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अच्छे रहे 75 साल, स्वर्णिम होंगे अगले पांच : वर्चुअल क्लासरूम और नई शिक्षा नीति से पढ़ेगा और बढ़ेगा भारत

अतीत में भी भारत एक ऐसा देश रहा है जिसने युगों-युगों तक दुनिया को ज्ञान की ज्योति से रास्ता दिखाया। वैदिक काल में दुनिया के लिए भारत एक विश्व गुरु था। तो चलिए नालंदा और तक्षशिला से कोरोना काल में चल रहीं ऑनलाइन क्लास के सफर को देखते हैं।

By Vineet SharanEdited By: Published: Tue, 17 Aug 2021 08:43 AM (IST)Updated: Tue, 17 Aug 2021 11:04 AM (IST)
अच्छे रहे 75 साल, स्वर्णिम होंगे अगले पांच : वर्चुअल क्लासरूम और नई शिक्षा नीति से पढ़ेगा और बढ़ेगा भारत
नई शिक्षा नीति के तहत तकनीकी संस्थानों में भी आर्ट्स और ह्यूमैनिटीज के विषय पढ़ाए जाएंगे।

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। क्या आपको याद है शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पहले नारा था, क ख ग घ को पहचानो अलिफ़ को पढ़ना सीखो। अ आ इ ई को हथियार बनाकर लड़ना सीखो। फिर नारा आया.. 'कोई न छूटे इस बार, शिक्षा है सबका अधिकार', 'स्कूल चलें हम' और पढ़ेंगी बेटियां, बढ़ेंगी बेटियां। इन्हीं नारों में आजादी के बाद के सात दशकों में शिक्षा के क्षेत्र में हुए कई क्रांतिकारी परिवर्तन झलकते हैं। ये परिवर्तन अभी भी जारी हैं। सुनहरे अतीत में भी भारत एक ऐसा देश रहा है, जिसने युगों-युगों तक दुनिया को ज्ञान की ज्योति से रास्ता दिखाया। वैदिक काल में दुनिया के लिए भारत एक विश्व गुरु था। बौद्ध काल में नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में लोग दूर-दूर से आते थे। तो चलिए आजादी के वक्त से वर्तमान कोरोना काल में चल रहीं ऑनलाइन क्लास के सफर को देखते हैं और जानते हैं कि अगले पांच साल में शिक्षा में भारत कहां होगा।

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अगले पांच से होने वाले पांच बड़े बदलाव

1. नई शिक्षा नीति से बदलेगा पूरा एजुकेशन सिस्टम

शिक्षाविद् बताते हैं कि नई शिक्षा नीति के तहत तकनीकी संस्थानों में भी आर्ट्स और ह्यूमैनिटीज के विषय पढ़ाए जाएंगे। दुनियाभर की बड़ी यूनिवर्सिटीज को भारत में अपना कैंपस बनाने की अनुमति भी दी जाएगी। आईआईटी समेत देश भर के सभी तकनीकी संस्थान होलिस्टिक अप्रोच ( समग्र दृष्टिकोण) को अपनाएंगे। इंजीनियरिंग के साथ-साथ तकनीकी संस्थानों में आर्ट्स और ह्यूमैनिटीज से जुड़े विषयों पर भी जोर दिया जाएगा। स्टूडेंट्स अब क्षेत्रीय भाषाओं में भी ऑनलाइन कोर्स कर सकेंगे। नई शिक्षा नीति में जीडीपी का 6% हिस्सा एजुकेशन सेक्टर पर खर्च किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। देशभर के सभी इंस्टीट्यूट में एडमिशन के लिए एक कॉमन एंट्रेंस एग्जाम आयोजित कराए जाने की बात भी कही गई है। यह एग्जाम नेशनल टेस्टिंग एजेंसी कराएगी। चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर समस्त हायर एजुकेशन के लिए हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया  बनाया जाएगा। यह सभी बदलाव अगले कुछ वर्षों में दिखेंगे।

