Jagran Trending | World Refugee Day 2022 | शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिए क्या कारगर है नागरिकता संशोधन अधिनियम? जानें- एक्सपर्ट व्यू
विश्व शरणार्थी दिवस दिवस निकल गया लेकिन क्या हम समझ पाए कि भारत समेत दुनिया में शरणार्थियों की समस्या से किस तरह से जूझ रहे हैं। आज इस कड़ी में हम आपको बताएंगे कि भारत में यह चुनौती कितनी बड़ी है।
नई दिल्ली, जेएनएन। World Refugee Day 2022 : विश्व शरणार्थी दिवस प्रत्येक वर्ष 20 जून को दुनिया को शरणार्थियों को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा चार दिसंबर को दुनिया भर में जबरन विस्थापित लोगों के योगदान को पहचानने और उनकी सराहना करने के लिए निर्धारित किया गया था। कई वर्षों तक इसे अलग-अलग दिनों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता था। सबसे आम और मान्यता प्राप्त अफ्रीकी शरणार्थी दिवस 20 जून को दुनिया भर के कई देशों में मनाया जाता था। हालांकि, यह दिवस निकल गया, लेकिन क्या हम समझ पाए कि भारत समेत दुनिया के कई मुल्क शरणार्थियों की समस्या से किस तरह से जूझ रहे हैं। आज इस कड़ी में हम आपको बताएंगे कि भारत में यह चुनौती कितनी बड़ी है। इस समस्या से निपटने के लिए क्या संवैधानिक और कानूनी प्रावधान है। भारत का शरणार्थियों को लेकर क्या दृष्टिकोण है।
1- प्रो अभिषेक प्रताप सिंह का कहना है कि हाल के दिनों में पड़ोसी देशों के कई लोग अवैध रूप से भारत में राज्य उत्पीड़न के कारण नहीं बल्कि भारत में बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में आते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि देश में ज्यादातर बहस शरणार्थियों के बजाय अवैध प्रवासियों को लेकर होती है। ऐसी स्थिति में सामान्यतः दोनों को एक कर दिया जाता है। इसके चलते इन मुद्दों से निपटने में कठिनाई उत्पन्न होती है। उन्होंने कहा कि शरणार्थी और अप्रवासी के लिये नीतियों और उपायों में स्पष्टता के साथ-साथ नीतिगत उपयोगिता की कमी को दूर करना चाहिए।
2- उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पारित कर दिया है। CAA भारत के पड़ोस में धार्मिक अल्पसंख्यकों और राज्य द्वारा प्रताड़ित लोगों को नागरिकता प्रदान करने की परिकल्पना करता है। हालांकि, CAA मुख्य रूप से शरणार्थी समस्या का कारण नहीं है। भारत में अन्य राजनीतिक दलों ने इस अधिनियम का विरोध किया था। इसके अलावा कई राजनीतिक विश्लेषकों ने CAA को शरणार्थी संरक्षण से नहीं बल्कि शरणार्थियों से बचने के अधिनियम के रूप में स्वीकार्य किया है।
3- प्रो अभिषेक का कहना है कि भारत वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख कानूनी दस्तावेज 1967 प्रोटोकाल का पक्षकार नहीं है। 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और 1967 प्रोटोकाल के पक्ष में नहीं होने के बावजूद भारत में बड़ी तादाद में शरणार्थियों की संख्या निवास करती है। भारत में विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपरा है। इसके अलावा भारत का संविधान भी मनुष्यों के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा का सम्मान करता है।
1951 शरणार्थी सम्मेलन में भारत ने हस्ताक्षर करने से मना किया
वर्ष 1951 शरणार्थी सम्मेलन में भारत ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। भारत का तर्क था इस सम्मेलन में शरणार्थियों की परिभाषा केवल नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है, लेकिन व्यक्तियों के आर्थिक अधिकारों से संबंधित नहीं है। इस परिभाषा के तहत एक ऐसे व्यक्ति पर विचार किया जा सकता है जो राजनीतिक अधिकारों से वंचित है, लेकिन आर्थिक अधिकारों से वंचित होने की स्थिति में उस पर विचार नहीं किया जाता है। उस वक्त सम्मेलन में यह तर्क दिया गया कि यदि शरणार्थी की परिभाषा में आर्थिक अधिकारों के उल्लंघन को शामिल किया जाता तो यह स्पष्ट रूप से दुनिया पर एक बड़ा आर्थिक बोझ बढ़ा देगा। दूसरी ओर यह तर्क कि अगर यह प्रावधान दक्षिण एशियाई संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है तो भारत के लिए भी आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक समस्या उत्पन्न हो सकती है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम स्टेट आफ अरुणाचल प्रदेश (1996) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सभी अधिकार नागरिकों के लिए हैं, जबकि विदेशी नागरिकों के लिए समानता का अधिकार और जीवन का अधिकार उपलब्ध हैं। इसके अलावा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 में मुसलमानों को बाहर रखा गया है और यह केवल हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख तथा बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान से बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है। प्रो अभिषेक कहा कहना है कि भारत में शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिए विशिष्ट कानून का अभाव रहा है। इसके बावजूद उनकी संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।