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भारतीय लोकतंत्र में युवाओं की बढ़ती भूमिका, राहुल गांधी भी है पसंद!

JagranSpecial वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में आंख मूंदकर कोई भी पार्टी यह न तो कह सकती है और न ही मान सकती है कि युवा उसे ही पसंद करेंगे। इस बार लाइन में डेढ़ करोड़ नए मतदाता होंगे।

By Nitin AroraEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 11:53 AM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 11:53 AM (IST)
भारतीय लोकतंत्र में युवाओं की बढ़ती भूमिका, राहुल गांधी भी है पसंद!
भारतीय लोकतंत्र में युवाओं की बढ़ती भूमिका, राहुल गांधी भी है पसंद!

लोकमित्र, वरिष्ठ पत्रकार। इस बार के आम चुनाव पिछले तमाम चुनावों के मुकाबले कहीं ज्यादा जटिल होंगे। इसकी कई ठोस वजहें हैं। इस बार करीब डेढ़ करोड़ ऐसे नए मतदाता होंगे जो पहली बार अपने मत का इस्तेमाल करेंगे। ये विशुद्ध रूप से 21वीं सदी में पैदा हुए मतदाता हैं, क्योंकि इन्होंने हाल ही में अपनी उम्र के 18 बसंत पूरे किए हैं।

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वर्ष 2014 के बाद जिन भारतीयों ने मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराया है, उनकी संख्या 7.43 करोड़ है। ये भी पहली बार किसी आम चुनाव का हिस्सा बनेंगे। हालांकि ये पहली बार मतदान नहीं करेंगे। पिछले पांच सालों में इनमें से ज्यादातर ने कहीं न कहीं, कभी न कभी अपने मत का कम से कम एक बार तो इस्तेमाल किया ही है।

चाहे वह फिर किसी विधानसभा चुनाव में किया हो, किसी उपचुनाव में किया हो या फिर नगर निगम या दूसरी लोकल बॉडी के चुनावों में किया हो। मगर ये तमाम मतदाता आम चुनाव में पहली बार ही वोट डालेंगे।

इस तरह देखें तो महज डेढ़ करोड़ नहीं, बल्कि करीब नौ करोड़ ऐसे मतदाता हैं जो आम चुनावों के लिए बिल्कुल नए हैं, क्योंकि ये पहली बार लोकसभा चुनाव में शिरकत करेंगे। वैसे 90 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं में से ये नौ करोड़ मतदाता बहुत ज्यादा नहीं होते, बल्कि देश की कुल मतदाता संख्या के 10 प्रतिशत ही हैं।

लेकिन इस लिहाज से ये बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वोट देने का इनका तरीका और इनकी आदत अभी तक फिक्स नहीं हैं और न ही किसी चुनावी विश्लेषक के पास इसका पूर्वानुमान है।

ये पहली बार वोट देने वाले मतदाता इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि भले पिछले पांच सालों से इनके इर्दगिर्द तमाम राजनीतिक बहसें होती रही हों, लेकिन चुनावशास्त्रियों की मानें तो ये ऐसे मतदाता हैं जिनका इरादा पहले से किसी पार्टी या उम्मीदवार को वोट देने के लिए दृढ़ नहीं होता।

हो सकता है कई ऐसे नौजवान मतदाताओं ने आज की तारीख में तय कर रखा हो कि वे इस पार्टी को मत देंगे, लेकिन चुनाव विशेषज्ञों के मुताबिक ये ऐसे मतदाता हैं जो अंतिम क्षणों में भी अपना इरादा बदल सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे ये मल्टीप्लेक्स में कोई फिल्म देखने जाते हैं, लेकिन अगर अंतिम समय में किसी ने जोर देकर किसी दूसरी फिल्म की टिकट खरीद ली तो ये उसे भी आराम से देख लेते हैं।

इसीलिए ये मतदाता दूसरे मतदाताओं से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। ये इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनमें से करीब 95 फीसद तक अपने मत का इस्तेमाल जरूर करेंगे, बशर्ते वोट डालने वाले दिन ये उस जगह मौजूद हों, जहां इनका वोट डाला जाना है।

विशेषज्ञों के मुताबिक ये नए मतदाता बेहद उत्साही हैं और किसी भी कीमत पर अपने वोट का इस्तेमाल करना चाहेंगे। अब अगर मान लिया जाए कि इन करीब नौ करोड़ मतदाताओं में से छह या सात करोड़ ने भी मतदान किया, तो इनका वोट बड़े पैमाने पर नतीजों को अपने प्रभाव का जामा पहना सकता है, क्योंकि हिंदुस्तान में किसी भी पार्टी को मिलने वाले अधिकतम मत 20 करोड़ से कम होते हैं। अगर किसी पार्टी के लिए स्विंग फैक्टर बनने वाले वोटों की विशुद्ध गिनती करें तो ये महज ढाई से तीन करोड़ ही होते हैं।

कहने का मतलब यह कि ये ढाई से तीन करोड़ मत किसी भी पार्टी को विजेता या पराजित होने वाली पार्टी में तब्दील कर देते हैं। ऐसे में सोचिए कि ये युवा मतदाता कितने महत्वपूर्ण है, क्योंकि भले ये संगठित वोटरों की तरह एकतरफा वोट न करें, लेकिन इनकी भी मतदान प्रक्रिया में एक स्वाभाविक सामूहिकता होती है।

वर्ष 2014 में भाजपा को करीब 17 करोड़ वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को करीब साढ़े 10 करोड़ वोट मिले थे। अब अगर इन दोनों ही पार्टियों को मिलने वाले स्विंग वोटों को देखें तो भाजपा को करीब चार करोड़ स्विंग वोट मिले थे और कांग्रेस की करीब 3.8 करोड़ मत निगेटिव स्विंग हुए थे। महज इस वजह से साल 1984 के बाद भाजपा अकेली ऐसी पार्टी बनकर उभरी थी, जिसे सरकार बनाने के लिए किसी के साथ की जरूरत नहीं थी।

सरकार बनाने के लिए कुल 272 सीटों की दरकार होती है और भाजपा को पिछले आम चुनाव में 283 सीटें मिली थीं। वह अकेले दम पर प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली पार्टी बन गई थी।

इन तमाम तथ्यों के बाद यह कहने की जरूरत नहीं रह गई कि इस बार के लोकसभा चुनाव में युवा मतदाता बड़ी ऐतिहासिक भूमिका निभाएंगे। आम तौर पर यह माना जा रहा है कि युवाओं का अभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मोह भंग नहीं हुआ है, बाजवूद इसके कि पिछले पांच साल रोजगार के नजरिये से सबसे खराब साल रहे हैं। इसी तरह दावे के साथ सिर्फ राजनीतिक पार्टियां ही यह कह सकती हैं कि राहुल गांधी को युवा बिल्कुल नहीं पसंद कर रहे।

तात्पर्य यह कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में आंख मूंदकर कोई भी पार्टी यह न तो कह सकती है और न ही मान सकती है कि युवा उसे ही पसंद करेंगे। यही कारण है कि कांग्रेस हो या भाजपा, या फिर तमाम क्षेत्रीय पार्टियों ने भी अपने चुनावी कार्यक्रमों को युवाओं को ही फोकस किया है। इसलिए दुनिया के सबसे युवा देश भारत के युवा मतदाता ही इन आम चुनाव में ऐतिहासिक भूमिका निभाएंगे।


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