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कोरोना संकट के बीच पीएम मोदी ने देशवासियों को थमाई आत्मनिर्भरता के द्वार की कुंजी

प्रधानमंत्री मोदी ने आह्वान किया है कि धनतेरस से लेकर आगे के त्योहारों तक हमें वोकल फार लोकल का विशेष ध्यान रखना है। इसके पीछे कारण है कि इस समय करीब पूरा भारत बाजारों में होता है परंतु यदि हम पूरे वर्ष अपनाएं तो हमारे स्थानीय उद्योगों को विस्तार मिलेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 28 Oct 2021 10:56 AM (IST)Updated: Thu, 28 Oct 2021 11:02 AM (IST)
कोरोना संकट के बीच पीएम मोदी ने देशवासियों को थमाई आत्मनिर्भरता के द्वार की कुंजी
हम अपने यहां रोजगार के नए अवसरों के सृजन के मार्ग को भी प्रशस्त कर पाएंगे।

पीयूष द्विवेदी। पिछले वर्ष कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की थी। इसके साथ ही प्रधानमंत्री द्वारा लोकल के लिए वोकल का नारा भी दिया गया था। इस नारे का अर्थ है कि न केवल देश में बने उत्पादों को उपयोग में लाया जाए, बल्कि अपने स्तर पर उनका प्रचार-प्रसार भी किया जाए जिससे अधिकाधिक लोगों में स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को लेकर जागरूकता आए। इस अभियान के मूल में यही विचार है कि यदि देश के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा तो छोटे-छोटे उद्यमियों का विकास होगा और धीरे-धीरे उनके उत्पाद वैश्विक बनते जाएंगे। इस प्रकार ‘लोकल फार ग्लोबल’ के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा। वस्तुत: स्थानीय उत्पादों का विकास और प्रसार ही आत्मनिर्भरता के द्वार की मुख्य कुंजी है।

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गौर करें तो वोकल फार लोकल को जमीनी स्तर पर बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा लगतार प्रयास किए जा रहे हैं। इनमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम बेहद महत्वपूर्ण हैं। इस साल बजट में एमएसएमई क्षेत्र को 15,700 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो कि बीते वित्तीय वर्ष की तुलना में दोगुना हैं। इसके अलावा एमएसएमई के लिए कर-प्रणाली को भी लचीला और सरल किया गया है, जिससे छोटे-छोटे उद्यमियों को कारोबार में समस्या न आए। साथ ही बीते वर्ष आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत एमएसएमई क्षेत्र को तीन लाख करोड़ रुपये का गारंटीमुक्त ऋण देने की घोषणा भी की गई थी। दरअसल एमएसएमई के अंतर्गत संचालित छोटे-छोटे उद्योगों के माध्यम से लोकल फार वोकल को बहुत बल दिया जा सकता है। इस क्षेत्र को मजबूती देने के पीछे सरकार की यही मंशा है।

इसके अलावा एक जिला एक उत्पाद योजना, हुनर हाट योजना से लेकर राष्ट्रीय खिलौना मेला के आयोजन तक केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा तमाम ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे देश के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा दिया जा सके। खादी और ग्रामोद्योग का बाजार देश में पहले भी था, लेकिन यह सुप्त अवस्था में था। बीते वर्ष मोदी सरकार ने फेस मास्क के साथ इसकी आनलाइन बिक्री की व्यवस्था शुरू की। इस एक वर्ष में ही इसने बड़े ई-मार्केट का रूप ले लिया है। अब इसके उत्पाद देश के दूर-दराज के इलाकों में भी आनलाइन खरीदी के जरिये पहुंचने लगे हैं।

