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दक्षिण भारत में बढ़ती जा रही है भारी बारिश और बाढ़ की आशंका! वैज्ञानिकों ने चेताया

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अध्ययन में सचेत किया गया है। इसके तहत 27 अत्याधुनिक जलवायु मॉडल का अध्ययन किया गया और भविष्य के उस परिदृश्य को लेकर उष्णकटिबंधीय वर्षा पट्टी की प्रतिक्रिया को मापा गया जिसमें सदी के अंत तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Wed, 10 Feb 2021 09:59 AM (IST)Updated: Wed, 10 Feb 2021 10:00 AM (IST)
दक्षिण भारत में बढ़ती जा रही है भारी बारिश और बाढ़ की आशंका! वैज्ञानिकों ने चेताया
हिंद महासागर के ऊपर उष्णकटिबंधीय वर्षा पट्टी के स्थानांतरित होने से दक्षिण भारत में बाढ़ की तीव्रता बढ़ सकती है।

नई दिल्ली, जेएनएन। भविष्य में जलवायु परिवर्तन से उष्णकटिबंधीय वर्षा पट्टी (पृथ्वी की भूमध्य रेखा के पास भारी वर्षा की एक संकीर्ण पट्टी) के असमान स्थानांतरण से भारत के कई हिस्सों में बाढ़ आने का सिलसिला बढ़ने की आशंका है। पत्रिका नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अध्ययन में इस बात को लेकर सचेत किया गया है। इसके तहत 27 अत्याधुनिक जलवायु मॉडल का अध्ययन किया गया और भविष्य के उस परिदृश्य को लेकर उष्णकटिबंधीय वर्षा पट्टी की प्रतिक्रिया को मापा गया, जिसमें वर्तमान सदी के अंत तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है। इस अध्ययन के अनुसार, पूर्वी अफ्रीका और हिंद महासागर के ऊपर उष्णकटिबंधीय वर्षा पट्टी के उत्तर की ओर स्थानांतरित होने से दक्षिण भारत में बाढ़ की तीव्रता बढ़ सकती है और इससे 2100 तक वैश्विक जैव विविधता और खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।

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अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया (यूसी) के वैज्ञानिक इस अध्ययन में शामिल थे। उन्होंने कहा कि वर्षा पट्टी में यह बड़ा बदलाव जलवायु परिवर्तन के वैश्विक असर संबंधी पहले के अध्ययनों में सामने नहीं आया था। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण एशिया और उत्तर अटलांटिक महासागर में तापमान बढ़ा है। इस ताजा अध्ययन के तहत पूर्वी और पश्चिमी गोलार्ध क्षेत्र में प्रतिक्रिया को अलग-अलग करके भारत में आगामी दशकों में आने वाले बड़े बदलावों को रेखांकित किया गया है। अध्ययन के सह-लेखक एवं यूसी इरविन के वैज्ञानिक जेम्स रैंडरसन ने कहा कि एरोसोल उत्सर्जन में अनुमानित कमी, हिमालयी क्षेत्र में हिमनदी के पिघलने और जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तरी क्षेत्रों में बर्फ का आवरण हटने से एशिया में अन्य क्षेत्रों के मुकाबले अधिक तेजी से तापमान बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि इस गर्मी के कारण वर्षा पट्टी का स्थानांतरण और पूर्वी गोलार्ध में उत्तर की ओर इसकी गतिविधि जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों के अनुरूप है।

एरोसोल

सूक्ष्म ठोस कणों अथवा तरल बूंदों के हवा या किसी अन्य गैस में कोलाइड को एरोसोल कहा जाता है। एरोसोल प्राकृतिक या मानव जनित हो सकते हैं। हवा में उपस्थित एरोसोल को वायुमंडलीय एरोसोल कहा जाता है। धुंध, धूल, वायुमंडलीय प्रदूषक कण तथा धुआं एरोसोल के उदाहरण हैं। सामान्य बातचीत में, एरोसोल फुहार को संदर्भित करता है, जो कि एक डब्बे या सदृश पात्र में उपभोक्ता उत्पाद के रूप में वितरित किया जाता है। तरल या ठोस कणों का व्यास 1 माइक्रोन या उससे भी छोटा होता है। बीते कुछ सालों में शोधकर्ताओं ने अब इस बात पर भी जोर देना शुरू किया है कि वाहनों के धुएं से, अधजले फसल अवशेषों से तथा धूल और रासायनिक अपशिष्ट से निकलने वाला एरोसोल जीवनदायी बरसात के मौसम को और भी अधिक कमज़ोर कर रहा है। 


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