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जानें, कैसे Coronavirus के खिलाफ 'महिला राष्ट्राध्यक्ष' अपने देशों को बढ़ा रही आगे

COVID-19 गार्जियन के अनुसार जर्मनी न्यूजीलैंड डेनमार्क से लेकर ताईवान तक में महिला राष्ट्राध्यक्षों ने काफी अच्छा काम किया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 28 Apr 2020 10:11 AM (IST)Updated: Tue, 28 Apr 2020 02:56 PM (IST)
जानें, कैसे Coronavirus के खिलाफ 'महिला राष्ट्राध्यक्ष' अपने देशों को बढ़ा रही आगे
जानें, कैसे Coronavirus के खिलाफ 'महिला राष्ट्राध्यक्ष' अपने देशों को बढ़ा रही आगे

नई दिल्ली, जेएनएन। COVID-19: दुनियाभर के देश कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं, जो उनके राजनीतिक नेतृत्व के लिए कसौटी साबित हो रहा है। लॉकडाउन के कारण कई देशों के आर्थिक हालात बिगड़ रहे हैं, ऐसे में राजनीतिक नेतृत्व के प्रति कई देशों में असंतोष है। हालांकि जनतांत्रिक देशों में हालात ज्यादा कठिन हैं, क्योंकि सरकारें जनता के प्रति सीधे उत्तरदायी हैं। ऐसे में यदि महिला नेता के हाथ में कमान है तो उन्हें पुरुष नेताओं की तुलना में अधिक परखा जा रहा है।

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गार्जियन के अनुसार जर्मनी, न्यूजीलैंड, डेनमार्क से लेकर ताईवान तक में महिला राष्ट्राध्यक्षों ने काफी अच्छा काम किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति की तरह ही ताईवान की प्रधानमंत्री विश्र्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की तीखी आलोचक हैं। उनके दबाव में ही डब्ल्यूएचओ ने अपनी गलती मानी थी। आइये जानते हैं कुछ जनतांत्रिक देशों की महिला राष्ट्राध्यक्ष संकट के इस समय में अपने देशों को कैसे आगे बढ़ा रही हैं।

मजबूत एंजेला मर्केल : दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था को संभालना जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के लिए कतई आसान नहीं था। उन्होंने कोरोना संक्रमण के यूरोप में आते ही तेजी से और सख्त फैसले किए। टेस्टिंग पर जोर दिया और आइसीयू बेड तैयार कराए। जहां शुरुआत में जर्मनी के बारे में अंदेशा था कि वहां कम से कम एक लाख लोगों की मौत होगी, वहां रविवार तक मौत का आंकड़ा पांच हजार से कम है। ऑनलाइन सर्वे में मर्केल को 70 फीसद लोगों का समर्थन हासिल है। वह वैज्ञानिक तरीके से लोगों को लॉकडाउन के फायदे बता रही हैं।

दूरदर्शी वेन : ताईवान की राष्ट्राध्यक्ष तसाई इंग-वेन ने बेहतरीन नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया है। वुहान में रहस्यमय बुखार (जिसे बाद में कोविड-19 नाम दिया गया) के कहर बरपाना शुरू करते ही वेन ने बचाव के कदम उठाने शुरू कर दिए। जनवरी के पहले हफ्ते से उन्होंने यात्रा प्रतिबंध लगा दिए। साथ ही सामाजिक रूप से साफ-सफाई जैसे कदमों पर जोर दिया। हालांकि उन्होंने पूरी तरह से लॉकडाउन कभी नहीं किया लेकिन, समय रहते प्रभावी कदम उठाने के कारण चीन के सीधे संपर्क में होने के बावजूद महज 124 लोग ही संक्रमित हुए और मौतें महज छह। डब्ल्यूएचओ पर वेन भी सख्त रही हैं। वेन ने डब्ल्यूएचओ पर चीन को शह देने और जानकारी छुपाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि ताईवान की जानबूझकर डब्ल्यूएचओ ने अनदेखी की।

