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Kargil war: कारगिल युद्ध में वायु सेना ने इस तरह तोड़ा था पाक सेना का मनोबल

Kargil war एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक अपने हमलों से वायु सेना ने पाकिस्तानी सेना का मनोबल पूरी तरह तोड़ दिया था। यह पहला युद्ध था जब वायु सेना ने जीपीएस का इस्तेमाल किया था।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Sun, 14 Jul 2019 11:14 PM (IST)Updated: Sun, 14 Jul 2019 11:14 PM (IST)
Kargil war: कारगिल युद्ध में वायु सेना ने इस तरह तोड़ा था पाक सेना का मनोबल
Kargil war: कारगिल युद्ध में वायु सेना ने इस तरह तोड़ा था पाक सेना का मनोबल

नई दिल्ली, आइएएनएस। कारगिल युद्ध के दौरान भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों पर फिर से कब्जा जमाने में वायु सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक अपने हमलों से वायु सेना ने पाकिस्तानी सेना का मनोबल पूरी तरह तोड़ दिया था। यह पहला युद्ध था जब वायु सेना ने जीपीएस का इस्तेमाल किया था। साथ ही रेकी और नवाचार के उपयोग ने कारगिल युद्ध की जीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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मई 1999 में शुरू हुए कारगिल युद्ध के 20 साल पूरे होने पर एयर वाइस मार्शल (सेवानिवृत्त) मनमोहन बहादुर ने बताया कि वायु सेना ने इस दौरान 15000 फीट और उससे अधिक ऊंचाई पर स्थित पोस्ट पर हथियार पहुंचाए। ऐसा विश्व में पहले कभी नहीं हुआ था। एयर चीफ मार्शल एवाई टिपनिस के तत्कालीन स्टाफ आफिसर रहे बहादुर ने कहा कि भारतीय वायुसेना के हमलों से पाकिस्तानी सेना को बहुत नुकसान हुआ, इससे उन चोटियों पर कब्जा जमाने में सेना को बहुत सहूलियत हुई, जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था।

टाइगर हिल पर सटीक तौर पर लेजर गाइडेड बम (एलजीबी) के हमले भारतीय वायु सेना के चलते ही संभव हो सके। ग्रुप कैप्टन (सेवानिवृत्त) संदीप मेहता ने बताया कि पाक के आपूर्ति डिपो पर सटीक हमले वायुसेना द्वारा जुटाई गई सटीक खुफिया सूचनाओं के कारण ही संभव हो सके थे। चोटियों पर कब्जा जमाए बैठे दुश्मनों की सही संख्या के बारे में पता लगाने के लिए भी तमाम नवाचारों का उपयोग किया था।

बांध केसरिया बाना दुश्मनों को खदेड़ने की खाई थी कसम

तोलोलिंग चोटी पर कब्जा जमाए बैठे घुसपैठिए गोलियों की बारिश कर रहे थे, लेकिन 2 राजपूताना राइफल्स के सैनिकों ने अपने सिर पर केसरिया बाना बांधकर प्रण कर लिया था कि चोटी पर फिर से कब्जा किए बिना वे वापस नहीं लौटेंगे। इस दौरान बुरी तरह घायल हुए और उन्हीं वजहों से समय से पहले सेवानिवृत्त हुए कैप्टन अखिलेश सक्सेना ने कहा कि एक जून को 'तोलोलिंग' और 29 जून को '3 पिंपल्स' चोटी पर फिर से कब्जा करने में कई बहादुर सैनिकों को अपनी शहादत देनी पड़ी।

इनमें कैप्टन विजयंत थापर और मेजर पद्मपति आचार्य भी शामिल थे। अत्यधिक खून बहने से अधिकांश सैनिकों की मौत हुई थी। टाटा पावर में उपाध्यक्ष सक्सेना की कारगिल युद्ध शुरू होने से एक महीने पहले ही शादी हुई थी और 3 पिंपल्स की लड़ाई के दौरान सक्सेना बुरी तरह घायल हो गए थे। उन्होंने युद्ध के दौरान बोफोर्स तोप की भूमिका की भी तारीफ की।

कारगिल के लिए खुफिया विफलता जिम्मेदार

कारगिल के लिए खुफिया विफलता को जिम्मेदार ठहराते हुए सक्सेना ने कहा कि सर्दियों के दौरान कारगिल से दोनों देश अपने सैनिक हटा लेते हैं। अगर सर्दियों के दौरान यहां पर सैनिकों की तैनाती की जाती है तो प्रतिदिन लगभग 12 करोड़ का खर्च आएगा।

पुलवामा ने दिखाया कि भारत हमला करने में संकोच नहीं करेगा: पार्थसारथी

यह ठीक है कि बार-बार पिटने के बावजूद पाकिस्तानी सेना का रवैया नहीं बदला है, लेकिन पुलवामा के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक से यह साफ हो गया है कि भारत ऐसा हमला फिर से करने में संकोच नहीं करेगा। यह मानना है कि कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान में उच्चायुक्त रहे जी पार्थसारथी का।

उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध से अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित था, लेकिन चीन सहित किसी भी देश ने कोई टिप्पणी नहीं की। उन्होंने कहा कि वर्तमान इमरान सरकार निर्वाचित नहीं, बल्कि सेना द्वारा चुनी गई सरकार है।


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