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आईआईटी रोपड़ ने बनाया पोर्टेबल क्रिमिनेशन सिस्टम, कम खर्च, कम समय और प्रदूषण रहित होगी यह भट्ठी

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रोपड़ (आईआईटी) की इस प्रणाली में लकड़ी का इस्तेमाल करने के बावजूद धुआंरहित शवदाह होता है। यह शवदाह के लिए जरूरी लकड़ी की आधी मात्रा का ही इस्तेमाल करता है और दहन वायु प्रणाली का उपयोग करने के चलते यह पर्यावरण के अनुकूल भी है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Tue, 18 May 2021 08:41 AM (IST)Updated: Tue, 18 May 2021 08:46 AM (IST)
आईआईटी रोपड़ ने बनाया पोर्टेबल क्रिमिनेशन सिस्टम, कम खर्च, कम समय और प्रदूषण रहित होगी यह भट्ठी
ठेले के आकार की भट्ठी में पहिये हैं और बिना अधिक प्रयासों के इसे कहीं भी ले जाना संभव है।

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। मौजूदा समय में कोरोना का कहर जारी है। ऑक्सीजन और बेड की किल्लत से तो लोग जूझ रहे हैं पर बेहद दर्दनाक बात यह है कि लोगों को अपने स्वजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। आईआईटी रोपड़ ने इसी को ध्यान में रखते हुए एक क्रिमिनेशन सिस्टम बनाया है जो पर्यावरण अनुकूल होने के साथ कम खर्च और कम समय में काम करेगा। यही नहीं इसका निर्माण करते समय मान्यताओं और परंपराओं का भी ध्यान रखा गया है और इसे उसी के अनुरूप बनाया गया है।

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कम खर्च और कम समय में शवदाह

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रोपड़ (आईआईटी) की इस प्रणाली में लकड़ी का इस्तेमाल करने के बावजूद धुआंरहित शवदाह होता है। यह शवदाह के लिए जरूरी लकड़ी की आधी मात्रा का ही इस्तेमाल करता है और दहन वायु प्रणाली का उपयोग करने के चलते यह पर्यावरण के अनुकूल भी है।

यह बत्ती-स्टोव प्रौद्योगिकी पर आधारित है, जिसमें जब बत्ती जलती है तो पीली चमकती है। इसे बत्तियों के ऊपर स्थापित दहन वायु प्रणाली की मदद से धुआंरहित नीली लौ में परिवर्तित किया जाता है। इसे आईआईटी रोपड़ के डीन प्रोफेसरडॉ. हरप्रीत सिंह ने विकसित किया है। उन्होंने कहा कि शवदाह प्रणाली या भट्ठी 1044 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होता है, जो पूर्ण रोगाणुनाश को सुनिश्चित करता है।

भट्ठी को कहीं भी ले जाया जा सकता है

ठेले के आकार की भट्ठी में पहिये लगे होते हैं और बिना अधिक प्रयासों से इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। यह ठेला प्राथमिक और माध्यमिक गर्म हवा प्रणाली के लिए दहन वायु से युक्त है। प्रोफेसर हरप्रीत ने बताया कि सामान्य लकड़ी आधारित शवदाह के लिए जरूरी 48 घंटे की तुलना में इसमें शीतलन समय सहित शवदाह 12 घंटे के भीतर हो जाता है।

कम लकड़ी का इस्तेमाल कार्बन फुटप्रिंट को भी आधा कर सकता है। उन्होंने कहा कि दुर्दम्य ऊष्मा भंडारण की अनुपस्थिति में इसे कम शीतलन समय की जरूरत होती है। ताप की हानि हो और कम लकड़ी की खपत के लिए ठेले के दोनों ओर स्टेनलेस स्टील का ताप अवरोधन लगा हुआ है। इसके अलावा राख को आसानी से हटाने के लिए इसके नीचे एक ट्रे भी लगा हुआ है।

मान्यताओं और परंपराओं के अनुरुप हुआ निर्माण

प्रोफेसर हरप्रीत ने बताया कि उन्होंने शवहाद के लिए टेक-ट्रेडिशनल मॉडल को अपनाया है, क्योंकि यह भी लकड़ी का उपयोग करता है। ऐसा लकड़ी की चिता पर शवदाह की हमारी मान्यताओं और परंपराओं को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

इस मॉडल को बनाने वाले चीमा बॉयलर्स लिमिटेड के एमडी हरजिंदर सिंह चीमा ने कहा कि वर्तमान में महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अगर इस प्रणाली को अपनाया जाता है तो यह उन लोगों के करीबी एवं प्रियजनों के सम्मानजनक शवदाह प्रदान कर सकते हैं, जो लकड़ी की व्यवस्था करने का वित्तीय बोझ वहन नहीं कर सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि चूंकि यह वहनीय है, इसलिए संबंधिक प्राधिकारियों की अनुमति से इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। मौजूदा संदर्भ में जो मामले हैं, उसे देखते हुए इससे लोगों को श्मशान में जगह की कमी से बचने में भी मदद मिलेगी। 


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