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DATA STORY: पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में लोगों ने जमकर दबाया था नोटा का बटन

चुनाव आयोग की ओर से नोटा का विकल्प दिए जाने के बाद 2015 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए थे। इन चुनावों में बिहार की जनता ने जमकर नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया था। चुनाव में करीब साढ़े नौ लाख लोगों ने नोटा का प्रयोग किया था।

By Vineet SharanEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 08:45 AM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 03:39 PM (IST)
DATA STORY: पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में लोगों ने जमकर दबाया था नोटा का बटन
चुनावों में 21 सीटें ऐसी थी जहां नोटा जीत के अंतर से अधिक रहा था।

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/पीयूष अग्रवाल। 2013 में सुप्रीट कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने आम जनता को नोटा का विकल्प दिया है। इसका मतलब यह था कि अगर आपको कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है तो आप नोटा का बटन दबा सकते हैं, इसका अर्थ है कि 'इनमें से कोई नहीं’। चुनाव आयोग की ओर से ईवीएम में नोटा का विकल्प दिए जाने के बाद 2015 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए थे। इन चुनावों में बिहार की जनता ने जमकर नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया था। चुनाव में करीब साढ़े नौ लाख लोगों ने नोटा का प्रयोग किया था जो कि कुल वोट शेयर का 2.5 प्रतिशत था।

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हम पार्टी और सीपीआई (एमएल) (एल) के वोट शेयर से अधिक था नोटा

2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में हम पार्टी और सीपीआई (एमएल) (एल) के अलग-अलग वोट शेयर से अधिक नोटा का वोट शेयर था। गौर करने वाली बात यह है कि हम पार्टी को एक सीट और सीपीआई (एमएल) (एल) को तीन सीटों पर जीत मिली थी। हम पार्टी का वोट शेयर 2.27 प्रतिशत था और सीपीआई (एमएल) (एल) का वोट शेयर 1.54 प्रतिशत था। जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेकुलर) को 8,64,856 वोट मिले जबकि इसके बाद मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का नंबर रहा। जबकि बीएसपी को 7,88,047 यानी 2.07 फीसदी वोट मिले।

पार्टियों को मिले इतने फीसदी वोट

2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सबसे अधिक 24.42 फीसदी वोट मिले। आरजेडी को 18.35, जेडीयू को 16.83, कांग्रेस को 6.66 फीसदी और एलजेपी को 4.83 प्रतिशत वोट मिले। राज्य चुनाव आयोग के अनुसार इस चुनाव में कुल 157 दलों ने भाग लिया था। इसके अलावा निर्दलीय भी मैदान में थे और लोगों के पास नोटा को दबाने का विकल्प मौजूद था। चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समेत 6 राष्ट्रीय दलों के अलावा 6 राज्य स्तरीय पार्टी भी चुनाव में शामिल हुए थे जबकि समाजवादी पार्टी समेत 9 दल अन्य राज्यों की राज्य स्तरीय पार्टियां थीं जिन्होंने बिहार में चुनाव लड़ा।

21 सीटों पर जीत के अंतर से अधिक रहा नोटा

चुनावों में 21 सीटें ऐसी थी जहां नोटा जीत के अंतर से अधिक रहा था। इसमें से 7 सीटें बीजेपी ने, 6 आरजेडी ने, पांच जदयू ने, दो कांग्रेस ने और 1 सीपीआई (एमएल) (एल) ने जीती थी। वहीं 38 सीटों पर नोटा तीसरे नंबर पर था तो 65 सीटों पर नोटा चौथे नंबर पर काबिज था।

इन सीटों पर सबसे अधिक दबा नोटा का बटन

राज्य के वारिस नगर के वोटरों ने सबसे अधिक 9551 बाद नोटा का बटन दबाया। नरकटिया में 8938 लोगों ने, दरौंदा में 8983 और चेनारी में 8876 लोगों ने नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया था। भभुआ के वोटरों ने सबसे कम 642 बार नोटा का बटन दबाया। कुछ सीटों पर नोटा ने खेल बिगाड़ा था। तरारी विधानसभा की लोजपा उम्मीदवार गीता पांडेय महज 272 मतों से चुनाव हार गई थीं जबकि इसी सीट पर नोटा को कुल 3858 मत मिले थे। आरा विधान सभा के भाजपा उम्मीदवार अमरेन्द्र प्रताप सिंह 666 मतों से चुनाव हार गए थे जबकि नोटा के तहत कुल 3203 मत मिले थे। चुनाव में कई उम्मीदवारों के जीत का अंतर नोटा मत की संख्या की तुलना में कम रहा था। शिवहर विधान सभा के जदयू उम्मीदवार सर्फुद्दीन मात्र 461 मतों से जीत पाए जबकि नोटा के तहत 4383 मत मिले थे।  


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