इन सभी बातों का मूल आशय यही बताना है कि सरकार स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग ढंग से आवश्यकतानुसार कदम उठा रही है, लेकिन हमें समझना होगा कि यह ऐसा कार्य है जिसमें केवल सरकार के करने से पूरी सफलता नहीं मिल सकती। आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य तभी साकार होगा जब देश के नागरिकों के भीतर स्वदेशी को अपनाने के प्रति अटल भावना आकार लेगी और वे व्यवहार में उसे अपनाएंगे। उल्लेखनीय होगा कि सामान्य लोगों को स्थानीय उत्पादों को अपनाने के लिए प्रेरित करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी लगातार अपने भाषणों में लोकल के लिए वोकल बनने का आह्वान करते रहे हैं। बीते 24 अक्टूबर को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी उन्होंने दीपावली तथा उसके आगे के त्योहारों के लिए लोगों से स्थानीय उत्पादों की खरीदारी करके ‘वोकल फार लोकल’ अभियान को आगे बढ़ाने का आह्वान किया।

गौरतलब है कि आगे धनतेरस, दीपावली, भाई दूज, छठ जैसे त्योहार क्रमश: आने वाले हैं। पहले के समय में इन त्योहारों से संबंधित ज्यादातर खरीदारी लोग अपने आसपास के विक्रेताओं से ही कर लेते थे। दीपावली के दीये हों या गोधन की भरुकी और जांत अथवा छठ की डाल एवं सूप आदि ये सब चीजें स्थानीय विक्रेताओं से ली जाती थीं, जिनका निर्माण भी स्थानीय स्तर पर ही हुआ होता था। गांवों में तो प्राय: फेरीवाले ये उत्पाद लेकर घर-घर घूमते नजर आते थे और वहीं से लोग खरीदारी करते थे, लेकिन बदलते समय में शहरों में तो लोगों का झालरों की तरफ ऐसा रुझान हुआ है कि मिट्टी के दीये बहुत कम नजर आते हैं। और तो और, बाजार में चीन निर्मित इलेक्ट्रानिक दीये भी उपलब्ध हो चुके हैं, जिनमें दीये जैसी आकृति में विद्युत प्रकाश जलता रहता है, जिसे देखकर हंसी भी आती है और दुख भी होता है। झालर खरीदने वालों में भी स्वदेशी और चाइनीज का फर्क देखने की जहमत ज्यादातर लोग नहीं उठाते।

छठ की डलिया और सूप तो औने-पौने दामों में आनलाइन उपलब्ध हो चुके हैं। बांस के सूप के साथ अब पीतल का सूप भी दिखने लगा है। कहने का आशय है कि समय के साथ इन त्योहारों का स्वरूप बहुत बदला है जिसने इसकी आर्थिकी को भी बहुत प्रभावित किया है। यद्यपि आनलाइन या बड़े मार्ट आदि की तुलना में स्थानीय निर्माताओं-विक्रेताओं द्वारा दिए जाने वाले सामान प्राय: सस्ते होते हैं, जो कि उनकी सबसे बड़ी ताकत है, लेकिन सस्ती कीमत के साथ ही उन्हें अपनी मौलिकता को बनाए रखते हुए स्वयं को थोड़ा अद्यतित करने की भी आवश्यकता है, जिससे कि वे ग्राहकों को आकर्षित कर सकें। यह बात केवल इस त्योहारी समय के सामानों के लिए नहीं, अपितु पूरे वोकल फार लोकल अभियान के लिए लागू होती है।

हालांकि सुखद यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बार-बार आग्रह और आह्वान किए जाने के परिणामस्वरूप अब लोगों में धीरे-धीरे जागरूकता आने लगी है और लोग स्थानीय उत्पादों की ओर रुझान दिखाने लगे हैं। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से लोग अपने इस रुझान को व्यक्त करते भी नजर आने लगे हैं। बात बस यही है कि लोकल के प्रति लगाव का यह भाव केवल अवसर विशेष तक केंद्रित और सांकेतिक बनकर न रहे, अपितु एक राष्ट्रव्यापी दृढ़ निश्चय के रूप में आकार लेकर आत्मनिर्भर भारत के अभियान को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो।

[शोध अध्येता]


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