2. प्राथमिक शिक्षा पर जोर

इंडियन स्कूल ऑफ डेवलपमेंट मैनेजमेंट के सह-संस्थापक और निदेशक शरद अग्रवाल कहते हैं कि पिछले 75 साल में शिक्षा में बहुत काम किया गया है लेकिन असर जैसी रिपोर्ट दिखाती है कि हमें प्राथमिक शिक्षा में काफी काम करने की जरूरत है।

वहीं नई शिक्षा नीति के तहत 2025 तक प्राथमिक विद्यालय में सार्वभौमिक आधारभूत साक्षरता का लक्ष्य है। 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% जीईआर (Gross Enrolment Ratio) के साथ पूर्व-विद्यालय से माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य है। इसके अलावा स्कूल से दूर रह रहे 2 करोड़ बच्चों को फिर से मुख्यधारा में लाएगा। समग्र विकास कार्ड के साथ मूल्यांकन प्रक्रिया में पूरी तरह सुधार होगा। सीखने की प्रक्रिया में छात्रों की प्रगति पर पूरी नजर रखी जाएगी।

चौरीचौरा में फांसी पाने वाले स्वतंत्रता सेनानी लाल बिहारी तिवारी के पौत्र राम नारायण त्रिपाठी कहते हैं कि शिक्षा को इतना सरल बना दें कि गरीब अमीर बराबर की शिक्षा पा सकें। निजी स्कूल बहुत पैसा ले रहे हैं। फिर भी अच्छी शिक्षा नहीं मिल पा रही है। इसलिए सरकारी स्कूलों में सुधार की काफी जरूरी है।

3. व्यावसायिक शिक्षा-छात्रों के हेड, हार्ट और हैंड का विकास

नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक, स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50% शिक्षार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा देने का लक्ष्य है। शरद अग्रवाल कहते हैं कि वोकेशनल एजुकेशन पर जोर देना चाहिए, जिससे छात्र देश की समस्याओं को सुलझा सकें। देखा जाए कि छात्रों के हेड, हार्ट और हैंड में कैसे समन्वय बन सके। जिससे छात्र जब स्कूलों से बाहर निकलें तो वे देश को आगे ले जा पाएंगे।

(फोटो स्रोत- शिक्षा मंत्रालय फेसबुक पेज)

4. उच्च शिक्षा और शोध

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर अभय करंदीकर कहते हैं कि नई शिक्षा नीति में कई दूरगामी सुझाव दिए गए हैं। जिससे भारतीय में क्रांति की संभावना है। हायर एजुकेशन की बात करें तो शिक्षा नीति लागू होने के बाद छात्रों को लचीलापन, मल्टी डिसिप्लिनरी एजुकेशन का अवसर मिलेगा, यूनिवर्सिटी की कठोर सिस्टम को दूर करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शिक्षा का विकास आज की जरूरत के हिसाब से होगा। इनोवेशन और युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। आईआईटी और आईआईएम इस दिशा में लगे हुए हैं। आने वाले 10 साल में काफी बदलाव की उम्मीद है।

शरद अग्रवाल के मुताबिक नई शिक्षा नीति में शोध पर काफी फोकस किया है। आईएसडीएम, अशोका यूनिवर्सिटी और अजीज प्रेमजी जैसे नई संस्थाएं चल रही हैं जो आज प्रैक्टिशनर और एकेडमी दोनों को साथ लेकर काम कर रहे हैं। आईआईटी गुवाहाटी के डायरेक्टर टीजी सीताराम कहते हैं कि उच्च शिक्षा में फैकल्टी की समस्या है, कई रिफार्म की जरूरत है और शोध को बेहतर बनाना होगा। इसके लिए फंड की काफी जरूरत है। उच्च शिक्षा परिषद की स्थापना की जरूरत है।

