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राइट टू प्राइवेसी: बेटे ने बदल दिया पिता का फैसला, कहा- उस फैसले में थीं खामियां

अपने पिता के फैसले के विपरित जाते हुए डीवाई चेंद्रचूड़ ने कहा कि उस दौरान चार जजों द्वारा बहुमत में दिये गये फैसले में कई खामियां थी।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Thu, 24 Aug 2017 05:13 PM (IST)Updated: Thu, 24 Aug 2017 06:24 PM (IST)
राइट टू प्राइवेसी: बेटे ने बदल दिया पिता का फैसला, कहा- उस फैसले में थीं खामियां
राइट टू प्राइवेसी: बेटे ने बदल दिया पिता का फैसला, कहा- उस फैसले में थीं खामियां

नई दिल्ली, जेएनएन। निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खेहर की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से इसे अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार माना है।

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9 जजों की बेंच में एक जज ऐसे भी थे जिन्होंने अपने पिता के फैसले को बदल दिया। उन जज का नाम है डीवाई चंद्रचूड़। इनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ ने साल 1975 में जबलपुर के एडीएम और शिवकांत शुक्ला केस में इतर फैसला सुनाया था। 

वाई वी चंद्रचूड़ ने उस फैसले में कहा था कि निजी स्वतंत्रता के अधिकार की कोई पहचान नहीं है। इसलिए जब इनको व्यवहारिक जीवन में लाया जाता है तो ये पहचानना असंभव है कि ये संविधान द्वारा दिया गया है या फिर ये पहले से ही संविधान में मौजूद था। 

अपने पिता के फैसले के विपरित जाते हुए डीवाई चेंद्रचूड़ ने कहा कि उस दौरान चार जजों द्वारा बहुमत में दिये गये फैसले में कई खामियां थी। 24 अगस्त को जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में लिखा, ‘जीवन और व्यक्तिगत आजादी मानव के अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा है। जैसा कि केशवानन्द भारती मामले में कहा गया है ये अधिकार मनुष्य को आदिकाल से मिले हुएे हैं। ये अधिकार प्रकृति के कानून का हिस्सा हैं।’

उन्होंने कहा कि निजता के अधिकार की ये प्रतिष्ठा आजादी और स्वतंत्रता के साथ जुड़ी हुई है और कोई भी सभ्य राज्य बिना कानून की इजाजत के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कुठाराघात नहीं कर सकता है। 

आज के फैसले में कोर्ट ने कहा कि निजता एक मौलिक अधिकार है। निजता राइट टू लाइफ का हिस्सा है। निजता का हनन करने वाले कानून गलत हैं। कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह संविधान के आर्टिकल 21 (जीने के अधिकार) के तहत आता है।

याद रहे कि इंदिरा गांधी सरकार ने 25 जून, 1975 को इमरजेंसी लगाकर पूरे देश को एक बड़े जेलखाने में बदल दिया था। आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। यहां तक कि जीने का अधिकार भी स्थगित था।

यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 'निजता मौलिक अधिकार' संविधान के आर्टिकल 21 का हिस्‍सा


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