Move to Jagran APP

अपने लेखन से लगाती हैं मरहम, दिखाती हैं मानसिक-शारीरिक चुनौतियों से लड़ने का रास्ता

अपनी खास ऊर्जा तकनीक से वह लोगों को मानसिक एवं शारीरिक चुनौतियों से लड़ने का रास्ता दिखाती हैं।

By Manish PandeyEdited By: Published: Sat, 08 Aug 2020 12:24 PM (IST)Updated: Sat, 08 Aug 2020 12:24 PM (IST)
अपने लेखन से लगाती हैं मरहम, दिखाती हैं मानसिक-शारीरिक चुनौतियों से लड़ने का रास्ता
अपने लेखन से लगाती हैं मरहम, दिखाती हैं मानसिक-शारीरिक चुनौतियों से लड़ने का रास्ता

नई दिल्ली, अंशु सिंह। न जाने कितने ही लोगों के दुख-दर्द और तकलीफ को सुनने के बाद उनमें नई उमंग एवं जीवन के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए प्रेरित करता है एक मनोचिकित्सक। जिन्हेंं हम हीलर, थेरेपिस्ट, हैप्पीनेस कोच आदि के नाम से भी जानते हैं। इसी पेशे से जुड़ी महिला विशेषज्ञ अपने अनुभवों को पुस्तक व गाइड बुक के रूप में समेटने का प्रयास कर रही हैं ताकि अधिक से अधिक लोगों को विभिन्न मानसिक रोगों व समस्याओं के प्रति जागरूक कर सकें। खास बात यह कि पाठक भी उनसे जुड़ाव महसूस कर रहे हैं।

loksabha election banner

अमेरिका की प्रतिष्ठित एनर्जी थेरेपिस्ट एवं बेस्ट सेलिंग लेखिका हैं एमी बी स्केर। इन्हें एक्सीडेंटल गुरु के नाम से भी जाना जाता है। अपनी खास ऊर्जा तकनीक से वह लोगों को मानसिक एवं शारीरिक चुनौतियों से लड़ने का रास्ता दिखाती हैं। उन्हेंं समझाती हैं कि जीवन कितना सुंदर है और खुश रहना कितना आवश्यक। बचपन से ही अमेरिकी कवयित्री एवं एक्टीविस्ट माया एंजेलो को पढ़ती आ रहीं एमी ने उनसे ही प्रेरणा लेकर लेखन की ओर रुख किया। हालांकि इनकी पहली किताब भारत यात्रा के बाद ही सामने आई। एमी ने अब तक हील योरसेल्फ वेन नो वन एल्स कैन, दिस इज हाऊ आई सेव माई लाइफ एवं हाऊ टू हील योरसेल्फ फ्रॉम एंग्जाइटी (न्यूयॉर्क बेस्ट सेलर) नाम से किताबें आईं हैं, जो काफी हद तक उनके अनुभवों पर आधारित हैं। इन किताबों का करीब दस भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है।

भारत में मिली लिखने की प्रेरणा

एक दौर था जब एमी स्वयं कई गंभीर रोगों से संघर्ष कर रही थीं। हर प्रकार की दवा और इलाज को आजमाने के उपरांत उनका भारत आना हुआ था और उस यात्रा के कई उद्देश्यों में से एक था खुद को हर शारीरिक व मानसिक व्याधि से मुक्त करना। इसमें वह काफी हद तक सफल भी हुईं। एमी ने पाया कि अमेरिकी या पश्चिमी सभ्यता में लक्षणों व रोगों पर अधिक ध्यान दिया जाता है, जबकि भारतीय चिकित्सा पद्धति मन को भी समान अहमियत देती है और बताती है कि कैसे मन की स्थिति से शारीरिक अवस्था प्रभावित होती है अर्थात जब कोई इंसान अधिक चिंता करता है, क्रोध में रहता है, स्वयं व दूसरों के प्रति आलोचनात्मक रवैया रखता है तो उसका शरीर उसी अनुसार प्रतिक्रिया करता है और वह बीमारियों का आश्रय स्थल बन जाता है। अंतत: एमी ने अपने तमाम ऐसे अनुभवों को पुस्तक का रूप दिया और पाठकों ने उसे हाथों हाथ लिया।

