय और छोटी राजनीतिक पार्टियों की, तो वे अब प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चल रही हैं। समाजवादी पार्टी हो या राष्ट्रीय जनता दल या तेलंगाना राष्ट्र समिति या फिर वाइएसआर कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस हो या फिर इंडियन नेशनल लोकदल हो या तृणमूल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा हो या फिर तेलुगु देशम या जनता दल सेक्युलर, देश में जिधर नजर दौड़ाइए, सभी स्थानीय और क्षेत्रीय पार्टियों पर उनके संस्थापकों के परिवार या बेटे-बेटियों का कब्जा है। दिलचस्प यह है कि इनके समर्थक वर्ग को भी अपनी पार्टी का तारण परिवारों के लोगों में ही नजर आता है। चाहे वे कितने भी अयोग्य, अनपढ़ या कुपढ़ क्यों न हों। उन्हीं पार्टियों में एक से एक दिग्गज और तपे-तपाए लोग हैं, लेकिन वे कभी नेतृत्व नहीं कर सकते।
इसमें दो राय नहीं है कि कई कारणों से हमारे देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा भी खूब मिला है। आखिर क्या वजह है कि ज्यादातर पार्टियों के संस्थापक पहले जैसे तैसे गुजारा कर रहे थे, लेकिन सत्ता में आने के बाद उनके परिवार की संपत्ति लाखों गुना बढ़ गई। इस पर जब भी सवाल उठता है तो इन पार्टियों का समर्थक वर्ग इसे बदले की कार्रवाई मानता है, भले ही वह गरीबी में जीने को अभिशप्त हो। लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने बड़ी समझदारी से परिवारवाद पर निशाना साधने के साथ ही भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया और इस तरह यह जताने की कोशिश की, कि परिवारवाद और भ्रष्टाचार एक सिक्के के दो पहलू हैं। उन्होंने कहा कि अगर समय रहते हम नहीं चेते तो हमारी चुनौतियों, विकृतियों और बीमारियों के कारण आगामी वर्षो में ये सभी विकराल रूप धारण कर सकते हैं। इनमें दो विकृतियां तो मुख्य रूप से शामिल हैं, भ्रष्टाचार और परिवारवाद-भाई भतीजावाद।
प्रधानमंत्री को भान है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ चेतना राजनीतिक दलों के समर्थकों की उस परिवार के प्रति सहानुभूति के चलते नहीं जाग पाती, शायद यही वजह है कि उन्होंने कह दिया कि उनके लिए चिंता का विषय है कि देशवासियों में भ्रष्टाचार के खिलाफ नफरत तो दिखती है, लेकिन भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई चेतना नहीं दिखती। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस 15 अगस्त को लाल किले के अपने भाषण से यही चेतना जगाने की कोशिश की है। लाल किले से बोलने का मतलब है कि अब प्रधानमंत्री इस बुराई के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की मन: स्थिति में हैं। जाहिर है कि आने वाले दिनों में इसके नतीजे और गहरे दिखेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार