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अशोक स्तंभ: किसी भी राष्ट्र को सजीव, उन्नतशील और गौरवान्वित होने के लिए अनिवार्य है सम्यक इतिहास बोध

बौद्धिक प्राणी होने के कारण मानव इतिहास का अध्ययन अपनी जिज्ञासा को शांत करने अतीत को समझने और उससे सीख कर बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए करता है। भारत के संदर्भ में यह जानना आवश्यक है कि हम भारतवासी अपना इतिहास क्यों जानना चाहते हैं?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 08 Sep 2022 12:05 PM (IST)Updated: Thu, 08 Sep 2022 12:05 PM (IST)
अशोक स्तंभ: किसी भी राष्ट्र को सजीव, उन्नतशील और गौरवान्वित होने के लिए अनिवार्य है सम्यक इतिहास बोध
आज विज्ञान, टेक्नोलाजी के विकास के साथ अतीत की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है।

डा. सुशील पांडेय। कोई भी राष्ट्र अपने अतीत के आधार पर स्वर्णिम भविष्य का सपना देखता है। अतीत सदैव प्रेरणा एवं स्वाभिमान जागृत करता है। अपने नागरिकों को उच्च नैतिक मूल्यों, आदर्शों से निर्देशित करता है। आज विज्ञान, टेक्नोलाजी के विकास के साथ अतीत में देखने और उससे भविष्य का निर्माण करने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। इस संदर्भ में इतिहास की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। इतिहास का अध्ययन मानव बौद्धिक प्राणी होने के कारण अपनी जिज्ञासा को शांत करने, अतीत को समझने और उससे सीख कर बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए करता है। मानव जीवन का वर्तमान और भविष्य अतीत का परिणाम होते हैं।

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इतिहास को वर्तमान और अतीत के बीच एक निरंतर संवाद के रूप में देखा जाता है। भारत के संदर्भ में यह जानना आवश्यक है कि हम भारतवासी अपना इतिहास क्यों जानना चाहते हैं? क्या वास्तविक इतिहास समझ कर बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। भारतीय इतिहास लेखन में क्या विसंगतियां हैं? भारतीय इतिहास को क्यों विकृत किया गया? राजतरंगिणी के लेखक कल्हण कहते हैं-वही गुणवान कवि प्रशंसा का पात्र है, जो राग-द्वेष से ऊपर उठकर एकमात्र सत्य निरूपण में अपनी भाषा का प्रयोग करता है। इस संदर्भ में आज राष्ट्र निर्माण में इतिहासकारों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।

प्राचीन काल से ही भारत में इतिहास लेखन और उसकी उपयोगिता का अनादर किया गया। इतिहास को किस्से- कहानियों, धार्मिक संदर्भों और राजाओं के प्रशस्ति गान के रूप में प्रस्तुत किया गया। मध्यकालीन लेखकों ने धार्मिक प्रेरणा और व्यक्तिगत द्वेष के आधार पर इतिहास लिखा। आधुनिक काल में अंग्रेजों ने अपने औपनिवेशिक शासन को बनाए रखने के लिए विकृत इतिहास प्रस्तुत किया, जिसमें श्वेत व्यक्ति को श्रेष्ठ मानकर उसकी दैवीय जिम्मेदारियों को भारतीयों के हित में बताया गया। आज कई सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक संदर्भों में इतिहास लेखन और उसकी उपयोगिता पुनः महत्वपूर्ण हो गई है।

अतीत का अध्ययन तभी आवश्यक है जब वह समाज को प्रेरणा देकर समाज का पुनर्निर्माण करे, न कि इतिहास में झांककर विवाद खड़ा करके राष्ट्र निर्माण में बाधा पैदा करे। आज भारत में इतिहास को इसी संदर्भ में समझने की आवश्यकता है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी इसी उद्देश्य को आगे बढ़ा रही है। प्राचीन काल का भारतीय इतिहास ज्ञान, विज्ञान, कला और मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण है। प्राचीन भारत का सांख्य दर्शन विज्ञान का आधार माना जाता है। वैशेषिक, मीमांसा, योग जैसे दर्शन संपूर्ण समाज के लिए ज्ञान का आधार हैं। महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, वेदों, उपनिषदों में वर्णित ज्ञान आज मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए अनिवार्य है।

