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बेटियों को नहीं पढ़ाने पर लगेगी 30 लाख करोड़ डॉलर की चपत!

अगर दुनिया की हर लड़की 12 वर्ष की गुणवत्तापरक स्कूली शिक्षा ग्रहण करेगी तो दुनिया की महिलाओं की कमाई सालाना 15 से 30 लाख करोड़ डॉलर बढ़ सकती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 13 Jul 2018 01:16 PM (IST)Updated: Fri, 13 Jul 2018 02:24 PM (IST)
बेटियों को नहीं पढ़ाने पर लगेगी 30 लाख करोड़ डॉलर की चपत!
बेटियों को नहीं पढ़ाने पर लगेगी 30 लाख करोड़ डॉलर की चपत!

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट लड़कियों की शिक्षा के बारे में गंभीर चिंता खड़ी करती है। इसके मुताबिक लड़कियों को उनकी शिक्षा पूरी न करने देने का खामियाजा दुनिया को बड़ी कीमत देकर चुकाना पड़ता है। इससे वैश्विक कमाई और उत्पादकता में सालाना 30 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान होता है। इसके बावजूद हर साल दुनियाभर में 13 करोड़ से अधिक लड़कियां स्कूल बीच में ही छोड़ देती हैं। जिन महिलाओं ने माध्यमिक शिक्षा पूरी की है वे उन महिलाओं से दो गुना तक अधिक कमाती हैं, जिन्होंने बिल्कुल पढ़ाई नहीं की है। 

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बच्चियों की शिक्षा पर निवेश जरूरी
जिन लड़कियों ने पूरे 12 वर्षों की स्कूली शिक्षा हासिल की है, वे अपने पुरुष साथी की हिंसा का कम शिकार बनती हैं। उनके बच्चों के कुपोषित होने का खतरा कम होता है और अन्य बच्चों की तुलना में वे अधिक शिक्षा हासिल करते हैं। अगर दुनिया की हर लड़की 12 वर्ष की गुणवत्तापरक स्कूली शिक्षा ग्रहण करेगी तो दुनिया की महिलाओं की कमाई सालाना 15 से 30 लाख करोड़ डॉलर बढ़ सकती है।

शिक्षा मिले तो जीवन संवरे
स्कूली शिक्षा पूरी न होने के चलते लड़कियां जीवन के छह क्षेत्रों में पीछे रह जाती हैं। यह हैं- कमाई का जरिया और जीवन स्तर, विवाह का सही समय और गर्भधारण, परिवार नियोजन, स्वास्थ्य और पोषण, निर्णय लेने और सामाजिक पूंजी के क्षेत्र में।

शिक्षा की राह में चुनौतियां
दुनिया के कई देशों में (खासतौर पर गरीब और रूढ़िवादी) लड़कियों की स्कूली शिक्षा को अहमियत नहीं दी जाती है। उन्हें न तो पढ़ाई करने के मौके दिए जाते हैं और अगर मौके मिल भी जाएं तो उन्हें घर-परिवार, समाज की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

कौन है मलाला यूसुफजई
मलाला युसुफजई को बच्चों के अधिकारों की कार्यकर्ता होने के लिए जाना जाता है। वह पाकिस्तान के खैबर पख्तुनख्वा प्रान्त के स्वात जिले में स्थित मिंगोरा शहर की एक छात्रा है। 13 साल की उम्र में ही वह तहरीक-ए-तालिबान शासन के अत्याचारों के बारे में एक छद्म नाम के तहत बीबीसी के लिए ब्लॉगिंग द्वारा स्वात के लोगों में नायिका बन गयी। अक्टूबर 2012 में, मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने उदारवादी प्रयासों के कारण वे आतंकवादियों के हमले का शिकार बनी, जिससे वे बुरी तरह घायल हो गई और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में आ गई।

वर्ष 2009 में न्‍यूयार्क टाइम्‍स ने मलाला पर एक फिल्‍म भी बनाई थी। स्‍वात में तालिबान का आतंक और महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध विषय पर बनी इस फिल्‍म के दौरान मलाला खुद को रोक नहीं पाई और कैमरे के सामने ही रोने लगी। मलाला डॉक्‍टर बनने का सपना देख रही थी और तालिबानियों ने उसे अपना निशाना बना दिया। उस दौरान दो सौ लड़कियों के स्‍कूल को तालिबान से ढहा दिया था। वर्ष 2009 में तालिबान ने साफ कहा था कि 15 जनवरी के बाद एक भी लड़की स्‍कूल नहीं जाएगी। यदि कोई इस फतवे को मानने से इंकार करता है तो अपनी मौत के लिए वह खुद जिम्‍मेदार होगी।

पाकिस्तान का राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार- 2011
अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में शांति को बढ़ावा देने के लिए उसे साहसी और उत्कृष्ट सेवाओं के लिए, उसे पहली बार 19 दिसम्बर 2011 को पाकिस्तानी सरकार द्वारा 'पाकिस्तान का पहला युवाओं के लिए राष्ट्रीय शांति पुरस्कार मलाला युसुफजई को मिला था।

अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए नामाँकन- 2011
अंतरराष्ट्रीय बच्चों की वकालत करने वाले समूह किड्स राइट्स फाउंडेशन ने युसुफजई को अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए प्रत्याशियों में शामिल किया।

नोबेल पुरस्कार
बच्चों और युवाओं के दमन के ख़िलाफ़ और सभी को शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले भारतीय समाजसेवी कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

हत्या का प्रयास
पाकिस्तान की ‘न्यू नेशनल पीस प्राइज’ हासिल करने वाली 14 वर्षीय मलाला यूसुफजई ने तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चला रखा है। तालिबान आतंकी इसी बात से नाराज होकर उसे अपनी हिट लिस्‍ट में ले चुके थे। संगठन के प्रवक्ता के अनुसार,‘यह महिला पश्चिमी देशों के हितों के लिए काम कर रही हैं। इन्‍होंने स्वात इलाके में धर्मनिरपेक्ष सरकार का समर्थन किया था। इसी वजह से यह हमारी हिट लिस्ट में हैं। 


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