इस मामले में अमेरिका से भी आगे निकल जाएगा पड़ोसी देश नेपाल
नदियों पर बांध बनाकर नेपाल अब एशिया का बड़ा बिजली उत्पादक देश बनने की राह पर चल निकला है।
काठमांडू, [स्पेशल डेस्क]। हिमालयी देश नेपाल की खूबसूरती का कोई मुकाबला नहीं है। यहां ग्लेशियरों से निकलने वाली कल-कल करती नदियां इसकी खूबसूरती को बढ़ाने के साथ ही जल का भी प्रमुख स्रोत हैं। अब नेपाल ने अपनी इस संपदा का और भी बेहतर प्रयोग करना शुरू कर दिया है। इन नदियों पर बांध बनाकर नेपाल अब एशिया का बड़ा बिजली उत्पादक देश बनने की राह पर चल निकला है।
नेपाल को गृहयुद्ध ने पीछे धकेला
भारत, पाकिस्तान और चीन ने पिछले कुछ दशकों में हिमालय से निकलने वाली नदियों पर तमाम बड़े-बड़े बांध बना लिए। लेकिन माओवादियों और सरकार के बीच दशकों तक चली जंग के कारण नेपाल अपनी इस प्राकृतिक संपदा का बेहतर इस्तेमाल नहीं कर पाया। लेकिन अब माओवादी मुख्य धारा में शामिल हो चुके हैं। एक समय सबसे बड़े माओवादी नेता रहे पुष्प दहल प्रचंड दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं। आज अरबों डॉलर के हाइड्रो प्रोजेक्ट नेपाल की नदियों पर बन रहे हैं।
अमेरिका से 40 फीसद ज्यादा बिजली बनाएगा नेपाल
सरकारी सर्वेक्षणों के अनुसार तमाम नदियों में जो पानी सदियों से यूं ही बह जाया करता था, उसी पानी से अमेरिका के मुकाबले 40 फीसद ज्यादा बिजली का उत्पादन हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो नेपाल आज के मुकाबले 40 गुना ज्यादा बिजली का उत्पादन करेगा। नेपाल में इस समय 100 से ज्यादा हाइड्रो प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। इनमें से 40 तो पिछले एक साल में ही बनने शुरू हुए हैं। इन बांधों के बन जाने से अगले एक दशक में नेपाल का बिजली उत्पादन आज के मुकाबले 10 गुना बढ़ जाएगा।
इंफ्राको एशिया के सीईओ अलार्ड नूयी का कहना है कि वहां बिजली की काफी कमी है और ऐसा कोई प्रोजेक्ट वहीं का ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगा और उसे बाजार भी मिलेगा। बता दें कि इंफ्राको एशिया को यूके, स्विटर्जलैंड और ऑस्ट्रेलिया सरकार ने बनाया है। यह कंपनी नेपाल में एक हाइड्रो प्रोजेक्ट का निर्माण करा रही है, जबकि दो अन्य के लिए यह प्रयासरत है। हालांकि बिजली कंपनियों को अब भी नेपाल में खासी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।
चुनौतियां भी कम नहीं
हिमालय की चोटियों के बीच बसा नेपाल किसी भी मेगा प्रोजेक्ट के लिए बड़ी-बड़ी चुनौतियां पेश करता है। प्राकृतिक आपदाएं भी इस देश में आती रहती हैं। कभी भूकंप यहां काम करना मुश्किल बना देता है तो कभी ग्लेशियरों के पास बनी झीलों के टूटने से आने वाली सुनामी और भूस्खलन बड़े निर्माणों के लिए चुनौतियां पेश करते हैं। करीब दो साल पहले नेपाल में एक के बाद एक कई भूकंप के झटके महसूस किए गए। इन भूकंपों से नेपाल में भारी नुकसान हुआ और करीब 9 हजार लोग अपनी जान गंवा बैठे।
इसके अलावा पर्यावरण के प्रति सचेत रहने वाले संगठन भी बड़े निर्माणों के आगे बढ़ने में चुनौती पेश करते हैं। ये संगठन खास तौर पर नए तरह के बांधों का जमकर विरोध करते हैं। इसी के चलते पूर्व में विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक ने कुछ प्रोजेक्ट से अपना हाथ वापस खींच लिया था। इन संगठनों का कहना है कि बड़े बांधों से प्राकृतिक रहवासों जैसे वेटलैंड आदि को नुकसान पहुंचता है। राजनीतिक अस्थिरता के कारण भी नेपाल में बड़े निर्माण नहीं हो पाए हैं। करीब एक दशक तक चले गृहयुद्ध में 16 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई और अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हुआ सो अलग। आखिरकार साल 2006 में इस गृहयुद्ध की आग शांत हुई।
अरब के पास तेल तो नेपाल के पास है पानी
चीन सीमा के पास नेपाल में 111 मेगावाट का एक बांध बन रहा है। रसुवागढ़ी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट नाम के इस बांध की प्रोजेक्ट मैनेजर छबी गैर कहती हैं, 'जिस तरह से अरब देशों के पास तेल है, उसी तरह से हमारे पास एकमात्र प्राकृतिक संसाधन पानी ही है।' नेपाल में ऐसे प्रोजेक्ट के लिए विदेशों में रह रहे नेपाली भी फंड भेज रहे हैं। विश्व बैंक के अनुसार साल 2015 में विदेशों में बसे नेपालियों ने 6.7 बिलियन डॉलर अपने देश में वापस भेजे। यह आंकड़ा थाईलैंड और दक्षिण कोरिया से ज्यादा है।
भारत का भी भारी निवेश
इधर भारत सरकार ने भी नेपाल की अरुण नदी पर बनने वाले बांध के लिए इसी साल फरवरी में 850 मिलियन (85 करोड) रुपये की मंजूरी दे दी है। इस प्रोजेक्ट से उत्पादित होने वाली ज्यादातर बिजली भारत को मिलेगी। उधर चीन की एक सरकारी कंपनी और नेपाल सरकार मिलकर यहां से सेती नदी पर 1.6 बिलियन डॉलर का हाइड्रोपावर प्लांट बना रहे हैं। इस प्रोजेक्ट से भी ज्यादातर बिजली भारत को भेजी जाएगी।
पिछले ही साल निवेशकों ने नेपाल में 140 मेगावाट के 9 हाइड्रोप्लांट को शुरू किया है। सरकार इस साल इस रफ्तार को और भी तेज करना चाहती है। 33 वर्षीय तारा ढकाल इस समय काठमांडू के पास ही त्रिशूली नदी पर बन रहे एक प्रोजेक्ट पर काम करते हैं। उनके एक करीबी दोस्त के ऊपर किसी अन्य प्रोजेक्ट पर काम करते हुए एक बड़ा बोल्डर गिर गया था और उसकी मौत हो गई। तारा ने यह सब अपनी आंखों से देखा था। वह कहते हैं मैदानों में काम करना आसान होता है, लेकिन मैं पहाड़ों में रहता हूं, इसलिए यहां काम करना चाहता हूं।
ऐसे बड़े बांधों के बनने से नेपाल और हिमालय का यह क्षेत्र दक्षिण एशिया की बिजली जरूरतों का 10 फीसद दे पाएगा। बता दें कि फिलहाल नेपाल बिजली का निर्यात नहीं करता। द अपर तमाकोशी प्रोजेक्ट के डिप्टी मैनेजर डॉ. गणेश नौपाने कहते हैं, 'नेपाल जैसे देशों के लिए हाइड्रोपावर का कोई विकल्प नहीं है।'