सम्राट अशोक का धम्म, हर्षवर्धन की दानशीलता, चोल शासकों की विजय गाथा, सात वाहनों द्वारा महिलाओं की प्रशासनिक भागीदारी, वैदिक काल की सभा, समिति, विदथ जैसी लोकतांत्रिक संस्थाएं प्राचीन भारत का गौरव हैं। नागर, बेसर, द्रविड़ शैली में प्राचीन भारत की वास्तुकला, अजंता, बाघ की चित्रकला, नृत्य, संगीत हमारी श्रेष्ठ सांस्कृतिक विरासत हैं, जिन्हें यूनेस्को ने भी विश्व विरासत का दर्जा दिया है।

मध्यकालीन भारत में भक्ति और सूफी संतों ने सामाजिक समरसता और लोकतांत्रिक विचारों को आगे बढ़ाया। गुरु नानक देव, संत रविदास, मीराबाई, कबीरदास, निजामुद्दीन औलिया, शेख सलीम चिश्ती ने भारतीय संस्कृति की साझा विरासत को आगे बढ़ाया। मराठा शासक शिवाजी ने विरोधी सेना की महिलाओं के साथ उच्च नैतिक व्यवहार किया। आधुनिक काल में स्वतंत्रता संघर्ष भारतीयों के शौर्य पराक्रम के साथ साझा मूल्यों, विचारों और आदर्शों पर आधारित है। संन्यासी विद्रोह जिसमें हिंदू, मुस्लिमों की समान भागीदारी रही वंदेमातरम् गान का आधार बना।

1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पहली बार वंदे मातरम् गाया गया, इसकी अध्यक्षता रहीमतुल्ला सयानी ने किया। औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध वंदे मातरम् समाज के प्रत्येक वर्ग में चेतना का संचार करता था, आज कुछ अनभिज्ञ कट्टरपंथी इसका धार्मिक आधार पर विरोध करते हैं। क्रांतिकारी आंदोलन सभी विचारों का समन्वय था जिसमें चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, अशफाक उल्ला की देशभक्ति शामिल थी।

जनजाति आंदोलन, श्रमिक आंदोलन, किसान आंदोलन राष्ट्रीय आधार पर संगठित थे और इन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के लिए पृष्ठभूमि तैयार किया। राष्ट्रीय आंदोलन के साझा मूल्यों ने एक राष्ट्र के रूप में भारत को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रगान, राष्ट्रध्वज, संविधान और स्वतंत्रता सेनानियों के आदर्शों ने आजादी के बाद भारत को एक राष्ट्र के रूप में एकजुट रखने का आधार तैयार किया। भारत जैसे देश में जहां भौगोलिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक विविधता है और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में कई बाधाएं भी सामने आती रही हैं। ऐसी स्थितियों में वर्तमान चुनौतियों का समाधान इतिहास में है और आज इतिहास ही राष्ट्र निर्माण का आधार है।

इतिहास मनुष्य का सच्चा शिक्षक है। किसी भी राष्ट्र को सजीव, उन्नतशील और गौरवान्वित होने के लिए सम्यक इतिहास बोध अनिवार्य है। इतिहास उदाहरण के साथ-साथ तत्वज्ञान का शिक्षण है। उन्नति अनुभव पर निर्भर करती है तथा उन्नति के लिए हमें उसके तत्वों का ज्ञान आवश्यक है। उन तत्वों का ज्ञान उनके पूर्व परिणाम पर निर्भर और उन्हें जानने का एकमात्र साधन इतिहास ही है। वर्तमान को समझने के लिए आवश्यक है कि अतीत से परिचित हों और राष्ट्र के उत्थान एवं पतन के कारणों तथा परिस्थितियों से अवगत हों। भूमंडलीकरण के बाद विश्व में नई व्यवस्था का जन्म हो चुका है। राष्ट्रवाद नए संदर्भों और रूपों में सामने आ रहा है। ऐसी स्थिति में भारत जैसे राष्ट्र के लिए सम्यक एवं पूर्वाग्रहों से मुक्त इतिहास बोध की आवश्यकता है। ऐसा इतिहास लेखन जो हमारा गौरवपूर्ण अतीत प्रस्तुत करे और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में हमें सक्षम बनाए।

[शिक्षक, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ]


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