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हाशिये पर राम मंदिर आंदोलन के हीरो

लखनऊ [अवनीश त्यागी]। अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन के नायक अब भारतीय जनता पार्टी में हाशिये पर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह व उमा भारती के साथ कलराज मिश्र व विनय कटियार जैसे दिग्गजों की संगठन में पहले जैसी धमक अब नहीं दिखती है। नरेंद्र मोदी इफेक्ट के चलते प्रदेश भाजपा में चली बदलाव की बयार में पुराने चेहरों की चमक फीकी

By Edited By: Published: Mon, 10 Feb 2014 12:10 PM (IST)Updated: Mon, 10 Feb 2014 12:12 PM (IST)
हाशिये पर राम मंदिर आंदोलन के हीरो

लखनऊ [अवनीश त्यागी]। अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन के नायक अब भारतीय जनता पार्टी में हाशिये पर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह व उमा भारती के साथ कलराज मिश्र व विनय कटियार जैसे दिग्गजों की संगठन में पहले जैसी धमक अब नहीं दिखती है। नरेंद्र मोदी इफेक्ट के चलते प्रदेश भाजपा में चली बदलाव की बयार में पुराने चेहरों की चमक फीकी नजर आ रही है।

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भाजपा को चरम पर ले जाने वाले राममंदिर आंदोलन के नायक पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह यं तो सभी विजय शंखनाद रैलियों में मौजूद रहें परन्तु उनकी मौजूदगी असरकारक नहीं दिखी। मंच पर मोदी के आने से पहले ही कल्याण सिंह का भाषण करा लिया जाता रहा। गोरखपुर में तो अफरातफरी के माहौल में कल्याण को बोलने का मौका भी नहीं मिल पाया।

कमोबेश ऐसी ही स्थिति फायर ब्रांड हिंदू नेता विनय कटियार की भी दिख रही है। मंच से तो कटियार बार-बार राममंदिर मुद्दे की याद दिलाते हैं परन्तु उनके समर्थन में इक्का-दुक्का नेता ही मोदी के मंच से बोलता है। कटियार पुराने अंदाज में बजरंगी की तरह से आग लगी पूंछ को पटकने का आह्वान युवाओं से करते हैं। मंदिर लहर के दौर में कल्याण सिंह के भरोसेमंद सहयोगी रहे कलराज मिश्र की संगठन में पहले जैसी बात नहीं रह गई। रैलियों के मंच पर उनकी उपस्थिति जरूर होती है परन्तु उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी नहीं मिल सकी है। कलराज के कार्यकर्ता कनेक्ट मिजाज का लाभ लेने की जरूरत नहीं समझी जा रही।

पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को पहले जैसी तव्वजो नहीं मिल पा रही है। यूं कहने के लिए उमा भारती के पास राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद का दायित्व है परन्तु संगठन में उनकी मौजूदगी का अहसास अब नहीं दिख रहा। केवल झांसी रैली के मंच पर उमा भारती नजर आईं, शेष रैलियों में उनका मौजूद न रहना चर्चा में भी रहा। उमा बुंदेलखंड की चरखारी विधानसभा सीट से विधायक हैं और यूपी में भाजपा को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई थी।

पूर्व सांसद राम विलास वेदांती की तूती मंदिर आंदोलन के बाद भी संगठन में खूब बोलती रही। भगवा बिग्रेड के ध्वजवाहक माने जाने वाले वेदांती को अब अपने लिए जीत की गारंटी वाले एक अदद लोकसभा क्षेत्र की तलाश है। वेदांती की तरह स्वामी चिंमयानंद भी संगठन के मुख्य परिदृश्य से बाहर ही दिखते हैं।

फेहरिस्त है काफी लंबी

पार्टी में हाशिये पर आए पुराने दिग्गजों की फेहरिस्त काफी लम्बी है। कभी प्रभावी पकड़ रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार, छत्रपाल, अशोक प्रधान, साक्षी महाराज, केसरीनाथ त्रिपाठी, श्रीराम चौहान, डा.रमापति शास्त्री, विंध्यवासिनी कुमार, हृदयनारायण दीक्षित, बालेश्वर त्यागी और श्यामनंदन सिंह जैसे पार्टी के चेहरे रहे नेताओं की उपयोगिता संगठन में अब समझी नहीं जा रही।

युवा तुर्क वरुण गांधी भी किनार

मंदिर आंदोलन के बाद भाजपा में युवा तुर्क की तरह तेजी से लोकप्रिय हुए वरुण गांधी को भी किनारे हैं। सात विजय शंखनाद रैलियों में वरुण गांधी की गैरहाजिरी के पार्टी के भीतर अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं।

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