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पास से देख सकेंगे लालकिले की ऐतिहासिक बावली

लालकिले की ऐतिहासिक बावली को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है कि इसे लालकिले के साथ बनाया गया था या फिर उससे पहले। इसके इतिहास को लेकर शुरू से ही विवाद रहा है। क्योंकि लालकिले के स्मारकों के बारे में इस बावली का जिक्र नहीं है। मगर यह बात भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण [एएसआइ] भी मान रहा है कि यह एक महत्वपू

By Edited By: Published: Mon, 28 Apr 2014 08:55 AM (IST)Updated: Mon, 28 Apr 2014 09:02 AM (IST)
पास से देख सकेंगे लालकिले की ऐतिहासिक बावली

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। लालकिले की ऐतिहासिक बावली को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है कि इसे लालकिले के साथ बनाया गया था या फिर उससे पहले। इसके इतिहास को लेकर शुरू से ही विवाद रहा है। क्योंकि लालकिले के स्मारकों के बारे में इस बावली का जिक्र नहीं है। मगर यह बात भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण [एएसआइ] भी मान रहा है कि यह एक महत्वपूर्ण बावली है। मगर देशवासियों के लिए यह बावली इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है कि इस बावली में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाले तीन वीर सैनिकों को रखा गया था।

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लालकिले के अंदर स्थित इस बावली पर लंबे समय से ताला लगा था और पर्यटकों का वहां तक जाना मना था। मगर एएसआइ ने अब इसके नजदीक जाने के लिए पर्यटकों को इजाजत दे दी है। एएसआइ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बावली के जिस भाग में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए जेल बनाई गई थी, इस भाग को पर्यटकों को दिखाने पर विचार किया जा रहा है। मगर मुख्य समस्या सुरक्षा व्यवस्था को लेकर है।

एएसआइ के पास कर्मचारियों की कमी है और जेल के आगे वाला भाग खतरनाक है। बावली के अंदर बनी जेल को दिखाने के लिए इस भाग को बंद करना होगा या फिर पर्यटकों को रोकने के लिए उस भाग में कर्मचारी लगाने होंगे। मगर एएसआइ में यह बात तेजी से उठ रही है कि इसे पर्यटकों के लिए खोला जाना चाहिए।

यहां बता दें कि लालकिले में प्रवेश करने के बाद जैसे ही आप छत्ता बाजार से आगे पहुंचते हैं, बाईं ओर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्रहालय है। इसी रास्ते पर थोड़ा आगे जाकर दाहिनी ओर बावली है। इसी बावली के अंदर जेल बनी है। अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर ब्रिटिश आर्मी से लड़ाई के दौरान बर्मा में जनरल शाहनवाज खान और उनके दल को ब्रिटिश आर्मी ने 194 में बंदी बना लिया था। नवंबर, 1946 में मेजर जनरल शाहनवाज खान, कर्नल प्रेम सहगल और कर्नल गुरुबक्श सिंह को इसी जेल में रखा गया था। इन पर अंग्रेजी हकूमत ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया था, लेकिन भारी जनदबाव के चलते ब्रिटिश आर्मी के जनरल आक्निलेक को न चाहते हुए भी आजाद हिंद फौज के इन अफसरों को अर्थदंड लगाकर छोड़ने को विवश होना पड़ा था। बावली का वह स्थान [लाल घेरे में] जहां स्वतंत्रता सेनानियों के लिए जेल बनाई गई थी।

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