जानिए, कौन है भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा दुश्मन ?
अल निनो को भारतीय मॉनसून का दुश्मन माना जाता है। लेकिन अल निनो के कमजोर होने के बाद इस साल अच्छे मॉनसून की संभावना जताई जा रही है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। भारतीय खेती मॉनसून पर निर्भर है। किसानों के साथ-साथ भारतीय नीति नियंताओं को भी अच्छे मॉनसून का बेसब्री से इंतजार रहता है। पिछले दो सालों में मॉनसून की आंख मिचौली ने सभी के माथे पर बल ला दिया है। इस बार अनुमान लगाया जा रहा है कि इंद्र देवता पूरे देश पर मेहरबान रहेंगे। हालांकि मॉनसून की राह में कुछ भौगोलिक वजहें रुकावटें भी डालती रहती हैं।
प्राइवेट संस्था स्काईमेट ने सामान्य से ज्यादा मॉनसून की भविष्यवाणी की है। स्काईमेट के मुताबिक भारत में करीब 109 फीसद बारिश होगी। हालांकि अच्छे मॉनसून का एक दुश्मन भी है। जो उमड़ते घुमड़ते बादलों को सूखा कर देता है। जिसकी वजह से भारतीय धरा प्यासी रह जाती है और उसका एक ऐसा दुश्चक्र प्रभाव पड़ता है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी बता देती है। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर अल निनो किस तरह मॉनसून के पैटर्न को प्रभावित करता है।
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क्या है अल निनो ?
अल निनो को तापमान संक्रमण के तौर पर देखा जाता है। भूमध्य रेखा( इक्वेटर) के पास प्रशांत महासागर का पानी असमान्य तौर पर गर्म हो जाता है। वैज्ञानिक भाषा में अल निनो को अल निनो सदर्न ऑस्लिेशन (ENSO) कहा जाता है। अल निनो सामान्य तौर पर गर्मियों में शुरू होता है और जाड़ों तक अपने उच्चतम स्तर पर रहता है। प्रशांत महासागर के ऊपर गर्म हवाएं वायुमंडल के संपर्क में आती हैं। जिसकी वजह से दुनिया के कुछ हिस्सों में भारी बारिश की वजह से बाढ़ आ जाती है। वहीं कुछ इलाकों में सूखा पड़ जाता है। अल निनो का आगमन प्रत्येक तीन से सात साल के अंतराल पर होता है। अल निनो को इस तरह से भी आसानी से समझा जा सकता है। गर्म हवाएं वृ्त्तीय पथ का अनुसरण करती हैं। इसका मतलब ये है कि अगर प्रशांत महासागर असमान्य तौर पर गर्म है तो गरम हवाएं ठंडे इलाकों में जाती हैं और वहां से नमी सोख कर फिर प्रशांत महासागर वाले इलाकों में पहुंच जाती हैैं। जिसकी वजह से ग्लोब के कुछ हिस्सों में ज्यादा बारिश हो जाती है। जबकि कुछ हिस्से सूखे की चपेट मेें आ जाते हैं।
अल निनो और भारत
भारतीय मॉनसून का असर सिर्फ भारत पर ही नहीं बल्कि इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया पर भी होता है। भारतीय मॉनसून एन्सो से सीधा जुड़ा है। गर्मियों के महीने में भारत के ज्यादातर हिस्सों में तापमान 45 डिग्री सेंटीग्रेड के ऊपर होता है। जबकि हिंद महासागर का पानी ठंडा रहता है। तापमान में इस परिवर्तन की वजह से गर्म हवाएं हिंद महासागर की तरफ से बहने लगती हैं जिसकी वजह से कुछ इलाकों में बाढ़ आ जाती है। वहीं कुछ इलाके बारिश से मरहूम रह जाते हैं।
भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक 1880 से 2006 के दौरान 18 अल निनो साल रहे हैं। जिसकी खासियत ये रही कि ज्यादातर इलाकों में सूखा पड़ गया। पिछले दो साल से अल निनो की प्रभाव की वजह से भारत ने सूखे का सामना किया। लेकिन इस साल हालात अलग हैं। प्रशांत महासागर में अल निनो इस साल कमजोर पड़ चुका है।
अल निनो के बाद ला निना
अल निनो के बाद ला निना आता है। ऑस्ट्रेलियाई मौसम ब्यूरो के मुताबिक 1900 से रिकॉर्ड किए 26 अल निनो की घटनाओं के बाद पचास फीसद साल न्यूट्रल रहे जबकि 40 फीसद में ला निना का असर रहा। ऑस्ट्रेलियाई ब्यूरो के मुताबिक इस साल पचास फीसद ला निना की संभावना है। जिसमें सामान्य से ज्य़ादा बारिश की संभावना है।
मौसम के मिजाज पर टिकी हुई भारतीय खेती के लिए ये शुभ संकेत हैं। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अच्छी बारिश से खेती बेहतर होती हैं। लोगों के हाथों में खर्च करने के लिए पैसे होते हैं। जिसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।