देखें आखिर क्यों और कैसे व्यापार के क्षेत्र में चीन से पिछड़ता चला गया भारत
धीरे-धीरे दोनों देशों के वैश्विक कारोबार की पकड़ में अंतर गहराने लगा। चीन अपनी मैन्युफैक्र्चंरग के बूते दुनिया का कारखाना बन गया तो भारत सेवा क्षेत्र में आगे बढ़ा।
नई दिल्ली। 15वीं सदी में वैश्विक कारोबार में करीब एक चौथाई हिस्सेदारी के साथ भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर था। 18वीं सदी तक दोनों का आधे वैश्विक व्यापार पर नियंत्रण था। यह प्रभुत्व 19वीं सदी में भारत को ब्रिटेन द्वारा उपनिवेश बनाए जाने तक कायम था। बीसवीं सदी के मध्य में भारत को आजादी मिली तो चीन में साम्यवाद स्थापित हुआ। धीरे-धीरे दोनों देशों के वैश्विक कारोबार की पकड़ में अंतर गहराने लगा। चीन अपनी मैन्युफैक्र्चंरग के बूते दुनिया का कारखाना बन गया तो भारत सेवा क्षेत्र में आगे बढ़ा। अब एक बार फिर से दोनों देशों के कारोबार में संतुलन की जरूरत महसूस होने लगी है। पिछले पांच सौ सालों में इन दोनों एशियाई दिग्गजों के आर्थिक विकास पर एक नजर
16वीं सदी भारत:
लालसागर से होकर भारतीय सामान को यूरोेप ले जाकर अरब व्यापारियों द्वारा बेचे जाने के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की विश्व की आय में 24.5 फीसद हिस्सेदारी थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर था। टेक्सटाइल्स, चीनी, मसाले, आम, कारपेट इत्यादि बेचकर यह सोना और चांदी खरीदकर अपना व्यापार संतुलन बनाए रखता था। चीन: यूरोप और चीन के बीच सीधा समुद्री कारोबार पुर्तगालियों के साथ शुरू हुआ। इसके बाद अन्य यूरोपीय देशों ने भी इसका अनुसरण किया। भारत और चीन के बीच कारोबार जमीनी रास्तों से होता था।
17वीं सदी भारत:
सदी के अंत तक भारत के मुगलों की सालाना आय (17.5 करोड़ पौंड) ब्रिटिश बजट से अधिक हो चुकी थी। शाहजहां के शासनकाल में आयात से अधिक निर्यात किया जाने लगा था। खंभात से इतना अधिक व्यापार किया जाता था कि यहां हर साल तीन हजार समुद्री जहाज आया करते थे। चीन: वैश्विक कारोबार के एक चौथाई पर इसका आधिपत्य रहा। 1637 में कैंटोन में अंग्र्रेजों ने एक व्यापार चौकी भी स्थापित की। 1680 में समुद्री व्यापार में छूट देने के बाद इसमें उत्तरोत्तर विकास होता गया। अब तक ताइवान क्विंग साम्राज्य के अधीन हो चुका था।
18वीं सदी भारत:
औरंगजेब के समय देश का विश्व की आय में 24.4 फीसद हिस्सा था। मुगल ताकत के क्षीण होते ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के दुनिया से कारोबारी संबंधों को तहस-नहस कर दिया। चीन: 1760 में वैश्विक कारोबार में हिस्सेदारी घटने लगी। विदेशियों और विदेशी जहाजों के लिए कई सख्त नियम-कानून बना दिए। यहां आने वाले विदेशी व्यापारियों के लिए केवल एक बंदरगाह कैंटोन को इस नियम कानून से मुक्त रखा गया। 1776 में आजादी की लड़ाई के बाद अमेरिकियों ने चीन से व्यापार करना शुरू किया। ब्रिटेन के लिए यह एक बड़ा झटका था।
19वीं सदी भारत:
वैश्विक आय का 16 फीसद रह चुकी भारतीय अर्थव्यवस्था 1820 तक पूरी तरह ईस्ट इंडिया कंपनी के चंगुल में आ चुकी थी। कंपनी चीन के साथ अफीम कारोबार को बढ़ावा दे रही थी। 1870 तक वैश्विक आय में भारतीय हिस्सेदारी 12.2 फीसद रह गई चीन: क्विंग शासक ने विदेशी व्यापारियों के लिए सभी बंदरगाह खोलने से मना कर दिया। भारत के साथ अफीम कारोबार पर भी प्रतिबंध लगाया। ब्रिटेन और चीन के बीच दो बार जंग भी हुई। हारकर चीन ने अफीम कारोबार की स्वीकृति दी और अपने अति विकसित क्षेत्रों को पश्चिमी व्यापारियों के लिए खोल दिया। लिहाजा 1843 के बाद आठ साल के भीतर ही चाय का निर्यात पांच गुना बढ़ गया।
20वीं सदी भारत:
1913 में वैश्विक आय में भारतीय अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी महज 7.6 फीसद रह गई। 1952 में यह 3.8 फीसद पर पहुंच गई। 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के बाद1998 तक अर्थव्यवस्था की वैश्विक आय में हिस्सेदारी पांच फीसद हो गई। 2005 तक अर्थव्यवस्था 3815.6 अरब डॉलर पहुंच गई। अब तक वैश्विक आय में इसकी हिस्सेदारी बढ़कर 6.3 फीसद हो चुकी थी। चीन: 1949 में साम्यवादी चीन के अस्तित्व के बाद माओ जेडांग ने देश को एक समाजवादी दिशा दी। 1980 में शेनझेन में पहला विशेष आर्थिक क्षेत्र गठित किया। 1986 में ‘ओपेन डोर’ पॉलिसी ने विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया। 1992 में ‘सोशलिस्ट मार्केट इकोनॉमी’ की स्थापना हुई। पहली बार चीन दुनिया की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