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Positive India: IIT मद्रास ने विषैले फार्मास्यूटिकल कचरों की सफाई के लिए विकसित की वैज्ञानिक तकनीक, जानें-इसके फायदे

आईआईटी मद्रास और जर्मन शोधकर्ताओं ने मिलकर एक को-कंपोजिटिंग का निर्माण किया है जो विषैले फार्मास्यूटिकल कीचड़ को साफ करने के काम आएगा।

By Vineet SharanEdited By: Published: Tue, 25 Aug 2020 08:45 AM (IST)Updated: Tue, 25 Aug 2020 08:50 AM (IST)
Positive India: IIT मद्रास ने विषैले फार्मास्यूटिकल कचरों की सफाई के लिए विकसित की वैज्ञानिक तकनीक, जानें-इसके फायदे
Positive India: IIT मद्रास ने विषैले फार्मास्यूटिकल कचरों की सफाई के लिए विकसित की वैज्ञानिक तकनीक, जानें-इसके फायदे

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। आईआईटी मद्रास और जर्मन शोधकर्ताओं ने मिलकर एक को-कंपोजिटिंग का निर्माण किया है, जो विषैले फार्मास्यूटिकल कीचड़ को साफ करने के काम आएगा। अध्ययन के आधार पर भारत के विभिन्न गांवों में पहले से ही कंपोस्टिंग सुविधाओं की स्थापना की गई है, जिनके माध्यम से अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करने वाली खाद 20 दिनों के भीतर प्राप्त की जा सकती है।

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सेप्टेज प्रबंधन के साथ और अधिक सुविधाएं स्थापित करने के लिए भारत सरकार के साथ अनुसंधान दल की चर्चा जारी है। अध्ययन का प्रारंभिक उद्देश्य यह समझना था कि व्यक्तिगत देखभाल और फार्मास्यूटिकल्स उत्पाद खाद प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करते हैं। अध्ययन में प्राप्त परिणामों से यह निष्कर्ष निकला कि को-कंपोजिंटिंग का प्रयोग कर विषैले वेस्टवाटर कीचड़ को शोधित किया जा सकता है।

इस टीम में आईआईटी मद्रास के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर और शोध टीम की प्रमुख लिजी फिलिप, आईआईटी मद्रास की अनु रशेल और स्टुडगार्ड यूनिवर्सिटी- जर्मनी के इंस्टिट्यूट फॉर सेनेटरी इंजीनियरिंग, वाटर क्वालिटी और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट मार्टिन क्रॉनेर्ट शामिल थे। इस अध्ययन को हाल में वेस्ट मैनेजमेंट के जनरल में प्रकाशित किया गया है।

आईआईटी मद्रास के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर और शोध टीम की प्रमुख लिजी फिलिप ने बताया कि भले ही फार्मास्यूटिकल्स और व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद बायोडिग्रेडेशन के लिए जरूरी हैं। मिश्रित कार्बनिक अपशिष्ट और कॉयर पिथ (बल्किंग एजेंट) के अलावा सेप्टेज खाद के दौरान महत्वपूर्ण कार्बामाज़ेपाइन हटाने के लिए उपयुक्त और अनुकूल वातावरण बनाया गया। ऐसे में सेप्टेज प्रबंधन के लिए को-कंपोजिंटिंग को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा सकता है।

ये होता था नुकसान

फिलिप ने कहा कि केमिकल को डिकंपोज करना मुश्किल होता है और यह सेप्टिक टैंक में अन्य ऑर्गेनेक वेस्ट के डिकंपोजिशन रेट को भी प्रभावित करता है। साथ ही इन्हें जहां फेंका जाता है, वह क्षेत्रों की वनस्पतियों और जीवों को भी नुकसान पहुंचाता है। अध्ययनों से पता चला है कि 10-90% फार्मास्यूटिकल्स और व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद मूल रूप में उत्सर्जित होते हैं और संयुग्मित रूप में बाकी होते हैं। फार्मास्यूटिकल्स, विशेष रूप से एंटीबायोटिक्स, एक प्रमुख दिक्कत है, क्योंकि जल निकायों में उनकी उपस्थिति रोग प्रतिरोधक क्षमता जैसी बड़ी परेशानियों को जन्म दे सकती है।

आबादी बढ़ने के साथ हर साल सेप्टिक टैंक जैसी ऑनसाइट स्वच्छता प्रणालियों का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे उचित उपचार के बिना पर्यावरण में सेप्टेज की भारी मात्रा का निपटान हो रहा है। फिलिप ने कहा कि अनुपचारित सेप्टेज निपटान से पर्यावरणीय क्षरण होता है, जिसमें कीमती सतह और भूजल स्रोतों का दूषित होना, गंभीर स्वास्थ्य खतरे और संभावित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसी दिक्कतें होती हैं।

ऐसे किया निदान

इस समस्या के निदान के लिए लिजी फिलिप और उनकी टीम ने फॉर्मास्यूटिकल और पर्सनल केयर उत्पादों के प्रभाव का अध्ययन किया। लिजी की प्रयोगशाला अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में काम कर रही है। सेप्टिक टैंक में सेप्टेज प्रबंधन के लिए इन वेसेल को-कंपोजिटिंग ’पर आधारित एक उपचार रणनीति भी विकसित की है।

इस अध्ययन के लिए टीम ने ट्राइक्लोजन और कार्बामाज़ेपाइन के गिरावट पैटर्न को निर्धारित करने का निर्णय लिया। जबकि ट्राईक्लोसन अन्य उत्पादों में टूथपेस्ट, डिटर्जेंट और साबुन में आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला रोगाणुरोधी यौगिक है। कार्बामाज़ेपिन एक व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला एंटीपीलेप्टिक दवा है।

शोधकर्ताओं ने इन वेसेल कंपोस्टर में सीवर प्लांट से एकत्र किए गए सेप्टेज और मिश्रित ऑर्गेनिक वेस्ट का प्रयोग किया। इसके बाद साइंटिस्ट ने इन प्रदूषकों से होने वाले बदलावों का अध्ययन किया, जिसके बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि को-कंपोजिंटिंग का प्रयोग कर विषैले वेस्टवाटर कीचड़ को शोधित किया जा सकता है। 


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