हिंदी के शौक ने उन्हें यायावर बना दिया
हिंदी वाकई सरहदों के पार की भाषा है, यह अहसास लाल परेड मैदान पर शुरू हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में होता है। अनेक देशों के लोग हिंदी को समझने व अपना हिंदी कुनबा बढ़ाने के लिए 'यात्रा" कर रहे हैं। सरहद पार के ऐसे ही हिंदी प्रेमियों का मुकाम अब
भोपाल। हिंदी वाकई सरहदों के पार की भाषा है, यह अहसास लाल परेड मैदान पर शुरू हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में होता है। अनेक देशों के लोग हिंदी को समझने व अपना हिंदी कुनबा बढ़ाने के लिए 'यात्रा" कर रहे हैं। सरहद पार के ऐसे ही हिंदी प्रेमियों का मुकाम अब भोपाल है। छोटे से समुद्रतटीय देश फिजी से आईं शिक्षा मंत्रालय की अधिकारी डा रोहिणी कुमार कहती हैं कि फिजी में हिंदी के प्रति आदर लगातार बढ़ता जा रहा है, वहां फिजी मूल के बच्चों को भी हिंदी पढ़ना अनिवार्य है।
रूस की छात्रा मान्नो कहती हैं कि मैं भारत को समझने के लिए हिंदी सीख रही हूं और जब स्वीडन के एक प्राध्यापक हाइन्स वर्नर वसलर कहते हैं कि यूरोपीय देशों में हिंदी सीखने की ललक ज्यादा है, तो साबित हो जाता है कि हिंदी विश्व की संपर्क भाषा के रूप में पहचान बना चुकी है।
ऐसी ही विविध प्रतिक्रियाओं और भावनाओं के रंग गुरूवार को यहां उभरे।
विभिन्न देशों से आए विदेशी मूल के लोगों ने कभी धाराप्रवाह तो कभी टूटे- फूटे शब्दों में अपनी बात को स्पष्ट किया। विश्व हिंदी सम्मेलन का मौका अधिकांश के लिए दुर्लभ था। इनका कहना था कि हिंदी के प्रति व्यक्तिगत रूचि उन्हें भारत और फिर भोपाल तक खींच लाई है। फिजी जैसे छोटे से देश से आईं शिक्षा विभाग की अधिकारी डा रोहिणी कुमार ने बताया कि फिजी में हिंदी के प्रति बहुत आदर है और छात्रों की इसे पढ़ने में रूचि भी बढ़ती जा रही है। उनकी इच्छा है कि हिंदी का प्रचार और ज्यादा किया जाए।
उनकी सहयोगी डा इंद्राणी ने बताया कि फिजी में चार वर्ष के पाठ्यक्रम में अन्य विषयों के साथ ही हिंदी भी पढ़ाई जाती है। कक्षा एक से आठ तक भारतीय मूल के छात्रों को अनिवार्य रूप से हिंदी पढ़ाई जा रही है,जबकि फिजी मूल के बच्चों को भी संपर्क भाषा के ज्ञान के लिए हिंदी पढ़ना दो वर्ष पूर्व अनिवार्य किया गया है। फिजी में छह रेडियो स्टेशन हैं,जहां हिंदी कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है।
स्वीडन की उपास्ला यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक हाइन्स वर्नर वेसलर ने बताया कि इस विवि के तहत स्वीडन में हिंदी पढ़ाई जा रही है, छात्रों की संख्या बहुत अधिक नहीं है, लेकिन इसमें धीरे-धीरे वृध्दि हो रही है। उनका कहना है कि गलत अनुवाद से हिंदी को नुकसान हो रहा है, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। यूरोपीय देशों में लोग हिंदी फिल्मों के भी शौकीन हैं, अलबत्ता यहां हिंदी फिल्में स्थानीय भाषा में डब होकर रिलीज हो रही हैं। वेसलर का कहना है कि यह विदेशी जुबान मैंने अपनी दिलचस्पी की वजह से सीखी है।
रूस की युवती मान्नो ने कहा कि उनकी भारत की संस्कृति में गहरी रूचि है, इसीलिए उन्होंने हिंदी सीखने का फैसला किया था, अब वे धाराप्रवाह हिंदी बोलती है और आसानी से समझती भी हैं। उनकी इच्छा है कि वे भारत को और करीब से जानें और समझें। दिल्ली के जेएनयू विवि से पीएचडी कर रही मान्नो के मुताबिक उन्हें कबीर और मीरा के भजन भी पसंद हैं तथा शाहरूख, सलमान की फिल्में भी पसंद हैं। विश्व हिंदी सम्मेलन में वे इसी मकसद से आई हैं कि दुनियाभर के हिंदी के जानकारों से मुलाकात हो सके।
शौक ले आया भोपाल
मध्य अफ्रीका से आए आदुम इदरीस ने बताया कि हिंदी जानने वालों को जोड़ने के लिए वे याराना एसोसिएशन भी चलाते हैं, इसकी सदस्य संख्या सौ से अधिक हो चुकी है। इदरीस ने कहा कि अरबी और हिंदी के बहुत से शब्द एक जैसे होने की वजह से उनकी हिंदी के प्रति रूचि जागी थी। यूगांडा के छात्र जीवा भी इस सम्मेलन में मौजूद थे,उन्हें हिंदी भलीभांति बोलना नहीं आती, लेकिन काफी हद तक वे समझ लेते हैं। उन्होंने कहा कि अनुभव और हिंदी की ताकत को महसूस करने के लिए वे यहां आए हैं। मॉरिशस की यताशा ने भी यही बात कही। जापान की एक युवती ने मुस्कुराते हुए कहा- मुझे हिंदी बहुत पसंद है,लेकिन अभी जल्दी में हूं, लौटकर आती हूं..।