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यदि बदला कोरोना वायरस का स्वरूप तो बढ़ सकती है समस्‍या, 6 माह तक रखनी होगी नजर

भविष्‍य में यदि कोरोना वायरस का स्‍वरूप बदला तो ये पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्‍या बन सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो इसकी वैक्‍सीन को बनाने में कम समय लगेगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 26 Apr 2020 10:37 AM (IST)Updated: Sun, 26 Apr 2020 10:37 AM (IST)
यदि बदला कोरोना वायरस का स्वरूप तो बढ़ सकती है समस्‍या, 6 माह तक रखनी होगी नजर
यदि बदला कोरोना वायरस का स्वरूप तो बढ़ सकती है समस्‍या, 6 माह तक रखनी होगी नजर

डॉ के श्रीनाथ रेड्डी।  आज पूरी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रही है। भारत भी उससे दो-दो हाथ कर रहा है। इसके पहले भी प्लेग, कालरा, हैजा, पोलियो, फ्लू जैसी महामारियों ने इंसानों को खतरे में डाला है लेकिन एक समय के बाद टीके, कारगर दवाओं व कुछ बीमारियों के प्रति हर्ड इम्यूनिटी विकसित होने से उन पर अंकुश लगा है। कुछ संक्रामकबीमारियों का वजूद काफी हद तक खत्म हो चुका है। जिन बीमारियों के वायरस के स्ट्रेन में बदलाव नहीं होता। उनके प्रति हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो जाती है।

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जब किसी संक्रामक बीमारी से 60 से 70 फीसद लोग संक्रमित हो जाते हैं तो यह देखा गया है कि उसके प्रति लोगों में प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है। कोराना वायरस का संक्रमण भी तेजी से फैल रहा है। फिर भी जिन देशों में इसके संक्रमण से अधिक लोग चपेट में आए हैं वहां भी अभी 10 से 20 फीसद लोग इससे संक्रमित नहीं हुए हैं। कई जगहों पर तो सिर्फ तीन से पांच फीसद तक ही लोग संक्रमित हुए हैं। इसलिए इसके प्रति हर्ड इम्यूनिटी विकसित होने में वक्त लगेगा। फ्लू वायरस अक्सर अपना स्वरूप बदलते हैं। यही वजह है कि फ्लू के लिए हर साल या दूसरे साल अलग टीके बनते हैं।

यह बात जरूर है कि एक बार टीका विकसित होने के बाद नए टीके बनाना आसान हो जाता है। यदि कोरोना वायरस स्टेबल रहा, यदि इसमें जल्दी कोई म्यूटेशन नहीं हुआ तो दो-तीन साल में हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो सकती है। यदि वायरस को फैलने के लिए खुली छूट मिल जाए तो हो सकता है कि एक साल में ही इतने लोग संक्रमित हो जाएंगे और फिर लोगों में प्रतिरोधकता भी उत्पन्न हो जाएगी लेकिन यह जोखिम भरा कदम होगा। क्योंकि इसमें बहुत लोगों की जान जाएगी। यदि वायरस स्वरूप बदला तो उससे समस्या बढ़ सकती है। क्योंकि अभी यह नया वायरस है। कितने माह रहेगा, अभी स्पष्ट नहीं है। किसी भी देश को तीन-चार महीने से अधिक का अनुभव नहीं है। छह माह तक उस पर नजर रखनी होगी।

इसलिए आने वाले कुछ महीनों में यह पता चलेगा कि इस बीमारी के जद में आने वाले लोगों में प्रतिरोधकता कितने समय तक बरकरार रहेगी। कोरोना के कई स्ट्रेन ऐसे हैं जो कॉमन कोल्ड के कारण माने जाते हैं। वे मौसम के ही हिसाब से चलते हैं। गर्मी के मौसम में उनका प्रकोप कम हो जाता है और सर्दी के मौसम में फिर उभर आते हैं। ये नया वायरस है, फिर भी उम्मीद है कि इसमें भी मौसम के हिसाब से बदलाव होगा। फ्लू भी गर्मी में कम हो जाता है। लॉकडाउन से इसका संक्रमण वैसे भी काफी कम हुआ है। यह देखना होगा कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद क्या स्थिति रहती है। फिर भी अगले कुछ समय तक फिजिकल डिस्टेंसिंग व मास्क लगाकर बाहर निकलने के नियमों का पालन करना पडे़गा। 

(लेखक पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हैं) 

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