Positive India : IIT मद्रास का ये है पोर्टेबल अस्पताल, गांवों की दिक्कत करेगा दूर
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के पोर्टेबल अस्पताल यूनिट की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे बड़ी आसानी से कहीं भी लगाया जा सकता है। इस यूनिट में चार जोन हैं। पहला डॉक्टर का कमरा दूसरा अलग रहने के लिए कमरा एक मेडिकल वार्ड दो बिस्तर वाला आईसीयू।
नई दिल्ली, जेएनएन। ये खोज ऐसी है, जैसे कुआं खुद चलकर प्यासे के पास आ जाए। दरअसल देशभर में कोरोना से मुकाबला करने के लिए लगातार कई तरह के प्रयोग चल रहे हैं। वैक्सीन भारत में लगनी शुरू हो गई है। कई बार बड़ी चिंता कोरोना से पीड़ित लोगों के अस्पताल में भर्ती होने को लेकर रहती है, क्योंकि बेड की कमी की वजह से लोगों को अस्पताल में भर्ती होने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह कोरोना के अलावा अन्य बीमारियों में भी लाभप्रद हो सकता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- मद्रास ने इस समस्या का हल तलाशा है।
कहीं भी पहुंच जाता है अस्पताल
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- मद्रास के स्टार्ट-अप मॉडलस हाऊसिंग ने एक पोर्टेबल अस्पताल यूनिट का विकास किया है। इस यूनिट की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे बड़ी आसानी से कहीं भी लगाया जा सकता है। इस यूनिट में चार जोन हैं- पहला डॉक्टर का कमरा, दूसरा अलग रहने के लिए कमरा, एक मेडिकल कमरा/वार्ड, दो बिस्तर वाला आईसीयू।
ग्रामीण इलाकों में ज्यादा कारगर होगी ये यूनिट
पोर्टेबल अस्पताल का निर्माण करने वाले श्रीराम रविचंद्रन कहते हैं कि इस तरह की यूनिट समय की मांग है। कोरोना जैसी आपदा का मुकाबला करने के लिए हमें ऐसी कुशल तकनीक की आवश्यकता है। यह तकनीक लोगों की पहचान करने के साथ लोगों का इलाज करने में भी मददगार है। शहरी क्षेत्रों में जहां लोगों के पास स्वास्थ्य की तमाम तरह की सुविधाएं और विकल्प मौजूद होते हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में लोग नवीन चिकित्सीय सुविधाओं से महरूम होते हैं। उन्होंने सुदूर क्षेत्रों से शहर आना पड़ता है। इस बीमारी में चूंकि आप संपर्क नहीं रख सकते हैं, ऐसे में उन्हें लाना असंभव होता है। इस स्थिति में उनके पास या तो अलग रहने का विकल्प होता है या फिर सामान्य जगह पर इलाज कराने का। रविचंद्रन कहते हैं कि इस समस्या का हल निकालने के लिए तुरंत अस्पताल नहीं बनाए जा सकते हैं। ऐसे में मेडिकैब माइक्रो अस्पताल मौजूदा समय में श्रेष्ठ विकल्प है। मौजूदा समय में 1000 लोगों पर 0.7 बिस्तर है।
लगाना और हटाना बेहद आसान
श्रीराम रविचंद्रन कहते हैं कि इस अस्पताल को लगाना आसान और सस्ता है। आठ घंटे में चार लोगों की मदद से इसे लगाया जा सकता है। जब इसे हटाया जाता है तो यह पांच परतों में बन जाता है जिसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना बेहद आसान है। उन्होंने बताया कि हम कोविड-19 आइसोलेशन वार्ड को भी जल्द लॉन्च करने वाले हैं। आईआईटी मद्रास इन्क्यूबेशन सेल की सीईओ डॉ तमस्वती घोष कहती हैं कि इस यूनिट को ट्रक में आसानी से और कहीं भी ले जाया जा सकता है। एक ट्रक में छह यूनिट आराम से ले जाई जा सकती है। वह बताती हैं कि इसमें प्रीफैब्रिकेशन मॉडलर टेक्नोलॉजी और टेलीस्कोपिक फ्रेम होता है, जिससे मोड़ने पर यह अपने आकार का 1/5 गुना कम हो जाता है।
कोरोना के बाद अस्पताल/क्लीनिक के तौर पर कर सकते हैं इस्तेमाल
आईआईटी मद्रास इनक्यूबेशन सेल की सीईओ डॉ तमस्वती घोष कहती हैं कि इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि कोरोना के बाद भी इन अस्पताल यूनिट को प्रयोग में लाया जा सकता है। इसे ग्रामीण क्षेत्रों में बाद में माइक्रो-अस्पताल/क्लीनिक के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। वहीं इसे जरूरत के मुताबिक एक जगह से दूसरी जगह स्थापित किया जा सकता है। इन यूनिट को एल एंड टी, टाटा ग्रुप, शपूरजी, सेल्को और कई अन्य संस्थानों ने लगाया है। घोष कहती हैं कि हमें अपने स्टॉर्टअप पर गर्व है जो लोगों की इस आपदा से निपटने में मदद कर रहे हैं। हमारे स्टॉर्टअप ने कम कीमत वाली टेस्टिंग किट, मास्क और वेंटीलेटर का निर्माण किया है।