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अति प्रदूषित वापी गुजरात चुनाव में नहीं बना मुद्दा

पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने वापी के अति प्रदूषित होने के चलते ही इसे मोस्ट क्रिटिकल श्रेणी में डाल दिया था।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Mon, 04 Dec 2017 08:09 PM (IST)Updated: Mon, 04 Dec 2017 08:09 PM (IST)
अति प्रदूषित वापी गुजरात चुनाव में नहीं बना मुद्दा
अति प्रदूषित वापी गुजरात चुनाव में नहीं बना मुद्दा

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, वापी। विश्र्व के अति प्रदूषित शहरों में शुमार होने के बावजूद विधानसभा चुनाव में वापी का प्रदूषण कोई मुद्दा नहीं है। खतरनाक रासायनिक उद्योगों के केंद्र के रुप में विकसित वापी औद्योगिक कस्बे के लोगों के साथ आसपास के तीन दर्जन से अधिक गांवों के लोगों की हालत खराब है। उद्योगों के विकास से लोगों की माली हालत में पर्याप्त सुधार तो हुआ, लेकिन स्वास्थ्य के मोर्चे पर उन्हें बहुत खामियाजा उठाना पड़ रहा है।

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पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने वापी के अति प्रदूषित होने के चलते ही इसे मोस्ट क्रिटिकल श्रेणी में डाल दिया था। इससे पिछले एक दशक तक यहां खतरनाक किस्म की औद्योगिक इकाइयां लगाने पर रोक लग गई थी। पर्यावरण जांचने वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने यहां के कॉमन ट्रीटमेंट प्लांट की खामियों की तरफ ध्यान दिलाया गया था। बिना ट्रीटमेंट के ही प्रदूषित जल दमन गंगा और कोलक नदी में डाला जा रहा है।

यहां से होक गुजरने वाली नदियों का पानी रंग बिरंगा होकर बहता है। इसके चलते लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। पानी में जीव जंतुओं की मात्रा नगण्य रह गई है। इससे चमड़ी के रोग और हवा में घुल रहे जहरीले रसायनों और गंभीर किस्म के धुएं के चलते अस्थमा जैसे रोगों से लोग बुरी तरह ग्रसित है। दमन गंगा सीधे समुद्र में गिरती है, जो बमुश्किल दस किमी है। अध्ययन करने वाली समिति की सिफारिशों में कहा गया था कि सामुदायिक ट्रीटमेंट संयंत्र से निकलने वाले पानी कम से कम दस किमी समुद्र के भीतर पाइप से डालना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।

दमन गंगा और कोलक नदियों के प्रदूषित पानी की वजह से तटीय समुद्र के पानी का रंग बदल गया है। अरब सागर के किनारे दमन के पास बसा यह औद्योगिक कस्बा तेजी से बढ़ा है, जिससे यहां आबादी की बेतरतीब बसावट भी बढ़ी है। यहां से निकलने वाला औद्योगिक कचरा सीधे समुद्र में पहुंचता है, जिसके चलते यहां के समुद्र का पानी भी गंदला हो गया है। तटीय क्षेत्रों में समुद्री जीव नहीं के बराबर ही हैं। मछुआरे समुद्र के कई किमी भीतर तक मछली नहीं पकड़ते हैं। यहां रहने वालों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है। समुद्रों में मछली से पकड़ कर गुजारा करने वाले नंद भाई टंडेल दु:खी मन से कहते हैं कि पहले 10 समुद्री मील तक मछली पकड़ने जाते थे और अब 20 समुद्री मील के आगे भी मछली पकड़ने में मशक्कत करनी पड़ती है। हजारों मछुआरों की रोजीरोटी पर असर पड़ा है। मछली की पैदावार भी डेढ़ सौ गुना कम हुई है। इसे कोई सुनने वाला नहीं है।

वापी म्यूनिसिपैलिटी के पूर्व अध्यक्ष हार्दिक भाई शाह कहते हैं 'यहां के भूजल में इतने घातक तत्व मिल चुके हैं कि ज्यादातर लोग यहां के बजाय कहीं रहना पसंद करते हैं, तभी तो यहां फ्लोटिंग आबादी गुजरात में सबसे अधिक यहीं है। फोर्ब्स पत्रिका ने वर्ष 2008 में लिखा, वापी का भूजल विश्र्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य मानक के मुकाबले 96 गुना अधिक प्रदूषित है, जबकि यहां के पानी में 60 गुना अधिक हैवी मेटल घुले हुए हैं। इसे पीने का मतलब बीमारियों को न्यौता देना है।वापी में वही कुल 1400 से अधिक औद्योगिक इकाइयां हैं, लेकिन इससे लगे हुए क्षेत्रों की इकाइयों को शामिल कर लिया जाये तो संख्या दोगुनी हो जाएगी।' क्ति्रटिकल श्रेणी के तीन दर्जन उद्योग क्लस्टर हैं। इनमें कीटनाशक, पिगमेंट्स, डाई इंटरमीडिएट, फाइन केमिकल्स व फार्मास्युटिकल्स आदि हैं।

शाह ने कहा कि पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के हस्तक्षेप से जहां 10 साल तक यहां खतरनाक किस्म की कोई इकाई नहीं लग सकी, लेकिन अब राज्य सरकार ने वापी क्ति्रटिकल कटेगरी ने बाहर कर दिया है तो उद्योगों का तेजी से विस्तार हो रहा है और नये उद्योग भी स्थापित हो रहे हैं। इससे विकास हो होगा ही, लेकिन पर्यारवण संरक्षण की दिशा में ध्यान नहीं दिया गया तो यही विनाश का रास्ता भी बन सकता है। पूरी दुनिया को वापी के पर्यावरण की चिंता है तो फिर इस पर गंभीरता क्यों नहीं बरती जा रही है?

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