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Lal Krishna Advani Birthday: 51 साल के राजनीतिक जीवन में कभी दाग नहीं लगने पाया, ऐसी है लालकृष्ण आडवाणी की पहचान

Lal Krishna Advani Birthday बीजेपी के बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी का आज जन्मदिन है। उन्होंने अटल बिहारी बाजपेयी के साथ मिलकर काफी लंबे समय तक देश की राजनीति में योगदान किया।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 07 Nov 2019 06:45 PM (IST)Updated: Fri, 08 Nov 2019 09:44 AM (IST)
Lal Krishna Advani Birthday: 51 साल के राजनीतिक जीवन में कभी दाग नहीं लगने पाया, ऐसी है लालकृष्ण आडवाणी की पहचान
Lal Krishna Advani Birthday: 51 साल के राजनीतिक जीवन में कभी दाग नहीं लगने पाया, ऐसी है लालकृष्ण आडवाणी की पहचान

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Lal Krishna Advani Birthday ये कम ही लोगों को पता होगा कि जब जनता पार्टी के कई नेताओं ने दिल से जनसंघ को स्वीकार नहीं किया तो अटल बिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के बीच एक अलग पार्टी बनाने को लेकर बात हुई। इस पर जब अटल जी ने अपनी सहमति दे दी तो लालकृष्ण आडवाणी ने इस दिशा में आगे कदम बढ़ाया और बीजेपी का गठन हुआ। जब इस नई पार्टी के लिए चुनाव चिह्न की बात आई तो आडवाणी ने ही इसके लिए कमल के फूल चुनाव निशान को चुना था। उसी के बाद से अब तक इस पार्टी का निशान कमल बन गया। आज के समय में पार्टी देश पर राज कर रही है।

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भाजपा के वरिष्ठ नेता 

लालकृष्ण आडवाणी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। भारतीय जनता पार्टी को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में उनका योगदान सर्वोपरि कहा जा सकता है। वे कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। जब भी भारतीय जनता पार्टी के इतिहास की बात होगी देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की चर्चा के बिना वह अधूरी ही रहेगी। आडवाणी ने ही पार्टी के चुनाव चिह्न की कल्पना की थी। 

लालकृष्ण आडवाणी का जीवन परिचय 

लालकृष्ण आडवाणी का जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में 8 नवंबर 1927 को कृष्णचंद डी आडवाणी और ज्ञानी देवी के घर हुआ था। लालकृष्ण आडवाणी भारतीय जनता पार्टी के सह-संस्थापक और वरिष्ठ राजनेता है जो 10वीं और 14वीं लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे। आडवाणी के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक (आरएसएस) के वॉलन्टियर के तौर पर हुई थी। राजनीति के शिखर पर पहुंचे लालकृष्ण आडवाणी को साल 2015 देश के दूसरे सबसे बड़े सिविलयन अवॉर्ड पदम विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्होंने देश के सातवें उप-प्रधानमंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में अपनी सेवाएं भी दी हैं। वो 1998 से लेकर 2004 तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में गृह मंत्री थे। 

जब जनसंघ अध्यक्ष के तौर पर पहली बार आडवाणी ने की कार्रवाई 

1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आरएसएस के साथ मिलकर जिस राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ की स्थापना की गई थी उसमें आडवाणी सदस्य के तौर पर जुड़ गए। उन्हें राजस्थान में जनसंघ के जनरल सेक्रेटरी एस.एस. भंडारी का सचिव बनाया गया। उसके बाद वह 1957 में दिल्ली आ गए और जल्द ही जनसंघ की दिल्ली इकाई के जनरल सेक्रेटरी और बाद में प्रेसिडेंट बन गए। जनसंघ में विभिन्न पदों पर काम करने के बाद लालकृष्ण आडवाणी को कानपुर सेशन के दौरान पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में अध्यक्ष बनाया गया। अध्यक्ष के तौर पर आडवाणी ने पहली बार कार्रवाई करते हुए जनसंघ के वरिष्ठ नेता और संस्थापक सदस्य बलराज मधोक पर पार्टी हितों के खिलाफ काम करने के आरोप में कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया था।

आडवाणी और रथ यात्रा 

हिन्दुत्व के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी को 2 सीटों से 182 सीटों तक पहुंचाने में लालकृष्ण आडवाणी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद से 1986 तक लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के महासचिव रहे। इसके बाद 1986 से 1991 तक पार्टी के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व भी उन्होंने संभाला। इसी दौरान वर्ष 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली। हालांकि, आडवाणी को बीच में ही गिरफ़्तार कर लिया गया पर इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया। 1990 की रथयात्रा ने लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुंचा दिया था। वर्ष 1992 में ढांचा विध्वंस के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया है उनमें आडवाणी का नाम भी शामिल है।

आडवाणी ने कभी दामन पर नहीं लगने दिया दाग 

राम मंदिर आंदोलन के दौरान देश में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय नेता होने और संघ परिवार का पूरा आशीर्वाद होने के बावजूद आडवाणी ने 1995 में वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार ऐलान करके सबको हैरानी में डाल दिया था। उस वक़्त आडवाणी खुद प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन आडवाणी ने कहा कि भाजपा में वाजपेयी से बड़ा नेता कोई नहीं हैं। पचास साल तक वे वाजपेयी के साथ नंबर दो बने रहे। पचास साल से ज़्यादा के राजनीतिक जीवन के बावजूद आडवाणी पर कोई दाग नहीं लगा और जब 1996 के चुनावों से पहले कांग्रेस के नरसिंह राव ने विपक्ष के बड़े नेताओं को हवाला कांड में फंसाने की कोशिश की थी। उस समय आडवाणी ने सबसे पहले इस्तीफ़ा देकर कहा कि वे इस मामले में बेदाग़ निकलने से पहले चुनाव नहीं लड़ेंगे और 1996 के चुनाव के बाद वे मामले में बरी हो गए। 

1976 से 1982 तक गुजरात से राज्यसभा के सदस्य 

आडवाणी 1976 से लेकर 1982 तक गुजरात से राज्यसभा के सदस्य रहे। इंदिरा गांधी की तरफ से देश में लगाए गए आपातकाल के बाद जनसंघ और कई अन्य विपक्षी दलों का जनता पार्टी के तौर पर उभार हुआ। आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी 1977 में लोकसभा का चुनाव लड़े और जनता पार्टी का सदस्य बने। इंदिरा गांधी की तरफ से लगाए गए आपातकाल के विरोध में खड़े हुए कई राजनेताओं और अन्य दलों के कार्यकर्ताओं ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया।

1977 में हुए चुनाव के बाद केन्द्र में कांग्रेस (ओ), स्वत्रंत पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, जनसंघ और लोकदल की मदद से सरकार बनी। आपातकाल से बौखलाए लोगों ने इंदिरा के खिलाफ वोट किया और केन्द्र में मोरारजी देसाई की सरकार बनी। इस सरकार में लालकृष्ण आडवाणी सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने, जबकि अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया था। हालांकि, ये सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चली। उधर, जनसंघ के सदस्यों ने जनता पार्टी को छोड़कर एक नई भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। 


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