Move to Jagran APP

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले से हिंदी की अनिवार्यता हटाने का विरोध बढ़ा

हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो पूरे देश को एक सूत्र में बांध सकती है। पूरे देश के लोग इसे समझते भी हैं। हिंदी का विरोध पूरी तरह से सियासी है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 13 Jun 2019 10:42 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jun 2019 01:40 AM (IST)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले से हिंदी की अनिवार्यता हटाने का विरोध बढ़ा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले से हिंदी की अनिवार्यता हटाने का विरोध बढ़ा

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले से हिंदी की अनिवार्यता खत्म करने के फैसले पर विवाद और तेज होता जा रहा है। बुधवार को दो सदस्यों के विरोध के बाद गुरुवार को कमेटी के एक और सदस्य मसौदे में बदलाव के खिलाफ खुलकर सामने आए। उन्होंने सवाल किया कि जब हिंदी को संविधान में ही राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही गई थी तो फिर बदलाव क्यो?

loksabha election banner

खासबात यह है कि नई शिक्षा नीति के मसौदे में किए गए बदलाव का विरोध नीति बनाने वाली कमेटी के बीच से ही हो रहा है। हालांकि इसकी शुरुआत डॉ कृष्ण मोहन त्रिपाठी और डॉ. आरएस कुरील ने की थी। अब इस विरोध में कमेटी के सदस्य और जेएनयू के स्कूल ऑफ लैंग्वेज (भाषा) विभाग के प्रोफेसर मजहर आसिफ भी तीसरे सदस्य के रूप में शामिल हो गए हैं।

दैनिक जागरण से बातचीत में प्रोफेसर मजहर ने कहा कि नीति में त्रिभाषा फार्मूला लंबी चर्चा और राष्ट्रहित का ध्यान रखते हुए तैयार किया गया था। इससे पहले भी शिक्षा नीति बनाने को लेकर गठित की गई सभी कमेटियों ने हिंदी को शामिल करते हुए त्रिभाषा फार्मूला को अपनाने का सुझाव दिया था। मौजूदा कमेटी ने भी संविधान और पूर्व की कमेटियों के मत से सहमति जताते हुए इस बात को आगे बढ़ाया है।

उन्होंने कहा कि अफसोस की बात है कि देश की आजादी के वर्षो बाद भी हमारी कोई अपनी एक भाषा नहीं है। आखिर हमारी कोई संपर्क भाषा तो होनी ही चाहिए। नई शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले के तहत हिंदी को इसी मंशा से शामिल किया गया था।

उन्होंने कहा कि मसौदे पर चर्चा के दौरान उन्होंने यह भी सुझाव दिया था कि उत्तर भारत के लोग दक्षिण भारत की किसी एक स्थानीय भाषा पढ़ें, जबकि दक्षिण भारत के लोग उत्तर भारत की किसी एक स्थानीय भाषा पढ़ें। यह ज्यादा अच्छा होगा।

उन्होंने कहा कि हिंदी ही एक ऐसी भाषा है, जो पूरे देश को एक सूत्र में बांध सकती है। पूरे देश के लोग इसे समझते भी हैं। हिंदी का विरोध पूरी तरह से सियासी है।

इसलिए हो रहा है विरोध

नई शिक्षा नीति के त्रिभाषा मसौदे में बदलाव का यह विरोध इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि इसमें हिंदी की अनिवार्यता को खत्म कर इसकी जगह सभी को अपनी पसंद की भाषा पढ़ने की छूट दे दी गई है। जबकि नीति आयोग के मूल मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले के तहत हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाना था।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.