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कोविड -19 महामारी के कारण MSMEs के लिए बदलती परिस्थितियों पर नजर रख रहा IIA

IIA उत्तर भारत में सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) की एक सर्वोच्च संस्था है जो कोविड -19 महामारी के कारण MSMEs के लिए बदलती परिस्थितियों पर नियमित रूप से नजर रख रहा है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Wed, 13 May 2020 12:49 PM (IST)Updated: Wed, 13 May 2020 12:49 PM (IST)
कोविड -19 महामारी के कारण MSMEs के लिए बदलती परिस्थितियों पर नजर रख रहा IIA
कोविड -19 महामारी के कारण MSMEs के लिए बदलती परिस्थितियों पर नजर रख रहा IIA

नई दिल्ली, जेएनएन। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (IIA) उत्तर भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) की एक सर्वोच्च संस्था है, जो कोविड -19 महामारी के कारण MSMEs के लिए बदलती परिस्थितियों पर नियमित रूप से नजर रख रहा है। आईआईए नियमित रूप से अपने 8000 से अधिक सदस्यों के साथ लगातार संपर्क में है और उनसे प्राप्त फीडबैक के आधार पर स्थिति से निपटने के लिए समय-समय पर राज्य और केंद्र सरकार को रिप्रेजेंटेशन सौंप रहा है। इसके साथ साथ आईआईए अपने सदस्यों को इस कठिनाई का सामना करने के लिए भी तैयार कर रहा है।

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एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं जिसका सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30% योगदान हैं । MSME उद्योगों में कार्यरत कुल कर्मियों के 50% को रोजगार भी दे रहे हैं। भारत में 6.34 करोड़ MSMEs में लगभग 97% सूक्ष्म श्रेणी में हैं, जिसका अर्थ यह है कि 97% MSME में प्लांट और मशीनरी में 25 लाख रुपये से कम का निवेश है। ये सभी सूक्ष्म इकाइयां मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र में है और स्व-वित्तपोषित हैं। मौजूदा कोरोना वायरस महामारी (कोविड -19) की वजह से लागू लॉकडाउन ने इन MSMEs के संचालन को काफी हद तक बाधित कर दिया है, क्योंकि एमएसएम्ई नकद -अर्थव्यवस्था पर निर्भर होते है जो की लॉकडाउन के कारण क्षतिग्रस्त हो चुका है, श्रमिकों की अनुपलब्धता और कच्चे माल एवं परिवहन बुनियादी ढांचे की उपलब्धता में प्रतिबंध से यह क्षेत्र काफी प्रभावित है । इससे पूरी अर्थव्यवस्था में विपरीत प्रभाव पड़ेगा अतः देश में MSME क्षेत्र में एक मजबूत नीति बनाना अति आवश्यक है।

भारत सरकार ने अब तक कुछ सहायता अवश्य की है जिसमे ब्याज दरों में कमी, एनपीए में वृद्धि जिससे इन्सोलवेन्सी को रोका जा सके और कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) के सरकार के हिस्से से भुगतान का प्रावधान शामिल है।

उपरोक्त नीतिगत उपाय कुछ हद तक उत्साहवर्धक हैं परन्तु वे बड़े और अधिक औपचारिक फर्मो के लिए अधिक लाभदाई हैं ना कि छोटी और असंगठित फर्मो के लिए जिनका देश के औद्योगिक परिदृश्य का एक बड़ा हिस्सा हैं।


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