बेंगलुरु, एएनआइ। कैंसर के उपचार में इम्यूनोथेरेपी एक प्रभावी तरीका बनती जा रही है। अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए हालिया अध्ययन में नेमवेल्यूकिन अल्फा नामक एक प्रायोगिक दवा कुछ मामलों में आखिरी चरण के कैंसर के उपचार में प्रभावी पाई गई है। मरीजों पर इसका अकेले व कैंसररोधी दवा पेंब्रोलिज़ुमाब के साथ प्रयोग किया गया जिसमें वह प्रभावकारी साबित हुईं। दोनों दवाएं इम्यूनोथेरेपी में प्रयोग होती हैं और कैंसर कोशिकाओं का पता लगाने व उन्हें मारने में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की मदद करती हैं।
प्रतिरक्षा कोशिकाओं को देती हैं ताकत
ये दवाएं प्रतिरक्षा कोशिकाओं को कैंसर पर हमले में सक्षम बनाती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि नए दौर की इम्यूनोथेरेपी के मिश्रण की अत्यंत जरूरत है, क्योंकि मौजूदा उपचार सभी रोगियों पर काम नहीं करते। खासकर, उन पर जिनमें कैंसर (मानक उपचार के बाद) खत्म होकर फिर से लौट आया हो अथवा शरीर में फैल गया हो।
ट्यूमर के विकास को रोकने में रही सफल
एनवाईयू लैंगोन हेल्थ व इसके पर्लमटर कैंसर सेंटर के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए नवीनतम अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के पहले चरण में पता चला है कि नेमवेल्यूकिन अल्फा इंजेक्शन की एक श्रृंखला ने ट्यूमर के विकास को रोक दिया या छह महीने के दौरान उसमें 18 प्रतिशत की कमी लाने में सफल रही। शोध में शामिल प्रतिभागी किडनी के मरीज थे। अध्ययन निष्कर्ष चार जून को शिकागो में अमेरिकन सोसायटी फार क्लीनिकल ओंकोलाजी (एएससीओ) की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा।
कैंसर का प्रभावी उपचार
अध्ययन के वरिष्ठ लेखक व ओंकोलाजिस्ट वंशीधर वेलचेती के अनुसार, 'शुरुआती परिणाम दर्शाते हैं कि नेमवेल्यूकिन अल्फा अलग-अलग कैंसर के लिए सामान्यतौर पर सुरक्षित, सहनीय व संभावित रूप से प्रभावी उपचार है। यदि आगे के परीक्षण परिणाम सफल साबित होते हैं, तो यह दवा अकेली अथवा कैंसररोधी दवाओं के मिश्रण के साथ गंभीर अवस्था के कैंसर के उपचार का नया मार्ग प्रशस्त कर सकती है।'
रक्त कैंसर में भी असरदार
रक्त कैंसर के उपचार में भी इम्यूनोथेरेपी प्रभावी साबित हो रही है। आमतौर पर रक्त कैंसर के मरीजों को कीमोथेरेपी या बोन मैरो प्रत्यारोपण कराना पड़ता है, लेकिन कई मरीज यह उपचार नहीं करा पाते। ऐसे में रक्त कैंसर के मरीजों के लिए इम्यूनोथेरेपी भी बड़ा विकल्प बनकर सामने आई है। मोनोक्लोनल एंटीयाबी या टी सेल सरीखी कई प्रकार की इम्यूनोथेरेपी उपलब्ध हैं।
एंटीजेन पर करती है हमला
मोनोक्लोनल ऐसी विधि है जिसमें एंटीबाडी कैंसर सेल के एंटीजेन पर प्रहार करती हैं। बेंगलुरू के नारायण हेल्थ सिटी के इम्यूथेरेपी के विशेषज्ञ डा. शरत दामोदर के अनुसार कार-टी सेल थेरेपी ऐसी ही एक उपचार विधि है। विश्व में पहली बार वर्ष 2012 में अमेरिका की एमिली व्हाइटहेड का कार-टी सेल थेरेपी से उपचार किया गया। वह तबसे स्वस्थ है।
भारत में भी उपलब्ध
साधारण भाषा में कहें तो इस विधि में मरीज के शरीर से टी सेल लेकर उनमें एक रिसेप्टर का प्रवेश कराया जाता है। इसके बाद यह टी सेल वापस मरीज के शरीर में भेज दी जाती हैं। यह टी सेल कैंसर कोशिकाओं से जुड़कर उन्हें नष्ट कर देती हैं। यह विधि अभी तक अमेरिका, यूरोप और चीन में ही उपलब्ध थी, लेकिन अब चिकित्सकों के प्रयास से अब भारत में भी यह उपलब्ध हो रही है।
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