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क्या समाज में मोटे अनाज की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए जागरूकता के कदम उठाने होंगे?

देवानंद राय ने बताया कि भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है। यह बहुत अच्छी बात है। पूरे वर्ष इन अनाजों क प्रे ति लोगों को जागरूक करने केलिए कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Mon, 28 Nov 2022 03:44 PM (IST)Updated: Mon, 28 Nov 2022 03:44 PM (IST)
क्या समाज में मोटे अनाज की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए जागरूकता के कदम उठाने होंगे?
मोटे अनाजों को बढ़ावा देने की दिशा में अब तक उठाए गए कदम

नई दिल्‍ली, जेएनएन। कुछ दशक पहले ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज भारत में सभी का पेट भरते थे। फिर हरित क्रांति और गेहूं-चावल पर हुए व्यापक शोध ने तस्वीर कुछ ऐसे बदली कि मोटे अनाज सिमटते गए और गेहूं-चावल ने हर तरफ कब्जा कर लिया। सरकारों ने भी मोटे अनाजों पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया। कभी हमारी उपज में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले मोटे अनाज 10 प्रतिशत से भी नीचे चले गए। हालांकि अब एक के बाद एक शोध यह बता रहे हैं कि पोषण की दृष्टि से मोटे अनाजों का कोई तोड़ नहीं है। दुनिया के कई देशों ने इन्हें अपनाना शुरू कर दिया है।

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भारत में भी उत्पादित होने वाले मोटे अनाज का ठीकठाक हिस्सा निर्यात होता है। पिछले कुछ वर्षों में इस ओर ध्यान दिया जाने लगा है। केंद्र सरकार ने मिड डे मील योजना के तहत मोटे अनाज देने की पहल की है। वैश्विक स्तर पर 2023 को 'मोटा अनाज वर्ष' के रूप में मनाए जाने का प्रस्ताव हुआ है। बात पोषण तक ही सीमित नहीं है। मोटे अनाजों के उत्पादन में पानी और खाद की खपत भी कम होती है। साथ ही इनका भंडारण लंबे समय तक किया जा सकता है। ऐसे कई कारण हैं, जो मोटे अनाजों को विशेष और आवश्यक बनाते हैं। पूरे विश्व में पोषण के साथ-साथ खा‌द्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में इनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। मोटे अनाजों को बढ़ावा देने की दिशा में अब तक उठाए गए कदम कितने प्रभावी हैं और सरकार व समाज के स्तर पर क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इनकी पड़ताल आज बड़ा मुद्दा है।

प्रयासों का दिख रहा प्रभाव

  • 2018 में भारत सरकार मोटे अनाजों को पोषक अनाज की श्रेणी में रखते हुए इन्हें बढ़ावा देनी की शुरुआत की थी। तब से सरकार के उठाए गए कदमों के कुछ परिणाम भी नजर आने लगे हैं।
  • 176 लाख टन रहा उत्पादन 2020-21 में, जो 2017-18 में 164 लाख टन था
  • 1,239किग्रा प्रति हेक्टेयर पहुंची उत्पादकता, जो पहले 1163 किग्रा प्रति हेक्टेयर थी
  • 154 प्रजातियां तैयार की गईं, जो ज्यादा उत्पादक एवं बीमारियों से लड़ने में सक्षम हैं
  • 10 अतिरिक्त पोषण वाली और नौ बायोफोर्टिफाइड प्रजातियां तैयार की गईं
  • 250 करोड़ के टर्नओवर क साथ 175 स्टार्टअप्स को मिला है समर्थन
  • 14 राज्यों को स्टेट मिलेट्स मिशन में इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मिलेट रिसर्च से तकनीकी सहायता मिली है

राजेश कुमार चौहान ने बताया कि आयुर्वेद में मोटे अनाजों की विशेषता का उल्लेख मिलता है। मोटे अनाज सेहत के लिए बहुत अच्छेहोते हैं, साथ ही इनकी खेती भी आसान है। इनक उत्पादन में पानी और खाद की खपत कम होती है, जो किसानों केलिए अच्छाहै। इस दिशा में वर्तमान सरकार का प्रयास उल्लेखनीय है। इससे किसानों की आय पर सकारात्मक प्रभाव पडगा। 

मुन्ना स्वर्णकार ने बताया कि लोग धीरे-धीरे मोटे अनाजों की पौष्टिकता के बारे में जागरूक हो रहे हैं। बच्चे भी इनका सेवन करें, तो निश्चित तौर पर उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छाहोगा। सरकार की तरफ से मिड डे मील में मोटे अनाज को शामिल करना सराहनीय और दूरदर्शी कदम है। आने वाले समय में इसक कई लाभ देखने को मिलेंगे। 

देवानंद राय ने बताया कि भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है। यह बहुत अच्छी बात है। पूरे वर्ष इन अनाजों क प्रे ति लोगों को जागरूक करने केलिए कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। निश्चित तौर पर इनका लाभ देखने को मिलेगा।  


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