छत्तीसगढ़ में इंटरनेट मीडिया में नक्सलियों की बढ़ी सक्रियता, फोर्स और पुलिए के लिए खोला रास्ता
अलग-अलग नामों से नक्सली इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर सक्रिय हो गए हैं। इससे उनका काम आसान हुआ या नहीं यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन पुलिस का काम जरूर आसान हो गया है। पुलिस ऐसे नंबरों की निगरानी कर रही है जो जंगल में सक्रिय हैं।
अनिल मिश्रा, जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर में अब तक दस्ती खत भेजने और संचार के आदिम साधनों पर भरोसा करने वाले नक्सली इन दिनों इंटरनेट मीडिया का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने छद्म नाम से वाट्सएप ग्रुप बना लिए हैं, जिनमें कैडर और ग्रामीणों के अलावा वामपंथी विचारधारा वाले अन्य लोगों को भी जोड़ रहे हैं। अलग-अलग नामों से नक्सली इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर सक्रिय हो गए हैं। इससे उनका काम आसान हुआ या नहीं यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन पुलिस का काम जरूर आसान हो गया है। पुलिस ऐसे नंबरों की निगरानी कर रही है जो जंगल में सक्रिय हैं और संदेह के दायरे में हैं। अफसरों को उम्मीद है कि फोन नंबर के जरिए बड़े नक्सल नेताओं की टोह मिल सकती है।
फोन नंबर ट्रेस कर अब नक्सलियों तक पहुंचना होगा आसान
नक्सली संचार और परिवहन के साधनों का हमेशा विरोध करते रहे हैं। मोबाइल टावरों का उड़ाने की कई घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं, पर अब अपनी बात मीडिया तक पहुंचाने के लिए जंगल में मोबाइल टावरों के सिग्नल तलाश रहे हैं। दरअसल, बीते कुछ वर्षों में अंदरूनी इलाकों तक फोर्स की घुसपैठ बढ़ी है। इससे दबाव बढ़ा है। हाल के दिनों में नक्सलियों के कैंप से मिले कुछ पत्रों में भी इस बात का उल्लेख है कि फोर्स के बढ़ते दबाव की वजह से सूचनाओं का आदान-प्रदान मुश्किल होता जा रहा है। इसके विकल्प के तौर पर उन्होंने इंटरनेट मीडिया को अपनाया है।
छद्म नाम से वाट्सएप ग्रुप बनाकर कैडर व ग्रामीणों को जोड़ रहे
कुछ साल पहले तक नक्सली प्रिंटेड लेटरपैड पर हाथ से लिखा खत मीडिया को भेजते थे। कंप्यूटर व प्रिंटर आया तो प्रिंट किया हुआ खत हरकारे के जरिए जंगल से बाहर भेजते थे। अब वाट्सएप संदेश भेजे जा रहे हैं। उनके वीडियो, आडियो, पोस्टर सबकुछ आनलाइन चलने लगे हैं। नक्सल रणनीति में इस बदलाव से पुलिस खुश है। उसे पता है कि अब महत्वपूर्ण नक्सल नेताओं का फोन ट्रेस करने से ही उनका पता मिल जाएगा। नक्सलियों ने फोर्स के खिलाफ प्रोपागंडा वार में इंटरनेट मीडिया को तरजीह देने की रणनीति बनाई है।
बस्तर के आइजी सुंदरराज पी ने कहा कि हम तो चाहते ही हैं कि वे लोग ज्यादा से ज्यादा मोबाइल व इंटरनेट का उपयोग करें। हमारी दिक्कत यही थी कि वह फोन का इस्तेमाल नहीं करते। फोन का उपयोग करेंगे तो नंबरों को ट्रेस कर उन तक पहुंच पाएंगे। हम उन नंबरों की निगरानी कर रहे हैं जिनके बारे में संदेह है कि उनका उपयोग नक्सली कर रहे हैं।