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नई शिक्षा नीति बेहतर, लेकिन इसको लेकर कई चुनौतियां भी सरकार के सामने

नई शिक्षा नीति को लागू करने के साथ सरकार के समक्ष कुछ चुनौतियां भी होंगी। देश में टीचरों की कमी इसी चुनौती का एक हिस्‍सा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 11:24 AM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 11:24 AM (IST)
नई शिक्षा नीति बेहतर, लेकिन इसको लेकर कई चुनौतियां भी सरकार के सामने
नई शिक्षा नीति बेहतर, लेकिन इसको लेकर कई चुनौतियां भी सरकार के सामने

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। 34 साल बाद देश में नई शिक्षा नीति लागू की गई है। इस शिक्षा नीति को बेहद उत्साहवर्धक बताया जा रहा है। यह प्रगतिशील, समृद्ध, सृजनशील एवं नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण ऐसे नए भारत की कल्पना करती है जो अपने गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित करने का स्वप्न दिखाती है। अभी तक चल रही शिक्षा नीति 1986 में लागू हुई और 1992 में संशोधित हुई लेकिन 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए लगातार अक्षम साबित हो रही थी। इसीलिए रट्टू तोता बनकर ज्ञानार्जन करने की जगह नई शिक्षा नीति में सीखने पर जोर दिया गया है। शिक्षाविदों की मानें तो आज के जमाने में सबको शिक्षा, सस्ती शिक्षा, कौशल विकास वाली शिक्षा मुहैया कराने वाली इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तमाम खूबियां हैं, लेकिन एक मत में सब यह भी मानते हैं कि इसका क्रियान्वयन बड़ी चुनौती होगी। हालांकि सरकार पूरी नीति को समग्र रूप से लागू किए जाने की अवधि 2040 तक लेकर चल रही है, लेकिन कुछ बातों की अस्पष्टता उसे जल्द दूर करने की दरकार होगी।

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पाठ्यक्रम कैसे बदलेंगे, उनका आधार क्या होगा, स्कूलों में ज्यादा नामांकन बढ़ाने का लक्ष्य है, इसे बिना निजी भागीदारी के कैसे पूरा किया जा सकेगा? किसी देश की शिक्षा प्रणाली की बुनियादवहां के शिक्षक होते हैं। देश में कुशल शिक्षकों की घोर कमी है। उनको प्रशिक्षित करने या नए मानदंड तय करने होंगे। उच्च शिक्षा के लिए गैर जरूरी बैरियर्स को हटाना होगा। दुनिया में सबसे युवा मानव संसाधन हमारे पास है। दुनिया के कई देशों की जितनी कुल आबादी है, उतने हमारे यहां हर साल ग्रेजुएट पैदा होते हैं। अगर हम अपनी नई शिक्षा नीति के बूते इस अपार संपदा को सहेज और संवार सके तो निश्चित ही दुनिया भारत का जयगान करने पर विवश होगी।

पीएम के बोल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को 21वीं सदी की जरूरत बताया है। देश को संबोधित करते हुए उन्होंने समझाया कि कैसे यह शिक्षा नीति देश को विकास और सशक्त बनाने में मदद करेगी। इसके लागू होते ही पढ़ाई को लेकर जो बोझ छात्रों के कंधों पर सालों से है वह कम होगा।

लंबे समय से छात्र भेड़चाल सिस्टम को फॉलो कर रहे हैं। ऐसे में उनके भीतर इमेजिनेशन की कमी, क्रिएटिव थिकिंग, पैशन, फिलॉसफी ऑफ एजुकेशन आदि खत्म हो चुका है, लेकिन नई शिक्षा नीति में इन सभी पर काम किया गया है।

ये सच है कि 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है। ऐसे में हर सवालों पर ध्यान दिया गया है। इसे बनाते समय खास रूप से क्रिएटिविटी, क्यूरॉसिटी और कमिटमेंट मेकिंग पर ध्यान दिया गया है।

बच्चों के घर की बोली और स्कूल में सीखने की भाषा एक ही होनी चाहिए, ताकि बच्चों को सीखने में आसानी होगी। अभी पांचवीं क्लास तक बच्चों को ये सुविधा मिलेगी। अभी तक शिक्षा नीति व्हाट टू थिंक के साथ आगे बढ़ रही थी, अब हम लोग हाऊ टू थिंक पर जोर देंगे।

नई शिक्षा नीति का स्वरूप जड़ से जग तक, मनुज से मानवता तक, अतीत से आधुनिकता तक सभी बिंदुओं का समावेश करते हुए तय किया गया है।

21वीं सदी के भारत से पूरी दुनिया को बहुत अपेक्षाएं हैं। भारत का सामथ्र्य है कि वो टैलेंट और टेक्नोलॉजी का समाधान पूरी दुनिया को दे सकता है, नई एजुकेशन पॉलिसी इस जिम्मेदारी को भी एड्रेस करती है।


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