अब पिछड़ों को मिलेगा इंसाफ अौर दुष्कर्मियों को मिलेगी फांसी, जानिए क्या है कानून
राज्यसभा के लिए सोमवार का दिन बेहद खास रहा। इस दिन दो अहम विधेयकों को मंजूरी दी गई। आइए जानते हैं इन अहम विधेयकों के बारे में।
नई दिल्ली, [एजेंसी]। संसद के मानसून सत्र में अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं। सोमवार के बाद सदन की चार बैठके और होनी हैं। लेकिन, अभी 24 अहम विधेयक सदन में लंबित है। ऐसे में उच्च सदन के समक्ष इन विधेयकों को निपटाने की चुनौती होगी। राज्यसभा के लिए सोमवार का दिन बेहद खास रहा। इस दिन दो अहम विधेयकों को मंजूरी दी गई। आइए जानते हैं इन अहम विधेयकों के बारे में।
दंड विधि संशोधन विधेयक, 2018 पारित किया गया
- राज्यसभा में दंड विधि संशोधन विधेयक - 2018 को मंजूरी मिल गई। यह विधेयक लोकसभा में पहले ही पास कर दिया गया है। अब यह विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। इस विधेयक में बलात्कार से जुड़े मामलों में सख्ती का प्रावधान किया गया है। इसके तहत न्यूनतम सजा को सात साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है।
- इस विधेयक में नाबालिगों से बलात्कार मामले में सजा को और सख्त बनाने का प्रावधान है। कानून बनने के बाद अापराधिक कानून संशोधन विधेयक इस साल 21 अप्रैल को लाए गए अध्यादेश की जगह लेगा। लोकसभा से यह विधेयक 30 जुलाई को पारित हुआ था।
- विधेयक में 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ रेप के मामले में न्यूनतम 20 साल और अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान है। 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ दुष्कर्म के दोषियों के लिए में कम से कम 20 साल के कठोर करावास का प्रावधान है, जिसे आजीवन करावास तक बढ़ाया जा सकता है।
- 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म के मामले में दोषियों के लिए उम्र कैद की सजा भुगतनी होगी और 16 साल से या उससे अधिक उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार मामले में न्यूनतम सजा को सात साल से बढ़ाकर दस साल कर दिया गया है। यह सजा उम्र कैद तक बढ़ाई जा सकती है।
- नए कानून में दुष्कर्म मामले की जांच पूरी करने के लिए दो महीने की समय सीमा तय होगी। इसके साथ दंड के फैसले के खिलाफ किसी भी अपील सुनवाई को छह माह के अंदर पूरी करनी होगी। इसके अलावा 16 साल से कम उम्र की लड़कियाें के साथ बालात्कार मामले में अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।
राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को मिला संवैधानिक दर्जा
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से जुड़ा 123वां सविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा से पारित हो गया। सभी दलों के सांसदों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया।
- विधेयक उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई से ज्यादा बहुमत से पारित हो गया है। वोटिंग के समय मौजूद सभी 156 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया था। इस विधेयक के बाद आयोग की शक्तियाें का विस्तार होगा। फिलहाल यह आयोग 1993 के कानून के तहत अभी एक निकाय है।
- आयोग का काम यह देखना होगा कि कानूनों के तहत पिछड़े वर्गों को जो सुरक्षा और सुविधा मिलनी चाहिए वह मिल रही है कि नहीं। पिछड़े वर्ग के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए वह समय-समय पर केंद्र सरकार को सलाह देगा। वह पिछड़े वर्गों से संबधित समस्यों और शिकायत की जांच करेगा। किसी भी शिकायत की जांच के लिए आयोग को सिविल कोर्ट के समान ही अधिकार होंगे। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और राष्ट्रीय जनजाति आयोग की तरह अब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को भी संवैधानिक दर्जा मिल जाएगा।
- इसके तहत संवधिान में नया अनुच्छेद 338 (ख) जोड़ने का प्रावधान किया गया है। इसक तहत सामजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पीछड़े वर्गों के लिए एक आयोग गठित होगा। इसमें एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष समेत पांच सदस्य होंगे। इस विधेयक एक महिला सदस्य की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया है। इन सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे।
- आयोग पिछड़े वर्गों के हितों से जुड़े मामलों में केंद्र और राज्यों को सलाह देगा। वह अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा। आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपेगा। यह रिपोर्ट संसद व राज्यों के विधानसभाओं में भी रखी जाएगी।
बता दें कि यह विधेयक पिछले साल दस अप्रैल को लोकसभा में पारित हुआ था, लेकिन राज्यसभा ने इसे कुछ संशोधनों के साथ 31 जुलाई 2017 को पारित किया और एक अगस्त 2017 को लोकसभा को वापस कर दिया था। मानूसन सत्र में लोकसभा से यह विधेयक दो अगस्त को पारित हुआ था, लेकिन लोकसभा ने राज्यसभा से हुए संशोधन को हटाते हुए बिल को पारित किया था।