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कृषि क्षेत्र में सुधार से बदल जाएगी गांवों की दुनिया, 'एक देश एक बाजार' का सपना होगा साकार

किसान अपने खेत से अपनी उपज किसी को भी बेच सकता है। देश के किसी हिस्से में अपनी जिंस बेचने की उसे छूट मिल जाएगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Fri, 15 May 2020 09:08 PM (IST)Updated: Fri, 15 May 2020 09:08 PM (IST)
कृषि क्षेत्र में सुधार से बदल जाएगी गांवों की दुनिया, 'एक देश एक बाजार' का सपना होगा साकार
कृषि क्षेत्र में सुधार से बदल जाएगी गांवों की दुनिया, 'एक देश एक बाजार' का सपना होगा साकार

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। कृषि क्षेत्र के प्रस्तावित तीन कानूनी सुधारों से गांवों की दुनिया बदल सकती है। सही तरीके से लागू कर दिया गया तो 'एक देश एक बाजार' का सपना साकार हो जाएगा। किसान अपने खेत से अपनी उपज किसी को भी बेच सकता है। देश के किसी हिस्से में अपनी जिंस बेचने की उसे छूट मिल जाएगी। इससे निजी मंडियों के खुलने का रास्ता आसान हो जाएगा, जिसमें निवेश की संभावनाएं बढ़ेंगी। किसान अपनी खेती में वही पैदा करेगा, जिसकी घरेलू बाजार से लेकर वैश्विक स्तर पर मांग होगी। किसानों के साथ कृषि क्षेत्र के निवेशकों के लिए सबसे बड़ी बाधा वर्ष 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम है।

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खामियाजा कृषि व किसानों को उठाना पड़ा

आवश्यक वस्तु अधिनियम, एपीएमसी एक्ट और एग्रीकल्चर प्रोड्यूस प्राइस एंड क्वालिटी एश्योरेंस ऐसे हथियार हैं जिसकी दरकार लंबे अरसे से थी। छह दशक बाद की बदली परिस्थितियों के बावजूद इन कानूनी के प्रावधानों को हटाने की जहमत नहीं की गई। इसका खामियाजा सीधा कृषि व किसानों को उठाना पड़ा। सीधे खेतों से ताजा उपज खरीदने से बड़े उपभोक्ता (बल्क कंज्यूमर) बचते रहे। किसान और उपभोक्ता दोनों की निर्भरता मंडियों पर टिक गई। खाद्यान्न, दलहन, तिलहन और अन्य सब्जियों का उत्पादन जरूरत से ज्यादा होने के बावजूद इन्हें आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से अलग नहीं किया गया। व्यापारियों, बिचौलियों और स्थानीय प्रशासन के गठजोड़ से किसान के साथ उपभोक्ता भी हलकान रहा है। इसमें पर्याप्त संशोधन करने के साथ इसकी सूची से तमाम वस्तुओं को बाहर करने की सख्ता जरूरत है।

एक ही राज्य की अलग-अलग मंडियों के अपने-अपने नियम कानून हैं

कृषि क्षेत्र में कानूनी सुधार को लेकर पिछले चार दशक से प्रयास किए जा रहे हैं, जिसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला। मंडी कानून में संशोधन के लिए एक दर्जन बार से अधिक राज्यों को मॉडल मंडी कानून भेजा गया, लेकिन किसी राज्य ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। कृषि सुधार के लिए कांट्रैक्ट खेती, डायरेक्ट खरीद और न जाने कितने सुधार की बातें हुईं, लेकिन बात नहीं बनी। दरअसल, मंडियां राज्यों व स्थायनीय प्रशासन की दुधारु गाय हैं। एक ही राज्य की अलग-अलग मंडियों के अपने-अपने नियम कानून हैं। वहां के लाइसेंसी आढ़ती दूसरी मंडी में कारोबार करने के लिए सक्षम नहीं है।

जिंसों का निर्यात करना आसान है, लेकिन दूसरे राज्य की मंडी में उत्पाद बेचना कठिन है

जिंसों का निर्यात करना यानी दूसरे देश में उपज को भेजना आसान है, लेकिन एक राज्य से दूसरे राज्य की मंडी में अपना उत्पाद बेचना बेहद उलझाऊ काम है। केंद्र सरकार ने किसानों के लिए राहत पैकेज घोषित करते समय एपीएमसी यानी मंडी कानून के साथ केंद्रीय मंडी कानून बनाने की घोषणा कर दी है। केंद्र सरकार की यह पहल किसानों के लिए संजीवनी साबित होगी।

उपज के न्यूनतम मूल्य की जानकारी फसल की बोआई से पहले देने की बात राहत पैकेज में कही गई

उपज के न्यूनतम मूल्य की जानकारी फसल की बोआई से पहले और निश्चित मूल्य दिलाने का बंदोबस्त जैसे तंत्र को विकसित करने की बात राहत पैकेज में कही गई है। सरकार के लोगों की मानें तो चीनी के न्यूनतम मूल्य की तर्ज पर यह करना संभव है। इसके तहत उपज का न्यूनतम मूल्य तय कर दिया जाएगा, जिससे नीचे के भाव पर खरीद फरोख्त नहीं की जा सकती है। हालांकि तीसरे सुधार में वायदा बाजार जैसे तंत्र भी गठित किए जा सकते हैं, जो सख्त कानूनी प्रावधान से लैस होंगे।


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