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आइआइटी के शोधकर्ताओं ने खोजा अल्जाइमर को टालने का तरीका, जानिए कैसे

आइआइटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि उन्होंने एक नया तरीका खोज निकाला है जिससे थोड़े समय के लिए याददाश्त जाने की समस्या को रोका या कम किया जा सकता है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 21 May 2020 02:06 AM (IST)Updated: Thu, 21 May 2020 02:06 AM (IST)
आइआइटी के शोधकर्ताओं ने खोजा अल्जाइमर को टालने का तरीका, जानिए कैसे
आइआइटी के शोधकर्ताओं ने खोजा अल्जाइमर को टालने का तरीका, जानिए कैसे

नई दिल्ली, प्रेट्र। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं की कोशिश अगर प्रयोग के धरातल पर सफल रही तो वृद्धावस्था में होने वाली याददाश्त से जुड़ी बीमारी अल्जाइमर पर बहुत हद तक अंकुश लगाया जा सकेगा। शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि उन्होंने एक नया तरीका खोज निकाला है, जिसके जरिये थोड़े समय के लिए याददाश्त जाने की समस्या को रोका या कम किया जा सकता है।

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आइआइटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं का अध्ययन कई अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित

शोधकर्ताओं की चार सदस्यीय टीम ने दिमाग में न्यूरोटॉक्सिक मोलेक्यूल्स को जमा होने से रोकने के तरीकों का पता लगाने के लिए अल्जाइमर के न्यूरोकेमिकल सिद्धांत का अध्ययन किया। दरअसल, अल्जाइमर के कारण पीड़ित की याददाश्त थोड़े समय के लिए चली जाती है और इसके लिए न्यूरोटॉक्सिक मोलेक्यूल्स (अणु) जिम्मेदार होते हैं। यह अध्ययन एसीएस केमिकल न्यूरोसाइंस, रॉयल सोसाइटी ऑफ केमेस्ट्री की पत्रिका आरएससी एडवांसेज, बीबीए और न्यूरोपेप्टाइड्स समेत प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है।

भारत में 40 लाख से ज्यादा लोग अल्जाइमर से पीड़ित 

संस्थान के जीव विज्ञान विभाग के प्रो. विपिन रामाकृष्णन ने बताया, 'अल्जाइमर की बीमारी का इलाज महत्वपूर्ण है। खासकर भारत के लिए जहां चीन और अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा अल्जाइमर के मरीज हैं। भारत में 40 लाख से ज्यादा लोगों को अल्जाइमर के कारण याददाश्त जाने की सामना करना पड़ता है। इसका उपलब्ध इलाज सिर्फ कुछ लक्षणों को धीमा करता है। अभी तक अल्जाइमर के लिए जिम्मेदार कारकों पर काम नहीं किया गया है।'

न्यूरोडीजेनेरेटिव मोलेक्यूल्स ही बनता है याददाश्त जाने का कारण

उन्होंने कहा, 'अल्जाइमर के उपचार के लिए लगभग 100 संभावित दवाएं 1998-2011 के बीच विफल रही हैं। इससे समस्या की गंभीरता जाहिर होती है। हमने दिमाग में न्यूरोटॉक्सिक मोलेक्यूल्स को रोकने के लिए निम्न-वॉलटेज इलेक्ट्रि‍क क्षेत्र और ट्रोजन पेप्टाइड्स के इस्तेमाल जैसे कुछ दिलचस्प तरीकों पर काम किया है।'

इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इलेक्ट्रि‍कल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. हर्षल नेमाडे ने बताया, 'निम्न-वोल्टेज और सुरक्षित इलेक्ट्रि‍कल क्षेत्र का इस्तेमाल जहरीले न्यूरोडीजेनेरेटिव मोलेक्यूल्स को बनने और जमा होने से रोक सकता है। न्यूरोडीजेनेरेटिव मोलेक्यूल्स ही अल्जाइमर की बीमारी में कम समय के लिए याददाश्त जाने का कारण बनता है।'

 

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