इन 10 कारणों से एशिया में कहर बरपा रहा है कोरोना वायरस, मुश्किल हो रही रोकथाम
एशिया में कोरोना वायरस के संक्रमितों की संख्या में इजाफा हो रहा है। सभी देश अपने स्तर पर इसको रोकने के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन कुछ वजहों की वजह से यहां मामले बढ़ रहे हैं।
नई दिल्ली। एशिया में कोरोना के लगातार बढ़ते आंकड़े चिंता का सबब बने हुए हैं। यहां पर अब तक इसके 835366 मामले सामने आ चुके हैं जबकि इसकी वजह से अब तक 25305 मरीजों की मौत भी हो चुकी है। एशिया में कोरोना के अब तक 480787 मरीज ठीक हुए हैं। यहां पर इस जानलेवा वायरस के कुल एक्टिव मामले 329274 तक पहुंच गए हैं। एशिया में गंभीर मरीजों की बात करें तो यहां पर इनकी संख्या 5002 है।
कोरोना प्रभावित एशिया के टॉप-10 देशों की बात करें तो इसमें सबसे ऊपर तुर्की है। इसके बाद ईरान, भारत, चीन, सऊदी अरब, पाकिस्तान, कतर, सिंगापुर, यूएई और बांग्लादेश है। आपको बता दें कि कोरोना प्रभावित दुनिया के दस देशों में से दो एशिया के ही हैं। यदि अन्य महाद्वीपों में इस वायरस के संक्रमितों की संख्या के आधार पर देखें तो इसमें इसमें पहले नंबर पर यूरोप, दूसरे पर उत्तरी अमेरिका, तीसरे पर एशिया, चौथे पर दक्षिण अमेरिका, पांचवें पर अफ्रीका और छठे पर आस्ट्रेलिया महाद्वीप आता है।
आंकड़ों के मुताबिक भले ही एशिया में यूरोप और उत्तरी अमेरिका के मुकाबले इस जानलेवा वायरस के कम मरीज हैं लेकिन लगातार बढ़ रही संख्या इस महाद्वीप में शामिल हर देश के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। यहां पर इसके बढ़ने के कुछ खास कारण भी हैं। इनमें से प्रमुख ये हैं:-
- एशिया महाद्वीप के ज्यादातर देश विकासशील देशों की श्रेणी में आते हैं।
- एशियाई देशों में विकसित देशों के मुकाबले न तो आधुनिक तकनीक ही हैं और न ही अन्य सुविधाएं।
- कई देशों में तो मूल भूत सुविधाओं का भी अभाव साफतौर पर दिखाई देता है।
- संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर के शरणार्थियों में एशियाई नागरिकों की संख्या सबसे ज्यादा है।
- एशियाई देशों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा स्लम कॉलोनी में रहने को मजबूर है, जहां पर स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा साफ सफाई का भी अभाव होता है। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र किया गया है कि इस तरह की स्लम कॉलोनी और अस्थायीतौर पर बने घरों ऐसी जानलेवा महामारी के बीच तय नियमों का पालन कर पाना लगभग नामुमकिन होता है।
- एशियाई देशों शिक्षा का स्तर पर अन्य महाद्वीपों की तुलना में कम है। इसका सीधा असर जरूरी जानकारियों के प्रचार और प्रसार पर पड़ता है। यही वजह है कि महामारी के समय यही चीजें सबसे घातक साबित भी होती हैं।
- इस महाद्वीप में शामिल देशों की कमजोर आर्थिक स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है। इस वजह से भी सरकारें जरूरी मदों पर ज्यादा खर्च नहीं कर पाती हैं।
- आर्थिक कमजोरी की वजह से भी इन देशों में रहने वाली आबादी का एक बड़ा हिस्सा महामारी से बचाव के लिए बनाए गए और सरकार द्वारा निर्धारित किए गए नियमों का मजबूरन पालन नहीं कर पाता है।
- महामारी के दौरान बचाव के लिए जरूरी किट या इक्यूपमेंट का अभाव भी इन देशों में इस तरह की बीमारी को पनपने का मौका देते हैं।
- दुनिया की कुल आबादी का करीब साठ फीसद एशिया में ही है। यहां पर दुनिया के सबसे अधिक सघन आबादी वाले देश शामिल हैं।
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