इतिहासकार रोमिला थापर बोलीं, 'शहरी नक्सली' को परिभाषित करे सरकार
इतिहासकार रोमिला थापर ने कहा, आरोपित पांचों वामपंथी विचारकों को शहरी नक्सली कहना एक राजनीतिक कदम है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं की नजरबंदी के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने वाली इतिहासकार रोमिला थापर ने सरकार से 'शहरी नक्सली' शब्द को परिभाषित करने की मांग की है। पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि या तो सरकार इस शब्द का मतलब नहीं समझती हैं या फिर उन जैसे कार्यकर्ताओं को उसकी समझ नहीं है।
वरवर राव, अरुण फेरेरा, वेरनन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की नजरबंदी की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ये वे लोग हैं जो सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं । उन्होंने कहा कि हम सभी जन्म से भारतीय हैं और अपनी पूरी जिंदगी हम भारतीय की तरह जिए। ये कार्यकर्ता अच्छे उद्देश्यों के लिए संघर्ष कर रहे हैं और उन्हें शहरी नक्सली कहना एक राजनीतिक कदम है।
थापर ने कहा, 'क्या उन्हें मालूम भी है कि शहरी नक्सली का क्या मतलब होता है? पहले सरकार से शहरी नक्सली को परिभाषित करने को कहिए और फिर हमें बताइए कि हम कैसे इस श्रेणी में आते हैं। हमें भी बताइए कि कैसे हम शहरी नक्सली हैं?'
उच्चतम न्यायालय ने भीमा कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नजरबंद पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी में शुक्रवार को हस्तक्षेप करने और इसकी एसआइटी से जांच कराने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद वह याचिकाकर्ताओं द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं।
ये पांचों कार्यकर्ता 29 अगस्त से नजरबंद हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस जैसे नेताओं ने इन पांचों को अक्सर 'शहरी नक्सली' कहा है। सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले कई लोगों ने इन लोगों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए ट्विटर पर 'मी टू अर्बन नक्सल' के तहत खुद को शहरी नक्सली करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि 'शहरी नक्सली' उन लोगों को बदनाम करने के कुछ वर्गो द्वारा सृजित शब्द है, जिनका सत्ता प्रतिष्ठान विरोधी रुख है।