गैर पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा देने के बाद भी बनी रहेगी कोयले की अहमियत : इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी
भारत में तेजी से गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्ष 2030 तक सौर पवन व दूसरे गैर-पारंपरिकस्त्रोतों से बिजली उत्पादन मौजूदा दो लाख मेगावाट से बढ़ाकर 4.50 लाख मेगावाट पर पहुंचाने की तैयारी है। इसके बावजूद कोयले की अहमियत खत्म नहीं होगी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भारत में तेजी से गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्ष 2030 तक सौर, पवन व दूसरे गैर-पारंपरिकस्त्रोतों से बिजली उत्पादन मौजूदा दो लाख मेगावाट से बढ़ाकर 4.50 लाख मेगावाट पर पहुंचाने की तैयारी है। इसके बावजूद कोयले की अहमियत खत्म नहीं होगी। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आइईए) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत में कोयले की मांग मौजूदा स्तर से वर्ष 2030 तक 30 फीसद बढ़ जाएगी। साफ है कि बिजली प्लांट की तरफ से कोयले की मांग को देखते हुए कोयला उत्पादन भी बढ़ाना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अभी जिस तरह का कोयला संकट दिखा है, वैसी स्थिति आगे भी आ सकती है। हालांकि वर्ष 2030 के बाद के वर्षों में भारत में कोयले की मांग घट सकती है। लेकिन कोयले की अहमियत तब भी बनी रहेगी।
वर्ष 2035 तक उच्चतम स्तर पर रहेगी कोयले की मांग
आइईए की रिपोर्ट के मुताबिक भारत अपनी कुल कोयला मांग का 30 फीसद आयात से पूरा करता है। हालांकि सरकार की तरफ से घरेलू उत्पादन बढ़ाने की पूरी कोशिश हो रही है। लेकिन भारत की एक बड़ी समस्या वहां के घरेलू खदानों से निकाले गए कोयले की गुणवत्ता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कोयले की मांग वर्ष 2035 तक अपने उच्चतम स्तर पर रहेगी। यानी सालाना लगभग 95 करोड़ टन कोयले की जरूरत होगी। उसके बाद सौर और पवन ऊर्जा की आपूर्ति बढ़ने के बाद कोयले की मांग कम होने लगेगी।
इसके बावजूद वर्ष 2050 में भी कोयले की मांग वर्ष 2020 से ज्यादा रहेगी। ऐसे में भारत का कोयला आयात बढ़ कर 24 करोड़ टन तक हो सकता है। उल्लेखनीय है कि सरकार वर्ष 2030 तक देश की बिजली उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 7.50 लाख मेगावाट पर पहुंचाने का लक्ष्य रख रही है। इसमें से 4.50 लाख मेगावाट (60 फीसद) गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों से होगी।