लिखने के लिए जरूरी है अध्ययन

इस संदर्भ में मनोचिकित्सक एवं लेखिका अभिलाषा कहती हैं कि एक विशेषज्ञ लेखक जब कोई रचना करता है तो उसकी प्रामाणिकता कहीं अधिक होती है। वह बचपन का एक किस्सा सुनाती हैं, मेरे पिताजी वन विभाग में अधिकारी थे। उसी दौरान कुछ डकैतों ने समर्पण किया था और सरकार ने पुनर्वासित करने के लिए उन्हेंं उनकी योग्यता के अनुकूल नौकरियां दी थीं। हमारे घर पर भी ऐसे कुछ लोग माली आदि के रूप में काम करते थे। जब वे दादाजी को अपनी कहानी सुनाते तो मैं भी सुना करती। इससे मैं कम उम्र में यह जान पाई कि जंगल का जीवन कितना कठिन होता है और कैसे उसके बीच रहने वाले पेड़, पौधों से अपना गुजारा करते हैं। आहार भी प्रकृति प्रदत्त होता है और दवा भी प्रकृति प्रदत्त होती है। कहने का आशय यह है कि जब मैंने समझा कि सबसे बड़ी हीलर तो हमारी प्रकृति ही है तो मैंने उसका गहराई से अध्ययन करना शुरू किया। धीरे-धीरे वैदिक साइंस में रुचि बढ़ी और मैंने कई रिसर्च पेपर्स लिखे, जो प्रकाशित भी हो चुके हैं। अभिलाषा ने पब्लिक हेल्थ एवं साइकोलॉजी में मास्टर्स करने के अलावा अमेरिका से लाइफ कोच का र्सिटफिकेशन भी प्राप्त किया है और कंपनियों को कंसल्टेंसी देती हैं।

चौथी कक्षा का बच्चा बना प्रेरणा

लेखनयात्रा की शुरुआत कैसे हुई? इस बारे में अभिलाषा कहती हैं, दिल्ली में एक बार मेरे पास चौथी कक्षा का बच्चा आया, जो ड्रग एडिक्ट था। लोग उसके जरिए ड्रग सप्लाई भी करते थे। यह मेरे लिए बहुत हैरान करने वाली घटना थी। मैंने छानबीन की कि कैसे उन अपराधियों का नेटवर्क काम करता है और कौन-कौन से लोग शामिल होते हैं। जानकारी हासिल करने में मुझे पुलिस, सिक्योरिटी एवं इंटेलिजेंस एजेंसियों से बहुत सहयोग मिला। काफी शोध करने के बाद 2016 में नेशनल सिक्योरिटी न्यू चैलेंजेज एंड डायमेंशंस नाम से चार सौ पन्नों की मेरी किताब आई। यूं कहें कि बच्चे ने मुझे किताब लिखने के लिए प्रेरित किया। अभिलाषा का कहना है कि सूचना प्रौद्योगिकी के विकास से अपराध का रंग-रूप भी बदल गया है। इससे लोगों के मानसिक, शारीरिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ रहा है। यह बहुत खतरनाक भी है। एक संवेदनशील नागरिक और थेरेपिस्ट होने के नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैैं शोधपरक तथ्यों को किताबों के माध्यम से समाज के सामने लाऊं।

ओवर थिंकिंग पर रची किताब

लाइफ एवं पैरेंटिंग कोच डॉ. सलोनी सिंह के समक्ष भी अनेक प्रकार की समस्याएं लिए लोग आते हैं। इनमें सबसे अधिक परेशान जरूरत से अधिक सोचने वाले होते हैं। हालांकि ब्लॉग आदि के जरिए वह मानसिक मुद्दों पर लोगों को जागरूक करती आ रही थीं, लेकिन एक दिन उन्होंने ऐसे तमाम अनुभवों को किताब में समेटने का फैसला किया और सामने आया हाऊ टू स्टॉप ओवरथिंकिंग इन 3 मिनट। सलोनी कहती हैं, इन दिनों ओवर थिंकिग की समस्या काफी बढ़ गई है। ऐसे में मेरी शॉर्ट गाइड पढ़ने के बाद लोग त्वरित अपनी आदतों में सुधार ला सकते हैं। कम से कम कोशिश तो कर ही सकते हैं। इस किताब के माध्यम से मैंने यही संदेश देने का प्रयास किया है कि अगर एक इंसान दृढ़ संकल्प कर ले तो वह जरूरत से ज्यादा सोचने की आदत को बदल सकता है। सलोनी को लिखने का शौक रहा है। इसलिए किताब को पूरा करने में दो-तीन महीने ही लगे।