हार्वड यूनिवर्सिटी के एशिया एक्स फेलो और एमडीआई में स्ट्रेटेजिक मैनेजमेंट के प्रोफेसर डॉक्टर राजेश पिलानिया भी रिसर्च पर जोर देते हैं। वह कहते हैं कि पिछले 75 साल में मैनेजमेंट की पढ़ाई में काफी कामयाबी हासिल की है। आजादी के समय देश में मैनेजमेंट का कोई स्कूल नहीं था लेकिन अब सरकारी और निजी क्षेत्रों की भरमार है। हम बड़ी संख्या में मैनेजमेंट मैन पावर भेज रहे हैं। पर कई चुनौतियां भी हैं। हम रिसर्च में पीछे छूट रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगले पांच साल में देश में कई फॉरेन यूनिवर्सिटी आ सकती हैं।

5. शिक्षकों को मिलेगी बेहतर ट्रेनिंग

शरद अग्रवाल कहते हैं कि जुलाई में जो नई शिक्षा नीति आई उसमें एक बात सामने आई कि सबसे पहले शिक्षकों को शिक्षा देने का प्रावधान करना चाहिए। फिर छोटे बच्चों की शिक्षा पर काम करना चाहिए। 2030 तक शिक्षण के लिए न्यूनतम डिग्री योग्यता 4 वर्षीय एकीकृत बी.एड. होगी।

भारत में सात दशक में शिक्षा के महत्वपूर्ण पड़ाव

आईआईटी की स्थापना

1. साल 1951 में खड़गपुर में पहले आईआईटी की स्थापना और इसके बाद 1958 में दूसरा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई में स्थापित हुआ। इसके बाद 1959 में कानपुर एवं चेन्नई, दिल्ली, गुवाहाटी में IIT की स्थापना हुई।

2. पहली शिक्षा नीति

1968 में भारत की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति लायी गयी जिसमें 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चो को अनिवार्य शिक्षा ,शिक्षकों के बेहतर क्षमतावर्धन के लिए उचित प्रशिक्षण जैसे प्रावधान किये गये और मातृभाषा मे शिक्षण पर विशेष ज़ोर दिया गया था।

3. 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 को 1992 में पेश किया गया। इसमें देश में शिक्षा के विकास के लिए व्यापक ढांचा पेश किया गया। शिक्षा के आधुनिकीकरण और बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने पर जोर रहा। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में गरीबों के लिए फेलोशिप, प्रौढ़ शिक्षा और स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ावा देने के लिए समूची शिक्षा प्रणाली का नए सिरे से विकास करने, समाज के उपेक्षित वर्गों, शारीरिक और मानसिक बाधाओं से ग्रस्त वर्गों के अध्यापकों की भर्ती करने पर जोर दिया गया था। इसके अलावा इसमें नए स्कूल और कॉलेज खोलने तथा विशेष शैक्षिक आवश्यकताओं वाले इलाकों पर खास तौर पर ध्यान देने को भी कहा गया था।

4. स्कूल बुलाने के लिए 26 साल पहले शुरू की गई मिडडे मील योजना

15 अगस्त 1995 को यह योजना शुरू की गई। इसका मकसद स्कूलों में छात्रों का पंजीकरण, उपस्थिति बढ़ाने के साथ ही बच्चों के पोषण का स्तर सुधारना था। शुरुआत में सिर्फ प्राइमरी (एक से पांचवी कक्षा) के छात्रों को यह सुविधा दी गई। अक्तूबर 2002 में इस योजना का विस्तार करते हुए एजुकेशन गारंटी स्कीम के सभी छात्रों को और स्पेशल ट्रेनिंग सेंटर को भी इसमें शामिल किया गया। 2008-09 में इस योजना को उच्चतर प्राथमिक कक्षाओं तक लागू कर दिया गया। वहीं अप्रैल 2008 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत आने वाले मदरसों को भी इससे जोड़ा गया।

(फोटो स्रोत- शिक्षा मंत्रालय फेसबुक पेज)

