जापान की कामयाबी से चीन, फ्रांस व स्पेन पर बढ़ा दबाव
चीन, फ्रांस व स्पेन कर रहे भारतीय हाईस्पीड मार्केट में प्रवेश का प्रयास...
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जापान के साथ पहली बुलेट ट्रेन परियोजना भारत में हाईस्पीड ट्रेन चलाने के इच्छुक दूसरे देशों के लिए साझेदारी का मापदंड साबित होगी। क्योंकि अब आगे स्थापित होने वाली दूसरी हाईस्पीड परियोजनाओं को इसी के पैमाने पर मंजूरी मिलेगी। इसलिए चीन, फ्रांस और स्पेन जैसे जो अन्य देश भारत के हाईस्पीड ट्रेन बाजार में पैर जमाना चाहते हैं उन्हें जापान जैसे आकर्षक प्रस्तावों के साथ आगे आना होगा।
मारुति सुजुकी और दिल्ली मेट्रो के बाद मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना भारत-जापान आर्थिक सहयोग श्रृंखला की नवीनतम चमकती कड़ी है। इसे कई मायनों में बेमिसाल कहा जाएगा। क्योंकि एक तो 1.08 लाख करोड़ रुपये लागत की इस परियोजना के लिए जापान ने पूरे 88 हजार करोड़ रुपये का ऋण दिया है। और दूसरे इस पर 0.1 फीसद की ब्याज की दर इतनी कम है कि इसे कर्ज के बजाय अनुदान कहना बेहतर होगा। क्योंकि इस कर्ज की वापसी के लिए भारत को पूरे पचास साल का समय दिया गया है, जिसकी शुरुआत 15 वर्ष बाद होगी। इतनी उदार शर्तो पर विश्र्व में शायद ही किसी देश ने किसी दूसरे देश को पहले कभी कर्ज दिया होगा।
इस परियोजना की दूसरी खास बात जापान की शिंकांसेन तकनीक है जिसे विश्र्व में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसकी सुरक्षा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जापान में आज तक कोई बुलेट ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुई है। इसका समय पालन रिकार्ड भी इतना अतुलनीय है कि कोई भी बुलेट ट्रेन कभी एक मिनट से ज्यादा लेट नहीं होती। यही वजह है कि अन्य देशों की हाईस्पीड ट्रेनों के मुकाबले जापानी बुलेट ट्रेन की लागत ज्यादा है। स्पष्ट है कि जापान की विशेष सहायता के बगैर इसे भारत में लाना संभव नहीं था। इसलिए जो देश भारत में हाईस्पीड ट्रेन चलाना चाहते हैं उन्हें तकनीकी और वित्तीय दोनों मोर्चो पर जापान से बेहतर प्रस्ताव देने होंगे। तभी उन्हें कामयाबी मिल सकती है। अन्यथा जापान को और मौके मिल सकते हैं।
सरकार ने डायमंड क्वाड्रीलेटरल योजना के तहत मुंबई-अहमदाबाद के अलावा कई अन्य रूटों पर हाईस्पीड ट्रेन चलाने का प्रस्ताव किया है। इनमें दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-चेन्नई, दिल्ली-कोलकाता, दिल्ली-चंडीगढ़-अमृतसर मुंबई-चेन्नई के हाईस्पीड कारीडोर शामिल हैं। विभिन्न देशों के साथ इनके संभाव्यता अध्ययनों पर कार्य हो रहा है। चीन के साथ दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-चेन्नई (दिल्ली-नागपुर खंड) और चेन्नई-बंगलूर-मैसूर कारीडोर का संभाव्यता अध्ययन हो रहा है। जबकि मुंबई-चेन्नई और दिल्ली-चंडीगढ़ कारीडोर के लिए फ्रांस की भागीदारी में अध्ययन का काम जारी है। इसी तरह दिल्ली-कोलकाता कारीडोर के अध्ययन में स्पेन की मदद ली जा रही है। ब्रिटेन, इटली और स्वीडन ने भी हाईस्पीड ट्रेनों में रुचि दिखाई है। परंतु जापान के अलावा किसी भी देश के साथ बात अध्ययन से आगे नहीं बढ़ सकी है। मुंबई-अहमदाबाद प्रोजेक्ट के भूमिपूजन के बाद इन सभी परियोजनाओं के लिए सौदेबाजी के नए दौर प्रारंभ होने की संभावना है।
यह भी पढ़ेंः रोहिंग्या समस्या से निपटने की कूटनीति बनाने में जुटी सरकार