इस बार मानसून के देरी से आने का कितना पड़ेगा असर
भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक मानसून अपने सामान्य तारीख से पांच दिन बाद यानी छह जून को केरल तट को छुएगा।
नई दिल्ली, जेएनएन। मानसून को लेकर भारतीय मौसम विभाग का पूर्वानुमान आ चुका है। इस सरकारी एजेंसी के मुताबिक भारतीय तन-मन को भिगोने वाला मानसून अपने सामान्य तारीख से पांच दिन बाद यानी छह जून को केरल तट को छुएगा। सामान्य तौर पर मानसून के एक जून को केरल तट पर पहुंचने के अगले चार महीनों जून, जुलाई, अगस्त और सितबंर को मानसूनी सीजन कहा जाता है। इन चार महीनों में देश की सालाना बारिश की 70 फीसद (890 मिमी) हिस्सेदारी होती है। मानसूनी बारिश की गुणवत्ता या मात्रा में उसके देरी से आने का कोई असर नहीं होता है। यह सिर्फ एक घटना है जो भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून के आगे बढ़ने को बताती है। मानसून में देरी सिर्फ देश के अन्य हिस्सों में उसके पहुंचने की तारीख को आगे खिसका सकती है। यह असर भी सिर्फ दक्षिण भारत के राज्यों तक ही सीमित होता है। इसका मतलब यह नहीं कि देश के अन्य हिस्सों तक भी यह देरी से पहुंचेगा।
ऐसे तय होती है पहुंचने की तारीख
केरल तट पर मानसून पहुंचने के पूर्वानुमान में कई मानकों का इस्तेमाल किया जाता है। यदि दस मई के बाद केरल और लक्षद्वीप के 14 तय मौसम केंद्रों में से 60 फीसद में न्यूनतम 2.5 मिमी बारिश लगातार दो दिन होती है। तो इससे मानसून की आहट मानी जाती है। इसी के साथ हवा और तापमान को लेकर अन्य हालात भी अगर मानकों को समयानुसार पूरा करते हैं तो माना जाता है कि मानसून सामान्य समय से पहुंच रहा है।
केरल से आगे बढ़ाने वाले कारक
केरल पहुंचने के बाद उसका उत्तर की तरफ बढ़ने के लिए कई कारक जिम्मेदार होते हैं। इनमें स्थानीय स्तर पर कम वायु दबाव क्षेत्र का बनना भी शामिल होता है। अगर स्थानीय कारक मजबूत होते हैं तो देरी से पहुंचने के बाद भी देश के अन्य हिस्सों तक इसकी आमद समय से होती है। केरल पहुंचने के बाद 15 जुलाई तक यह पूरे देश को अपनी जद में ले लेता है।
अंडमान और निकोबार में सबसे पहले बारिश
अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों पर मानसूनी बारिश 15 से 20 मई के दौरान ही शुरू हो जाती है। केरल तट पर यह प्रक्रिया मई के अंतिम सप्ताह में शुरू होती है। हालांकि जब तक तय दशाएं नहीं दिखाई देतीं, तब तक मानसून के आगमन की घोषणा नहीं की जाती है।
पूर्वानुमान और पहुंचने की वास्तविक तिथि
मौसम विभाग को पहले लाल बुझक्कड़ की संज्ञा हासिल थी। लेकिन तकनीक और विज्ञान के विकास ने इसे बहुत आधुनिक कर दिया है। पहले के मुकाबले अब इसका अनुमान काफी सटीक होने लगा है।
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