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RBI ने बढ़ाया रेपो रेट, सिर्फ 5 प्वाइंट में पढ़ें आप पर इसका क्या असर पड़ेगा...

चलिए कुछ प्वाइंट में समझते हैं रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बढ़ोतरी का आप पर क्या असर पड़ेगा।

By Digpal SinghEdited By: Published: Wed, 01 Aug 2018 03:45 PM (IST)Updated: Wed, 01 Aug 2018 05:19 PM (IST)
RBI ने बढ़ाया रेपो रेट, सिर्फ 5 प्वाइंट में पढ़ें आप पर इसका क्या असर पड़ेगा...
RBI ने बढ़ाया रेपो रेट, सिर्फ 5 प्वाइंट में पढ़ें आप पर इसका क्या असर पड़ेगा...

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। चालू वित्त वर्ष की तीसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति बुधवार को घोषित की गई। केंद्रीय बैंक ने लगातार दूसरी बार नीतिगत दरों में इजाफा किया है। रिजर्व बैंक ने अब रेपो रेट को 6.25 फीसद से बढ़ाकर 6.50 फीसद कर दिया है। यही नहीं रिवर्स रेपो रेट को भी 6 फीसद से बढ़ाकर 6.25 फीसद कर दिया गया है।

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नीतिगत दरों में बढ़ोतरी का आप पर सीधे असर पड़ता है। ऐसे में आप यह जरूर जानना चाहेंगे कि इसका आपकी जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा। पहले यह जान लें कि रेपो रेट वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक देश के अन्य वाणिज्यिक बैंकों को लोन देता है। जबकि रिवर्स रेपो रेट वह दर है, जिस पर केंद्रीय बैंक अन्य वाणिज्यिक बैंकों से रुपये लेता है। तो चलिए कुछ प्वाइंट में समझते हैं रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बढ़ोतरी का आप पर क्या असर पड़ेगा।

1. रेपो रेट बढ़ने से आपके होम और कार लोन जैसे अन्य कर्जों की ईएमआई बढ़ जाएगी। क्योंकि बैंक आम तौर पर बढ़ी हुई रेपो रेट का बोझ खुद झेलने की बजाय ग्राहकों पर डाल देते हैं। 
2. रेपो रेट बढ़ने का असर आपके सेविंग बैंक खाते और सावधि जमा पर भी पड़ेगा। बैंक आपके सेविंग अकाउंट और सावधि जमा पर ब्याज दर बढ़ा सकते हैं।
3. लगातार बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए भी केंद्रीय बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी करके इसे काबू में करने की कोशिश करता है। रेपो रेट में ताजा बढ़ोतरी से उम्मीद की जानी चाहिए कि महंगाई को काबू में रखने में मदद मिलेगी।
4.अगर आप खुद पर ईएमआई का बोझ नहीं बढ़ने देना चाहते तो आपका बैंक पहले जितनी ही ईएमआई रखकर आपके लोन पीरियड को आगे बढ़ा सकता है। मतलब पहले जो लोन आपने 160 महीनों के लिए लिया था वह 162 या 165 महीने किया जा सकता है।
5. रेपो रेट बढ़ने का असर औद्योगिक विकास पर भी पड़ेगा, क्योंकि ब्याज दर उनके लिए भी महंगी हो जाएगी। अगर यह स्थिति लंबे समय तक रहती है तो आर्थिक विकासदर भी प्रभावित हो सकती है और भविष्य में नौकरियों का सृजन कम हो सकता है।


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