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MV Act: अधूरा परिवहन सुधार बनी सबसे बड़ी बाधा, सिर्फ जुर्माने के सहारे दुर्घटनामुक्त यातायात संभव नहीं

आरटीओ की स्थिति के बारे में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी अक्सर कहते रहते हैं कि ये देश में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा हैं। इसके बावजूद इनमें सुधार के अधूरे उपाय किए गए हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 08:41 PM (IST)Updated: Mon, 16 Sep 2019 08:41 PM (IST)
MV Act: अधूरा परिवहन सुधार बनी सबसे बड़ी बाधा, सिर्फ जुर्माने के सहारे दुर्घटनामुक्त यातायात संभव नहीं
MV Act: अधूरा परिवहन सुधार बनी सबसे बड़ी बाधा, सिर्फ जुर्माने के सहारे दुर्घटनामुक्त यातायात संभव नहीं

संजय सिंह, नई दिल्ली। सड़क यातायात को अनुशासित बनाने के लिए मोटर संशोधन एक्ट के तहत बड़े जुर्माने का तर्क सही हो सकता है, लेकिन तब जबकि यातायात को निर्बाध बनाने के लिए भी पूरी तैयारी हो।

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संसद की स्थायी समिति ही नहीं, बल्कि जीओएम ने भी एक्ट के कार्यान्वयन के लिए देश के आरटीओ और टोल प्रणाली के डिजिटलीकरण के अलावा परिवहन व्यवस्था, ड्राइवर ट्रेनिंग तंत्र और दुर्घटना संवेदी सड़कों के डिजाइन में सुधार के सुझाव दिए थे। इस मोर्चे पर अभी कोई खास तैयारी नहीं दिखती है। ऐसे में जुर्माने के सहारे ही दुर्घटनामुक्त यातायात की कोई संभावना नहीं है।

एक्सीडेंट ब्लैक स्पॉट्स

राजमार्गो पर पहचाने गए एक्सीडेंट ब्लैक स्पॉट्स अब तक चिढ़ा रहे हैं। दावा किया गया था कि राष्ट्रीय राजमार्गो पर 651 तथा स्टेट हाईवेज पर 138 ब्लैक स्पॉट समेत कुल 789 ब्लैक स्पॉट्स पहचाने गए हैं और कहा जा रहा है कि इन सभी को दुरुस्त करने पर काम हो रहा। परंतु तीन साल बाद भी कोई यह बताने की स्थिति में नहीं है कि वास्तव में अब तक कितने ब्लैक स्पॉट दुरुस्त कर दिए गए हैं।

ब्लैक स्पॉट्स का काम पूरा नहीं

ब्लैक स्पॉट सड़क के 500 मीटर के उस हिस्से को कहते हैं जहां ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं। यदि इन सभी ब्लैक स्पॉट को मिला दिया जाए तो कुल 295 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने के बराबर काम बनता है। आम तौर पर एनएचएआइ इतनी बड़ी सड़क परियोजना को ढाई-तीन साल में पूरा कर लेता है। मगर चार साल बाद भी ब्लैक स्पॉट्स का काम पूरा होने का नाम नहीं ले रहा है। जबकि इन पर 1100 करोड़ रुपये खर्च करने का दावा किया गया था।

ब्लैक स्पॉट्स पर 12 हजार करोड़ रुपये खर्च

मजे की बात ये है कि अभी ये काम पूरा भी नहीं हुआ है और सड़क मंत्रालय ने सभी स्टेट हाईवे पर ब्लैक स्पॉट्स पहचानने और दुरुस्त करने का ऐलान कर दिया है। इस पर विश्व बैंक की मदद से 12 हजार करोड़ रुपये खर्च करने का दावा किया जा रहा है। नेशनल रोड सेफ्टी बोर्ड बनाने की दिशा में भी कोई काम नहीं हुआ है।

पांच साल में सिर्फ तीन नए ड्राइवर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खुले

ड्राइवरों की ट्रेनिंग के लिए हर जिले में एक ड्राइवर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खोलने की घोषणा की गई थी, लेकिन अब तक महज 24 को मंजूरी मिली है जिनमें 16 वास्तव में खुले हैं। पांच साल पहले इनकी संख्या 13 थी। इनमें केवल ट्रक-बस वाले ट्रेनिंग लेते हैं। बाकी कार, टैंपो, टू ह्वीलर चलाने वालों का हुनर या तो गली-नुक्कड़ वाले मोटर ड्राइविंग स्कूलों या फिर भगवान के भरोसे है।

सड़कों पर जाम

ईस्टर्न एक्सप्रेसवे बनने के साथ सड़क मंत्रालय ने वाहनों की अधिकतम गति सीमा को बढ़ा दिया है। लेकिन कैमरों और मानीटरिंग तंत्र की कमी के कारण इससे ओवरस्पीडिंग के मामलों और इससे होने वाले हादसों की संख्या बढ़ गई है। तकनीक की स्थिति तो यह है कि ओवरस्पीडिंग को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी चेकिंग मैन्युअल हो रही है जिससे सड़कों पर जाम की स्थिति होती है।

भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा

आरटीओ की स्थिति के बारे में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी अक्सर कहते रहते हैं कि ये देश में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा हैं। इसके बावजूद इनमें सुधार के अधूरे उपाय किए गए हैं। स्थायी समिति ने मोटर एक्ट लागू करने से पहले डीएल और आरसी का नेशनल व स्टेट रजिस्टर बनाने को कहा था, लेकिन केंद्र के स्तर पर 'वाहन' व 'सारथी' ऐप विकसित किए जाने के बावजूद आरटीओ की इलेक्ट्रानिक नेटवर्किंग का काम पूरा नहीं हुआ है।

ऑटोमैटिक टेस्ट की व्यवस्था सीमित

नतीजतन, अभी भी एक जिले का आरसी या डीएल दूसरे जिले में नहीं बन सकता। जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है तो इसमें बस इतना परिवर्तन हुआ है कि अब आवेदक की जगह दलाल कंप्यूटर पर सवालों के जवाब भरते हैं। ऑटोमैटिक टेस्ट की व्यवस्था महज कुछ महानगरों तक सीमित है। फिटनेस टेस्ट और परमिट भी कुछ इसी तर्ज पर जारी हो रहे है।


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