अधिक लोगों तक पहुंचना है

वर्तमान दौर में हर किसी का मनोचिकित्सकों, लाइफ कोच, हीलिंग एक्सपर्ट से सीधे संपर्क करना आसान नहीं। ऐसे में अलग-अलग मानसिक स्थितियों पर लिखी गईं किताबें लोगों का सहारा बन रही हैं और एक गाइड की तरह उन्हेंं राह दिखा रही है। पिछले बीस साल से एक स्तंभकार के रूप में पहचान रखने वाली डॉ. बिंदा सिंह कहती हैं, काउंसलिंग के दौरान जब हम दूसरों को सलाह देते हैं तो खुद के लिए भी एक मोटिवेशन उत्पन्न होता है कि क्यों न इसे डॉक्यूमेंट किया जाए? जिसका फायदा बाद में अन्य लोगों को भी हो। इसी ध्येय के साथ चार साल पहले मैंने मैं क्या करूं डॉक्टर नाम से पुस्तक लिखी। मेरी राय में किताब के माध्यम से किसी विषय के बारे में समग्रता से जाना जा सकता है और पहुंच अधिक लोगों तक हो सकती है। स्कूली बच्चे तक इससे लाभान्वित हो सकते हैं। हां, इसके लिए पुस्तकों की भाषा जितनी सहज एवं सरल होगी, उतनी ही अधिक उसकी ग्राह्यता होगी।

शोधपरक पुस्तकों की बढ़ी मांग

बचपन से ही किताबों से घिरी रही हूं। घर में अलग-अलग मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान होते रहने से पढ़ने और लिखने का शौक भी पुराना है यानी अवचेतन मन में लिखने की लगन काफी समय से रही है। मैं मानती हूं कि कॉग्निटिव मेमोरी होने के कारण लोगों को कहानियों के अंदाज में कुछ सुनाना और ज्ञान देना आसान होता है। वे उसे समझने के अलावा याद रख पाते हैं। कहानियों में एक संदेश भी छिपा होता है। हालांकि हर किसी का कोर सब्जेक्ट रिसर्च आधारित नहीं होता, लेकिन कोविड-19 के कारण पाठकों में जागरूकता आ रही है और वे शोधपरक पुस्तकें पढ़ रहे हैं। यही कारण है कि इन दिनों काफी थेरेपिस्ट और मनोचिकित्सकीय पेशे से जुड़ी महिलाएं किताबें लिख रही हैं और उनकी स्वीकार्यता भी बढ़ी है।

(डॉ. अभिलाषा द्विवेदी, लाइफ एंड वेलनेस कोच एवं संस्थापक, वैदिक वाइब्रेशंस)

पाठकों से बना सीधा संबंध

एक मनोविज्ञानी के तौर पर मैं करीब बारह साल से हीलिंग के पेशे से जुड़ी हूं। बहुत सारे अनुभव रहे हैं, जिनके आधार पर किताब लिखी है। मेरी केस स्टडीज असल जिंदगी से प्रेरित हैं। इसलिए पाठक उससे कनेक्ट कर पा रहे हैं। काफी अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली हैं। हौसला मिला है कि माता-पिता और अभिभावकों को लेकर अगली किताब पर काम कर सकूं। मुझे यह भी अहसास था कि नए लेखक के लिए किताब प्रकाशन की प्रक्रिया कितनी लंबी होती है, लेकिन समय की नजाकत एवं लोगों की जरूरत को देखते हुए मैं इसे जल्द प्रकाशित कराना चाहती थी। इसलिए किसी बड़े नाम की बजाय ऐसे प्रकाशक से संपर्क किया, जो तत्काल इसे प्रकाशित कर सकता हो और मैं इसमें सफल रही।

(डॉ. सलोनी सिंह, लाइफ एवं पैरेंटिंग कोच)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.