जानिए, भारत का सबसे 'स्वच्छ शहर' कैसे लगाता है अपने कचरे को ठिकाने?
डोर-टू-डोर यानि लोगों के घर-घर जाकर कचरा एकत्रित करने की सेवा जून 2015 से शहर में 84 वॉर्डों में से दो में पायलट परियोजना के रूप में शुरू हुई थी।
इंदौर, जेएनएन। पिछले साल तक, इंदौर अपने प्लास्टिक कचरे से भरा पड़ा था। लोग अंधाधुंध प्लास्टिक का इस्तेमाल करते थे, जो बाद में इकट्ठा करके और जला दिया जाता था, इस तरह प्लास्टिक के जलने से हवा में जहरीला धुआं पहुंच रहा था। लेकिन इस साल जनवरी में शहर ने प्लास्टिक को री-साइकिल करने के अभियान चलाया। इस री-साइकिल प्लास्टिक को सड़क बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। यह सिर्फ एक उदाहरण है कि मध्य प्रदेश के सबसे व्यस्त शहरों में से एक इंदौर ने इस वर्ष भारत के सबसे ज्यादा स्वच्छ शहर की सूची में कैसे अपना नाम दर्ज कराया है।
टीओआई की खबर के मुताबिक, आज 1,000 से अधिक मीट्रिक टन कचरा विभिन्न स्रोतों से रोजाना एकत्र किया जाता है। फिर चाहे वो कोई घर हो या व्यावसायिक प्रतिष्ठान। डोर-टू-डोर यानि लोगों के घर-घर जाकर कचरा एकत्रित करने की सेवा जून 2015 से शहर में 84 वॉर्डों में से दो में पायलट परियोजना के रूप में शुरू हुई थी। इस योजना को शानदार सफलता मिली। इस योजना को शहर के सभी लोगों तक पहुंचने में लगभग एक साल का समय लग गया। अब इंदौर के हर घर से इस योजना के तहत अब कचरा संग्रहित किया जाता है।
शहर के निगम ने अब बड़े लक्ष्यों को निर्धारित किया है, इसमें स्रोत पर पूर्ण अपशिष्ट अलगाव, देवगुरडिया में शहर की लैंडफिल साइट का प्रबंधन और 2019 तक कचरा-निर्माण संयंत्र स्थापित करना शामिल है।
दरअसल, देवगुरडिया की लैंडफिल साइट पर कचरे का प्रबंधन करना निगम के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। कचरे में आग लगने से खतरनाक गैस वातावरण में मिलती रहती है। यहां अब नगरपालिका अधिकारियों ने एक आधुनिक ट्रांसफर स्टेशन स्थापित करने की योजना बनाई है।
हालांकि पर्यावरणविद कहते हैं कि इस समस्या का हल कचरे का पृथक्करण और प्लास्टिक की थैलियों का पूर्ण प्रतिबंध है। यह व्यवहारिक बदलाव की मांग करता है। लेकिन अब कि इंदौर निवासियों ने स्वच्छता अभियान के सकारात्मक प्रभाव को चख लिया है, यह करना मुश्किल नहीं होगा।
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