पैदा होते ही जिंदा दफनाई गईं गुलाबो सपेरा के साथ Her Circle ने मनाया अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर गुलाबो का संदेश लड़ने की भी हिम्मत देता है। वे कहती हैं आप कमजोर नहीं हैं। मुझे देखो। मैं लड़ी। मेरी मां ने मुझ पर विश्वास किया और मेरी जान बचाई। हमेशा मां ही होती है जो अपनी बेटी को मजबूत बनाती है।
नई दिल्ली, एजेंसी। दुनियाभर में हाल ही में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया गया और भारत में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि इस दौरान यहां नवरात्री चल रही है, जिसमें देवी दुर्गा की पूजा होती है और जब आप उनकी पूजा करते हैं, तो यह जरूरी है कि आप अपने जीवन में महिलाओं का सम्मान भी करें। भारत में बच्चियों के पक्ष में पिछले काफी समय से आवाजें उठी हैं, हालांकि, आज भी देश में कई ऐसी जगह हैं, जहां बेटियों को स्वीकार नहीं किया जाता। आज देश और दुनिया में जितना लड़के नाम कमा रहे हैं, उतना ही लड़कियां भी उच्च पदों पर हैं। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के इस विशेष अवसर को Her Circle ने एक ऐसी महिला के साथ मनाया, जिसे जन्म के बाद ही जमीन में जिंदा दफन कर दिया गया। कारण यह कि वह एक लड़की के रूप में जन्मी थीं। हालांकि, उन्होंने मौत पर जीत हासिल की और संघर्ष किया। कई चुनौतियों का सामना करते हुए अपने समुदाय में कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा को समाप्त किया।
बात यहां 51 वर्षीय कालबेलिया डांसर गुलाबो सपेरा की हो रही है। रिलायंस फाउंडेशन की एक पहल, हर सर्किल को नीता अंबानी द्वारा एक कंटेंट प्लेटफार्म के रूप में लान्च किया गया था। यहां उन महिलाओं की प्रेरक दास्तां बताई जाती है जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों/समुदायों में जीत हासिल करने के लिए सभी बाधाओं का सामना किया है।
हर सर्किल के साथ एक विशेष वीडियो साक्षात्कार में, वह (गुलाबो सपेरा) बताती हैं कि कैसे सपेरों के समुदाय में लड़कियों को उनके जन्म के ठीक बाद मार दिया जाता था, क्योंकि उन्हें एक बोझ माना जाता था और कैसे गुलाबो ने दुनिया भर में प्रशंसा हासिल की। उन्होंने कहा, 'अपने शिल्प के लिए पद्म श्री जीतने के बाद मुझे अपने समुदाय में कन्या भ्रूण हत्या की परंपरा को समाप्त करने का साहस मिला। मेरे समुदाय की लड़कियां आज शिक्षा प्राप्त कर रही हैं और अपने लिए अच्छा कर रही हैं। दुनियाभर में प्रशिक्षित कालबेलिया नर्तक हैं। हम अब पारंपरिक सपेरों का समाज नहीं हैं।'
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर गुलाबो का संदेश बहुत कुछ कहता है और लड़ने की भी हिम्मत देता है। वे कहती हैं, 'आप कमजोर नहीं हैं। मुझे देखो। मैं लड़ी। मेरी मां ने मुझ पर विश्वास किया और मेरी जान बचाई। हमेशा मां ही होती है जो अपनी बेटी को मजबूत बनाती है और प्रेरित करती है। प्रत्येक माता-पिता को इस तथ्य को समझना और स्वीकार करना चाहिए कि एक बच्ची बोझ नहीं है। उसे जीने दो, जीवन में अच्छा करो और वह तुम्हें गौरवान्वित करेगी।'
