Move to Jagran APP

ICMR ने बताया- कोरोना महामारी का देश के स्वास्थ्यकर्मियों पर पड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के एक अध्ययन में बताया गया है कि कोरोना महामारी का देश के स्वास्थ्यकर्मियों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है। अध्ययन के निष्कर्षों में उन चुनौतियों की ओर इशारा किया गया जो उन्होंने देखें।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Fri, 17 Sep 2021 11:39 AM (IST)Updated: Fri, 17 Sep 2021 11:39 AM (IST)
ICMR ने बताया- कोरोना महामारी का देश के स्वास्थ्यकर्मियों पर पड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) का ताजा अध्ययन।(फोटो: प्रतीकात्मक)

नई दिल्ली, एएनआइ। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने एक नए अध्ययन में बताया है कि कोरोना महामारी का देश के स्वास्थ्यकर्मियों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एक अध्ययन से पता चला है कि काम के घंटों और तीव्रता में बढ़ोत्तरी, लोगों के दुर्व्यवहार और स्वास्थ्यकर्मियों की अतिरिक्त जिम्मेदारियां जिसमें उन्हें नए प्रोटोकॉल के अनुकूल होना था और नई सामान्यता के अनुकूल होना था। इन सभी का स्वास्थ्यकर्मियों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है।

prime article banner

इंडियन जर्नल आफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, कोरोना महामारी ने सोशल और प्रिंट मीडिया प्लेटफार्म पर बड़े पैमाने पर शोषण के अनुभवों के साथ स्वास्थ्यकर्मियों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाला है। अध्ययन में कहा गया है कि भारत में डाक्टरों और नर्सों को कार्य स्थलों को खाली करने के लिए मजबूर करने और देश के कई हिस्सों में स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा की सूचना मिली। इस कारण स्वास्थ्यकर्मियों में तनाव, चिंता, अवसाद और नींद की समस्या पैदा हुई।

अध्ययन के निष्कर्षों में उन चुनौतियों की ओर इशारा करते हैं जो स्वास्थ्यकर्मियों की कार्य संस्कृति में बड़े बदलावों को दिखाते हैं।बल्कि स्वास्थ्यकर्मी इस बदलाव के लिए तैयार नहीं थे। अनिश्चित समय के साथ लंबे समय तक काम करने के परिणामस्वरूप नींद की कमी के साथ-साथ अस्वास्थ्यकर खाने का पैटर्न भी बना। अध्ययन में कहा गया है कि लंबे समय से अलग रहने और कोविड-19 देखभाल कामों में शामिल होने के प्रोटोकाल उपायों के कारण प्रभावित परिवारों और परिवारों से दूर रहना। उनके परिवारों को संक्रमित करने का डर खुद के संक्रमित होने के डर से कहीं अधिक था।

यह अध्ययन 10 शहरों - भुवनेश्वर (ओडिशा), मुंबई (महाराष्ट्र), अहमदाबाद (गुजरात), नोएडा (उत्तर प्रदेश), दक्षिण दिल्ली, पठानमथिट्टा (केरल), कासरगोड (केरल), चेन्नई (तमिलनाडु), जबलपुर (मध्य प्रदेश), कामरूप (असम) और पूर्वी खासी हिल्स (मेघालय) में 967 प्रतिभागियों पर आयोजित किया गया था। इनमें से 54 प्रतिशत उत्तरदाता महिलाएं और 46 प्रतिशत पुरुष थे। उत्तरदाता मुख्य रूप से 20 से 40 वर्ष के आयु वर्ग के थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.