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यहां 175 तरह की आयुर्वेदिक औषधियों की होती है खेती, शोध करने आते हैं दूर-दूर से लोग

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले की वारासिवनी तहसील के दीनी गांव में सेवानिवृत्त शिक्षक अमृतलाल उपवंशी का परिवार 175 तरह की औषधियों की देखरेख में जुटा रहता है। इस परिवार ने वैनगंगा नदी के किनारे 10 एकड़ के खेत की मेड़ पर इन औषधियों के पौधों को हरा-भरा रखा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 04 Oct 2020 08:47 PM (IST)Updated: Sun, 04 Oct 2020 08:47 PM (IST)
यहां 175 तरह की आयुर्वेदिक औषधियों की होती है खेती, शोध करने आते हैं दूर-दूर से लोग
आयुर्वेदिक औषधियों का दिखाते सेवानिवृत्त शिक्षक अमृतलाल उपवंशी।

गुनेश्वर सहारे, बालाघाट। आयुर्वेद पुराने समय से हमारे जीवन का आधार रहा है, इसे संजोने वाले भी देश के कोने-कोने में हैं। मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले की वारासिवनी तहसील के दीनी गांव में सेवानिवृत्त शिक्षक अमृतलाल उपवंशी का परिवार 175 तरह की औषधियों की देखरेख में जुटा रहता है। इस परिवार ने वैनगंगा नदी के किनारे अपने 10 एकड़ के खेत की मेड़ पर इन औषधियों के पौधों को हरा-भरा रखा है। इनमें से 17 औषधियां तो ऐसी हैं जो बहुत कम जगह ही पाई जाती हैं।

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ये औषधियां कई लाइलाज बीमारियों के इलाज में भी कारगर हैं। इन औषधीय पौधों को देखने और इनके संबंध में जानकारी लेने दिल्ली, मुंबई, नागपुर सहित देश के कई शहरों से जानकार यहां आते हैं। इनमें से कई यहां औषधीय पौधों को जीवित रखने का तरीका भी सीखते हैं। बाहर से आने वाले जानकार यहां से औषधियां ले भी जाते हैं। इसके लिए कोई शुल्क भी नहीं लिया जाता। 

कई जगहों पर नहीं मिल पाती हैं ये औषधियां

वनस्पति शास्त्र में एमएससी तक पढ़ाई कर चुके अमृतलाल उपवंशी बताते हैं कि आयुर्वेदिक औषधियों को संरक्षित करने की प्रेरणा योगगुर बाबा रामदेव से मिली। करीब 12 साल पहले खेत में बनी गोशाला परिसर में औषधीय पौधे लगाने शुरू किए। धीरे-धीरे गोशाला परिसर, फिर पूरे खेत की मेड़ पर औषधीय पौधे रोप दिए। अमृतलाल ने बताया कि औषधियों को सुखाने के बाद डिब्बों में उनकी पत्तियों को रखते हैं। उन्होंने बताया कि यहां ऐसी औषधियां कई जगहों पर नहीं मिल पाती हैं। इस कारण यहां बड़े-बड़े शहरों से भी लोग आते हैं। इन औषधियों में कई कंद वाली हैं, जो साल भर में उग जाती हैं। 

इन बीमारियों में ये औषधियां उपयोगी 

- देव कंद - कैंसर, ट्यूमर में काम आती है। 

- विदारी कंद - लकवा, साइटिका बीमारी में काम आती है।

- विष्णु कंद - ब्रेन ट्यूमर, कैंसर में उपयोगी।

- तेलिया कंद - कमजोरी, लकवा, चर्म रोग।

- स्वर्णपुष्पी - कमजोरी दूर करना, शरीर में घाव भरना।

- विष्णुकांता- बुद्धि को बढ़ाने में।

- अनंतमूल - मलेरिया, कफ, फेफड़े के रोग।

- सिंहपर्णी - किडनी, लिवर और पथरी को दूर करने। 

- विधारा - मांस जोड़ने, कमजोरी दूर करने व वात।

- पुनर्नवा - पीलिया, खून की कमी दूर करने।

- बच - मस्तिष्क रोग में काम आती है।

- कलियारी - शरीर में घाव भरने के काम आती है। 

- अमृता - निमोनिया, स्वाइन फ्लू, शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार।

बालाघाट के आयुष विभाग के अधिकारी शिवराम साकेत ने कहा,  औषधियों की खेती कोई भी करना चाहता है तो कर सकता है और उसे बेच सकता है। यदि उपवंशी परिवार ने औषधियों को बचाकर रखा है तो यह बहुत बढि़या काम है।


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