इस अवसर पर बोलते हुए, रिलायंस फाउंडेशन की चेयरपर्सन और हर सर्कल की संस्थापक, नीता मुकेश अंबानी ने कहा, 'मुझे महिलाओं को ऊपर और चमकते देखने से बड़ी खुशी और कुछ नहीं हो सकती है! अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर, मेरी इच्छा है कि सभी युवा लड़कियों को आकाश के नीचे उनका सही स्थान मिले। हमें उन्हें प्रकृति की शक्ति बनने के लिए सशक्त बनाना चाहिए, जिसके लिए वे पैदा हुई हैं, मुझे खुशी है कि छह महीने की छोटी सी अवधि में, हर सर्कल ने भाईचारे और एकजुटता का एक समान और समावेशी डिजिटल आंदोलन बनाया है। उसका सर्किल महिलाओं के लिए कनेक्ट होने, उनकी कहानियों को बताने और वास्तव में सुने जाने का स्थान है, महिलाएं और बच्चे, खासकर छोटी लड़कियां, रिलायंस फाउंडेशन में हमारे सभी कामों के केंद्र में रही हैं। हमारे कार्यक्रम पूरे भारत में फैले हुए हैं। हम दूर-दराज की महिलाओं के साथ काम करते हैं - उनके सपनों को पूरा करते हैं और उनकी सफलता को सक्षम करते हैं।'
बता दें कि हर साल अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस को एक अच्छा व समान भविष्य की राह तलाशने को मनाया जाता है। भारत के कई हिस्सों में अभी भी कन्या भ्रूण हत्या और बाल विवाह जैसी प्रथाएं प्रचलित हैं।
कैसे जीती जंग?
एक समय ऐसा भी था जब राजस्थान के कई हिस्सों में बेटियों के पैदा होने को अभिशाप माना जाता था। तीन भाई और तीन बहनों के बाद परिवार में पैदा हुई बेटी राजस्थान की प्रसिद्ध कालबेलिया कलाकार पद्मश्री गुलाबो सपेरा हैं। समाज के लोगों ने उसे जिंदा दफना दिया। मां ने कहा कि मुझे दिखाओ तो कि मर गई या जिंदा है, बाहर निकाला तो महसूस हुआ अभी धड़कन चल रही है। फिर मां बच्ची को घर ले आई।
शुरू हुआ आगे बढ़ने का काम
गुलाबो बताती हैं, पिता की बीन पर सांप नाचते थे। सांपों को नाचते देख मैंने भी थिरकना शुरू कर दिया। सांपों का झूठा दूध पीकर बड़ी हुई। सात साल की थी जब समाज के लोगों से छिपकर पुष्कर मेला में डांस करने गई थी, तब संस्कृति विभाग के लोगों ने मुझे नृत्य करते देखा और बोले- ये तो रबड़ की गुड़िया है।
इसी बीच सरकारी कार्यक्रम के लिए मुझे जयपुर जाने का मौका मिल रहा था, पर समाज के लोगों के डर से पिता ने मना कर दिया। मैं भाई के साथ मिलकर रात के एक बजे अजमेर से जयपुर आ गई। जयपुर में ही रहकर प्रोग्राम करना शुरू किया। फिर जयपुर के लोग परेशान करने लगे। बोलते- ये कौन है, कहां से आई है? हमारे यहां लड़कियां डांस नहीं करतीं तो मैं उन्हें कहती- मैं तो अजमेर की हूं। जयपुर जाती तो खुद को अजमेर का बताती और अजमेर जाती तो जयपुर का परिचय देती।
पद्मश्री भी मिला
गुलाबो बताती हैं, 1985 में भारत सरकार की ओर से भारत महोत्सव में अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला। अमेरिका जाने से एक दिन पहले ही पिता का देहांत हो गया, पर मैंने कहा- पिता हमेशा मेरे लिए लड़ते रहे, मैं उनके लिए अमेरिका जाऊंगी। इसके बाद से कालबेलिया नृत्य विश्व विख्यात हुआ। पद्मश्री भी मिला और कालबेलिया डांस यूनेस्को में भी शामिल हो गया।
बदला समाज
अमेरिका जाने के बाद गुलाबो की प्रतिभा विश्वविख्यात हुई। साथ ही समाज को भी एक अलग पहचान मिली। गुलाबो बताती हैं, इसके बाद से समाज के लोगों ने मुझे अपनाना शुरू किया।