5. सर्व शिक्षा अभियान

सरकार ने 2001 में सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत की गई। इसका उद्देश्य  6 से 14 साल तक के सभी बच्चों को शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराना था। इससे पहले सरकार ने कारगर पहल करते हुए प्रायोजित जिला शिक्षा कार्यक्रम नाम के एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी जिससे देश भर में स्कूलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई।

6-शिक्षा का अधिकार

नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के बच्चों के अधिकार का कानून (शिक्षा का अधिकार कानून) भारतीय संसद द्वारा 4 अगस्त 2009 को पारित एक अधिनियम है जिसमें 4 से 14 साल तक के बच्चों  के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के महत्व और इसके तौर-तरीकों को बताया गया है।

(फोटो स्रोत- शिक्षा मंत्रालय फेसबुक पेज)

40 सालों में बढ़ गई 33 फीसदी साक्षरता

1951 में 5 वर्ष और अधिक उम्र के प्रत्येक 10 भारतीयों में केवल 2 लोग साक्षर थे। उस समय साक्षरता की परिभाषा यह थी कि एक मित्र को एक पत्र लिख सकता है और उत्तर पढ़ सकता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 1981 में जहां भारत की साक्षरता दर 41 फीसदी थी, जो 2018 में बढ़कर 74 फीसदी हो गई। बीते कुछ दशकों में में देश में व्यापक स्तर पर साक्षरता दर में मिली कामयाबी की बड़ी वजह शिक्षा को लेकर जारी की गई स्कीम और स्कूलों में अधिक नामांकन होना है। इससे पहले, देश के सुदूर हिस्से में बहुत से बच्चे स्कूल पहुंच ही नहीं पाते थे। 2001 से लेकर 2018 तक साक्षरता दर में 13 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। सर्व शिक्षा अभियान, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, मिड डे मील जैसी योजनाओं ने साक्षरता दर को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। वयस्क साक्षरता दर का मतलब है कि जो लोग 15 साल या उससे अधिक उम्र के हैं उन्हें वह रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग होने वाले छोटे वक्तव्यों को लिख या पढ़ सकते हैं।

नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि 1998-1999 में नौवीं और दसवीं में नामांकन प्रतिशत 18.45 मिलियन था। 1991 के बनिस्पत इसमें प्रति वर्ष 2.5 फीसद का इजाफा हुआ। माना जा रहा है कि 2025 तक यह आंकड़ा 36 मिलियन को पार कर जाएगा। 1991 में प्राथमिक शिक्षा में नामांकन दर 170 मिलियन था। 2025 में इसके 199 मिलियन होने की उम्मीद है। उच्च शिक्षा में नामांकन 5.46 मिलियन था जो 2025 में बढ़कर 15.38 मिलियन हो जाएगा। लड़कियों की बात करें तो जुलाई में संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे विकसित देशों की तुलना में प्रतिशत के लिहाज से भारत की बेटियां साइंस टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ (एसटीईएम) में आगे हैं।

आईआईटी गुवाहाटी के डायरेक्टर टीजी सीताराम कहते हैं कि उच्च शिक्षा व्यवस्था में दुनिया में भारत का तीसरा स्थान है। 21 सदी में हमारे यूनिवर्सिटी और संस्थान इसकी साक्षी हैं। आईआईटी, आईआईएम और एम्स 21वी सदी में देश का नेतृत्व कर रहे हैं। आईआईटी की संख्या 6 से 12 हो चुकी है। आईएसआर और आईएसईआर जैसे नए संस्थान बने हैं। साइंटिफिक इंफ्रास्ट्रक्चर भी मौजूद है। सरकार शिक्षा की क्षमता बढ़ा रही है। नई शिक्षा नीति देश में शिक्षा को आगे ले जाएगी। 

(इनपुट-विनीत शरण, विवेक तिवारी और मनीष कुमार)


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