युवा और ताकतवर साना : दुनिया की सबसे युवा प्रधानमंत्री साना मारिन ने अपने सख्त फैसलों से अलग पहचान बनाई। फिनलैंड में कड़ा लॉकडाउन लागू किया गया, गैर-जरूरी यात्राओं को पूरी तरह से रोक दिया गया। जहां पड़ोसी देश स्वीडन में कोरोना ने कहर बरपा दिया, वहीं फिनलैंड में 140 लोगों की मौत हुई और चार हजार लोग कोरोना से संक्रमित हुए।

सोलबर्ग की अनोखी रणनीति : नॉर्वे में रविवार तक 7200 केस सामने आ चुके थे और 182 लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि इटली, फ्रांस, ब्रिटेन, स्पेन जैसे देशों की तुलना में नॉर्वे ने बेहतरीन काम किया। राष्ट्राध्यक्ष इरना सोलबर्ग ने सख्ती से लॉकडाउन का लागू किया और ज्यादा टेस्टिंग पर जोर दिया। वयस्कों की जगह बच्चों को संबोधित करने पर जोर दिया, ताकि वे लॉकडाउन और शारीरिक दूरी का पालन करने के लिए मां-बाप पर जोर डाल सके। उन्होंने दो बार प्रेस कॉन्फ्रेंस सिर्फ बच्चों के लिए कीं।

कार्टिन ने कराए फ्री टेस्ट : आइसलैंड की प्रधानमंत्री कार्टिन जकोबस्डोटिर ने लोगों के फ्री टेस्ट कराए। इसका फायदा भी मिला। अब तक 12 फीसद जनसंख्या का कोरोना टेस्ट हो चुका है। यहां रविवार तक मरने वालों की संख्या 10 थी, जबकि संक्रमितों की संख्या 1800 से ज्यादा।

मेट की तेजी : डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेट फ्रेडरिक्शन ने तेजी से प्रभावी फैसले किए। 13 मार्च को देश की सीमाएं सील की और कुछ दिनों बाद स्कूलकॉलेज बंद कर दिए। 10 से ज्यादा लोगों के एकसाथ एकत्रित होने पर पाबंदी लगा दी। वह अब भी शारीरिक दूरी को लागू करा रही हैं। उन्होंने लॉकडाउन से बाहर आने के लिए पुख्ता कार्यक्रम बनाया है। पड़ोसी देश बेल्जियम में जहां छह हजार मौते हुईं, वहीं डेनमार्क में रविवार तक 370 लोगों की मौत हुई।

सख्त एड्रेन : न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैकेडिंया एड्रेन ने लॉकडाउन को प्रभावी तरीके से लागू किया। वह लगभग हर दिन वीडियो संदेश जारी करती हैं। हर बार संदेश बहुत साफ होता है कि घरों में रहें। कफ-बुखार है तो तुरंत डॉक्टरों से संपर्क करें। उन्होंने लोगों से पड़ोसियों का ध्यान और धैर्य रखने के लिए प्रेरित किया। कई ऑनलाइन सर्वे में उन्हें 80 फीसद से ज्यादा लोगों ने समर्थन दिया है। न्यूजीलैंड में 14 मार्च के बाद आने वाले हर शख्स को 14 दिन के अनिवार्य क्वारंटाइन में रहना पड़ा। सख्ती का असर रहा कि न्यूजीलैंड में अब तक महज 1182 लोग रविवार तक संक्रमित हुए और 18 की मौत हुई।

सिल्वेरिया का साफ संदेश : कैरेबियाई आइलैंड समूह का एक छोटा सा देश है सिंट मार्टेन। आबादी 41,500 और वेंटीलेटर हैं दो। वहां की प्रधानमंत्री है सिल्वेरिया जैकेब्स। इस देश की अर्थव्यवस्था पर्यटन आधारित है। सालाना 5 लाख पर्यटक आते हैं। सिल्वेरिया लॉकडाउन नहीं करना चाहती थीं। ऐसे में उन्होंने शारीरिक दूरी का सख्ती से पालन करने के लिए कहा। उन्होंने सख्त शब्दों में में कहा, ‘आप बाहर नहीं निकल सकते। आपके घर खाना खत्म हो गया है तो आप सेरेल खाइये, ओट्स खाइये, बासी खाइये लेकिन, बाहर नहीं जा सकते।’


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