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सावधान! बुरे का अंत बुरा... अहंकारी रावण का गांव से बाहर बसेरा

बुरे का अंत बुरा... यह बात तो हर समय याद रखी जानी चाहिए। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसका प्रबंध है। यहां कुछ जगहों पर रावण की विशालकाय प्रतिमाएं स्थापित हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 19 Oct 2018 08:46 AM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 08:50 AM (IST)
सावधान! बुरे का अंत बुरा... अहंकारी रावण का गांव से बाहर बसेरा
सावधान! बुरे का अंत बुरा... अहंकारी रावण का गांव से बाहर बसेरा

नई दिल्ली [जेएनएन]। बुरे का अंत बुरा... यह बात तो हर समय याद रखी जानी चाहिए। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसका प्रबंध है। यहां कुछ जगहों पर रावण की विशालकाय प्रतिमाएं स्थापित हैं। ये प्रतिमाएं मिट्टी या गत्ते की नहीं, बल्कि पत्थर आदि से बनी हुई पक्की प्रतिमाएं हैं। कुछ तो 400 साल पुरानी तक हैं। छत्तीसगढ़ में तो लगभग हर गांव में दशानन की विशाल प्रतिमाएं देखने को मिल जाएंगी।

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दिलचस्प बात यह कि इन प्रतिमाओं को गांव के बाहर ही खुले आसमान तले खड़ा किया गया है। चलन यह भी कि प्रतिमा को लोहे की जंजीर से जकड़ कर रखा जाता है। जहां जंजीर नहीं, वहां पेंट से जंजीर बना दी जाती है, जो रावण के पैर में पड़ी रहती है। संदेश यह कि न केवल गांव, बल्कि दैनिक आचरण में रावणरूपी बुराई के लिए कोई स्थान नहीं है। उसे जंजीर से जकड़ बाहर ही रखना चाहिए। गांव के बाहर जंजीर से जकड़ कर रखा गया रावण लोगों को साल के 365 दिन और हर समय आगाह करता है-सावधान! बुरे का अंत बुरा।

पांच से 25 फीट तक की प्रतिमाएं

सुदूर गांवों से लेकर छत्तीसगढ़ राजधानी रायपुर तक रावण की प्रतिमाओं की ऊंचाई पांच से 25 फीट तक होती है। जिस स्थान पर रावण प्रतिमा खड़ी रहती है उसे रावण चौरा कहा जाता है। दशहरे के दिन रावण वध और उसके प्रतीक पुतले का दहन भी यहीं होता है। लेकिन पत्थर का बना रावण खड़ा रहता है, कहते हुए-बुराई से दूर रहो। किसी दौर में गांवों व बस्तियों के बाहर खड़ी रावण की ये प्रतिमाएं भी अब आबादी के बीच में आ गई हैं। रायपुर से लगे गांव जुलुम, टेकारी, सांकरा, रावणभाटा आदि में भी रावण की प्रतिमाएं दूसरे प्रदेशों से आने वालों के बीच जिज्ञासा का सबब होती है।

मंदसौर में 400 वर्ष पुरानी है रावण की प्रतिमा

मंदसौर, मध्य प्रदेश के खानपुरा क्षेत्र में लगभग 400 वर्षों से नामदेव समाज रावण को अपना जमाई राजा मानकर पूजता चला आ रहा है। दशहरे पर जमाई राजा का वध भी किया जाता है। खास बात यह है कि दशहरे की शाम को प्रतीकात्मक वध से पहले सुबह जाकर पूजाअर्चना की जाती है और वध की अनुमति भी मांगी जाती है। इधर, कुछ महिलाएं अब भी रावण प्रतिमा के सामने से निकलते समय घूंघट निकालती हैं।

दो बार गिरी बिजली

खानपुरा में रावण प्रतिमा के आसपास रहने वाले नामदेव समाज के बुजुर्ग रामनारायण बघेरवाल बताते हैं कि मंदोदरी को हम बहन मानते हैं और इसी रिश्ते से रावण को जमाई राजा माना जाता है। इसका प्रमाण 400 वर्ष पुरानी यह प्रतिमा है। प्रतिमा की ऊंचाई लगभग 42 फीट है। इसका तीन बार जीर्णोद्धार किया गया। इस पर दो बार बिजली गिरी। एक बार हाथ टूट गया था। दूसरी बार बिजली गिरी तो प्रतिमा पूरी तरह जमींदोज हो गई।

घर-घर चलती है स्वच्छता मुहिम

देश में तो चार सालों से स्वच्छता मुहिम चल रही है पर मंदसौर के एक गांव में बरसों से यह मुहिम चल रही है। यहां दशहरे पर सुबह से ही गांव के साथ ही हर घर में सफाई होती है। शाम को घरों के बाहर रंगोली बनती है। इसके बाद ग्राम पंचायत द्वारा गठित टीम इन घरों का निरीक्षण कर एक घर मालिक को स्वच्छता पुरस्कार भी देती है। यह अनूठी पंरपरा है धमनार गांव की। हर वर्ष दशहरे पर स्वच्छता अभियान चलता है। 70 वर्षीय सरपंच

केसरबाई मेहता ने बताया कि आज भी इस पर्व को सभी भाईचारे के साथ मना रहे हैं।

सबसे बड़ी मूर्ति रावणभाटा में

राजधानी रायपुर के रावणभाठा क्षेत्र में स्थित रावण की प्रतिमा आसपास के इलाके में खड़ी रावण की सभी प्रतिमाओं की तुलना में सबसे बड़ी है। करीब 25 फीट की इस प्रतिमा का साल में एक बार विजयदशमी के पूर्व रंगरोगन किया जाता है। इस मूर्ति के पैरों में भी जंजीर है। इस प्रतिमा पर लिखा है- अंहकारी रावण।

देवी के जेवरों से संवरता है गरीब बेटियों का जीवन

जबलपुर में नवरात्र महोत्सव बंगाल से कमतर नहीं। आकर्षक मूर्तियां और हीरे-सोने-चांदी के आभूषण से सजी देवी दुर्गा के भव्य-मोहक रूप के दर्शन होते हैं। हर गली-मोहल्ले में छोटी-बड़ी कोई 1000 से अधिक प्रतिमाएं और उनसे जुड़ी अनेकानेक आस्थाएं। मनोकामना महाकाली इतने परिवारों की मन्नत पूरी कर चुकी हैं कि अगले 20 सालों तक प्रतिमा के निर्माण का खर्च उठाने वालों के नाम रजिस्टर्ड में दर्ज हो चुके हैं।

महाकाली पर चढ़े सोने-चांदी के जेवर खजाने में नहीं रखे जाते, बल्कि उसे गरीब और असहायों की बेटियों की शादी में भेंट कर दिया जाता है। सराफा बाजार में 152 सालों से विराजित प्रतिमाओं ने शुरू के सालों में ही मिट्टी के गहने पहने थे लेकिन फिर हीरे-सोने एवं चांदी के आभूषणों से शृंगार होता आया है। चढ़ावे के ये जेवर हर साल गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में दान दे दिए जाते हैं। शहर के नुनहाई क्षेत्र में स्थापित होने वाली मातारानी की प्रतिमा पर प्रतिवर्ष करीब 1.5 करोड़ रुपये कीमत के आभूषण सजाए जाते हैं।

[रायपुर से प्रशांत गुप्ता, मंदसौर से आलोक शर्मा और जबलपुर से

अनुकृति श्रीवास्तव की रिपोर्ट] 


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