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Chattisgarh Naxal attack: लोकसभा चुनाव आते ही हमलावर हुए नक्सली, लगातार वारदातों से दहला बस्तर

Chhattisgarh Naxal attack छत्तीसगढ़ में पिछले साल नवंबर-दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान शांत रहे नक्सलियों के तेवर लोकसभा चुनाव के दौरान बदल गए हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 06:37 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 06:37 PM (IST)
Chattisgarh Naxal attack: लोकसभा चुनाव आते ही हमलावर हुए नक्सली, लगातार वारदातों से दहला बस्तर
Chattisgarh Naxal attack: लोकसभा चुनाव आते ही हमलावर हुए नक्सली, लगातार वारदातों से दहला बस्तर

रायपुर,(जेएनएन)। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद चार महीने शांत रहे नक्सली लोकसभा चुनाव आते ही हमलावर हो गए हैं। बस्तर में गुरवार को मतदान होना है। इससे पहले लगातार वारदात कर नक्सलियों ने बस्तर को दहला दिया है। बीते एक सप्ताह में उन्होंने चार बार हमले किए।

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दंतेवाड़ा के श्यामगिरी में विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर हमले से पहले नक्सलियों ने 4 अप्रैल को पखांजुर के माहला के जंगल में बीएसएफ के गश्ती दल पर हमला किया जिसमें चार जवानों की शहादत हुई। सरकार इस वारदात से उबर पाती इससे पहले ही 5 अप्रैल को धमतरी जिले के सिहावा इलाके में एक और हमला हुआ जिसमें सीआरपीएफ के एक जवान की मौत हो गई। 6 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बालोद में कार्यक्रम था। उनके आने से पहले नक्सलियों ने धमाके करके मौजूदगी दिखाने की कोशिश की थी।

यह हमले कांकेर और धमतरी के ऐसे इलाकों में हुए थे जो नक्सल प्रभावित तो हैं पर बीते कुछ वर्षो से अमूमन शांत रहे हैं। दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जिलों को नक्सल मामले में ज्यादा संवेदनशील माना जाता है। कोंडागांव जिले के मर्दापाल और केशकाल इलाके में भी नक्सली हलचल लगातार दिखती है। ऐसे में कांकेर और धमतरी में हमला कर नक्सलियों ने फोर्स का ध्यान डायवर्ट करने की कोशिश की थी। जानकार बताते हैं कि नई जगहों पर हमला कर नक्सलियों ने फोर्स का ध्यान भंग किया और फिर दंतेवाड़ा में एक अप्रत्याशित और बड़ी वारदात कर दी।

7 अप्रैल को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की राजनांदगांव में सभा से पहले भी नक्सलियों ने मानपुर इलाके में एक धमाका किया जिसमें एक जवान घायल हुआ। इन घटनाओं के बाद यह तय हो गया है कि लोकसभा चुनाव में नक्सली बड़ी वारदात करने की फिराक में हैं फिर भी दंतेवाड़ा में सतर्कता नहीं बरती गई। इस हमले में मृत दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी लगातार रिस्क लेकर अंदरूनी इलाकों में भाजपा का प्रचार कर रहे थे। हालांकि नकुलनार जहां फोर्स की मौजूदगी है वहां से मात्र दो किमी दूर इतनी बड़ी वारदात की उम्मीद किसी को नहीं थी। इंटेलीजेंस सूत्रों के मुताबिक नक्सल इलाकों में नेताओं को सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है। इसके बाद भी नेता अंदर के इलाकों में बेधड़क चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

फोर्स को नहीं दी सूचना, श्यामगिरी के मेले में लोगों से मिलते रहे भीमा
जानकारी के मुताबिक भीमा मंडावी दंतेवाड़ा से काफिला लेकर बचेली तक चुनाव प्रचार में गए थे। दंतेवाड़ा से बचेली मुख्य मार्ग पर 11 किमी के बाद बांई ओर एक रास्ता मुड़ता है जो नकुलनार होते हुए सुकमा तक जाता है। बचेली से एक अंदर का रास्ता श्यामगिरी होते हुए सीधे नकुलनार तक जाता है। विधायक मंडावी बचेली से रवाना हुए तो श्यामगिरी के रास्ते चले गए। सूत्र बता रहे हैं कि उन्होंने फोर्स को इत्तला भी नहीं दी। श्यामगिरी में वार्षिक मेले का आयोजन किया गया था। मंडावी मेले में 15-20 मिनट रूके। आशंका जताई जा रही है कि मेले में नक्सली भी थे जिन्होंने मंडावी को पहचान लिया और मेले से कुछ किमी दूर नकुलनार के पास एंबुश लगा दिया जिसकी चपेट में विधायक का काफिला आ गया।

ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे नक्सली
नक्सली संविधान और लोकतंत्र को नहीं मानते। वे भारतीय गणराज्य से युद्ध का दावा करते हैं। यही वजह है कि लोकसभा चुनावों के दौरान हर बार वे ज्यादा हमलावर दिखते हैं। चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में खामोश रहे नक्सली अब फिर से खूनी खेल में जुट गए हैं। 2014 के चुनाव के पहले उन्होंने दरभा के टाहकवाड़ा में सीआरपीएफ के दल पर हमला कर 15 जवानों की हत्या की थी। 2014 के चुनाव के बाद फरसेगढ़ से लौट रही पोलिंग पार्टी की बस को उड़ा दिया जिसमें सात मतदान कर्मियों की मौत हो गई थी।

लोकसभा चुनाव के बहिष्कार पर रहता है नक्सलियों का जोर
छत्तीसगढ़ में पिछले साल नवंबर-दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान शांत रहे नक्सलियों के तेवर लोकसभा चुनाव के दौरान इस लिए भी बदल गए क्योंकि उनकी नीति में ही लोकसभा चुनाव के बहिष्कार की बात शामिल है। नक्सली भारतीय गणराज्य से युद्ध करने का दावा करते हैं। लोकसभा चुनाव ही उनके लिए वह अवसर होता है जब वे खुद को राष्ट्रीय चर्चा में ला सकते हैं। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद खामोश बैठे नक्सली अब फिर हिंसा पर उतारू हो गए हैं।

फोर्स के ऑपरेशन से बौखलाहट

राज्य में सरकार बदली तो यह चर्चा भी चली कि अब नक्सली शायद शांत हो गए हैं। इस बीच फोर्स की ओर से लगातार ऑपरेशन किए जाते रहे। दो मामलों में फोर्स पर फर्जी मुठभेड़ के आरोप भी लगाए गए। इन घटनाओं के बाद भी नक्सली कुछ दिन खामोश रहे। फिर उन्होंने राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया। नक्सली पर्चों में मुख्यमंत्री भूपेश पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया जाने लगा।

आदिवासियों को नक्सलियों ने दे रखा है गांव निकाला

पखांजुर से करीब 35 किमी दूर कोयलीबेड़ा-प्रतापपुर मार्ग पर माहला गांव है। इसी से सटे जंगल में गुरुवार को मुठभेड़ हुई। बताया जा रहा है कि माहला गांव के आदिवासियों को आठ साल पहले नक्सलियों ने गांव से बाहर चले जाने का फरमान सुनाया था। वहां के करीब डेढ़ सौ परिवार पखांजुर में पुलिस कैंप के पीछे अस्थाई बस्ती में रहते हैं। चार-पांच महीने पहले बीएसएफ ने माहला में कैंप खोला। नक्सलियों ने कैंप का भारी विरोध किया। ब्लास्ट और फायरिंग भी की लेकिन जवान डटे रहे। कैंप खुलने के बाद ग्रामीण गांव में लौटने लगे हैं। वर्तमान में 50-60 परिवार वहां रहते हैं।

इस साल अब तक मारे गए हैं 17 नक्सली

छत्तीसगढ़ में 2019 में अब तक 17 नक्सली मारे गए हैं। ज्यादातर मामलों में फोर्स ही हावी रही। 26 मार्च को चिंतलनार इलाके के जंगल में दो महिलाओं समेत चार नक्सली मारे गए। इंसास और दूसरे हथियार भी मिले। 7 फरवरी को भैरमगढ़ इलाके के अबूझमाड़ के गांव में दस नक्सली मारे गए। हालांकि ग्रामीणों ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताते हुए प्रदर्शन किया। 25 जनवरी को दोरनापाल के गोडेलगुड़ा में एक महिला नक्सली को मारने का दावा किया। बाद में मंत्री कवासी लखमा ने अपनी ही सरकार को पत्र लिखकर मामले की जांच करने और पीड़ितों को मुआवजा देने की मांग की।

बातचीत पर नहीं बन रही बात

कांगे्रस ने चुनावी घोषणापत्र में बातचीत के जरिए नक्सल समस्या का समाधान करने का वादा किया था। सरकार बनने के बाद सीएम ने कहा कि हम नक्सलियों से नहीं बल्कि पीड़ित पक्षों से बात करेंगे। कुछ दिन पहले नक्सली प्रवक्ता विकास ने बयान दिया कि सरकार बातचीत का माहौल बनाए तो बात हो सकती है। इसके जवाब में सीएम ने कहा कि नक्सली हथियार छोड़ें और संविधान पर भरोसा करंे तो बात होगी। अब नक्सली कह रहे हैं कि न हम हथियार छोड़ेंगे न बातचीत करेंगे। यानी बातचीत की बात नहीं बन पा रही है।  


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