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..क्योंकि रक्त की कोई जात नहीं होती

सांप्रदायिक हिंसा में एक दूसरे का खून बहाने वालों को शायद यह इल्म नहीं कि खून का कोई मजहब नहीं है। इधर, हायतौबा मची है हिंदू, मुस्लिम, सिख.ईसाई। और उधर, 'शरीफ' की रगों में 'श्याम' का लहू दौड़ रहा है तो 'हरकिशन' के खून का एक-एक कतरा 'जुम्मन' की जिंदगी पर कुर्बान है। यकीन नहीं आता तो देखिए

By Edited By: Updated: Thu, 12 Sep 2013 10:55 AM (IST)
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शिवानंद राय, मुजफ्फरनगर। सांप्रदायिक हिंसा में एक दूसरे का खून बहाने वालों को शायद यह इल्म नहीं कि खून का कोई मजहब नहीं है। इधर, हायतौबा मची है हिंदू, मुस्लिम, सिख.ईसाई। और उधर, 'शरीफ' की रगों में 'श्याम' का लहू दौड़ रहा है तो 'हरकिशन' के खून का एक-एक कतरा 'जुम्मन' की जिंदगी पर कुर्बान है। यकीन नहीं आता तो देखिए जिला अस्पताल का वह नजारा, जहां इंसानियत का दीया नफरत के अंधेरे निगले जा रहा है।

सात सितंबर को जिले में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मची मार-काट में हिंदू और मुस्लिम दोनों का लहू बहा। देखते ही देखते लोग हर सामने वाले के लहू के प्यासे बन बैठे। हिंसा में अब तक 40 से अधिक लोग काल के गाल में समा चुके हैं, जबकि 78 घायलों को जिला अस्पताल में भर्ती कराकर उपचार दिलाया गया। हालांकि घायलों का आंकड़ा कई गुना अधिक है। शहर में क‌र्फ्यू के चलते अधिकांश घायलों का उपचार गैर जनपदों मेरठ, सहारनपुर व शामली में चल रहा है। जिला चिकित्सालय में घायलों की तादाद अधिक न हो, इसके मद्देनजर उन्हें प्राथमिक उपचार के बाद मेरठ रेफर किया जा रहा है। अकेले मेरठ में भर्ती घायलों की संख्या 40 से अधिक पहुंच गई है। जिला अस्पताल में भर्ती घायलों की जिंदगी बचाने के लिए रक्त की जरूरत पड़ रही है। मरीजों को ब्लड चढ़ाने के लिये जिला अस्पताल में ब्लड बैंक स्थापित है।

ब्लड बैंक से अब तक आठ मरीजों को दस यूनिट रक्त चढ़ाया जा चुका है। ब्लड बैंक में उपलब्ध खून में से कोई हिंदू का है तो कोई मुसलमान या सिख ईसाई का, लेकिन हिंदू का यही खून मुस्लिम की जिंदगी बचा रहा है तो मुसलमान का खून हिंदू की जान बचाने को हाजिर है। आठ घायलों को रक्तदान का यही खून चढ़ाया जा रहा है और इसका एक-एक कतरा किसी को जिंदगी बख्स रहा है।

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