सारकेगुड़ा फर्जी मुठभेड़ पर गर्माया माहौल, थाने के सामने सत्याग्रह पर बैठे आदिवासी ग्रामीण
शुक्रवार की सुबह ग्रामीण एकजुट होकर बासागुड़ा थाने पहुंचे लेकिन यहां एफआईआर दर्ज न होने पर ग्रामीण सत्याग्रह पर बैठ गए।
जगदलपुर, जेएनएन। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिला स्थित सारकेगुड़ा में साल 2012 में नक्सलियों के नाम पर सुरक्षा बलों द्वारा निर्दोष ग्रामीणों को मारे जाने की घटना को लेकर आदिवासी व सामाजिक संगठन लामबंद हो गए हैं। नरसंहार में मारे गए ग्रामीणों को न्याय और दोषी सुरक्षा कर्मियों को सजा दिए जाने की मांग को लेकर शुक्रवार को बासागुड़ा थाने के सामने आदिवासी ग्रामीण सत्याग्रह पर बैठ गए।
इसी के साथ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों की टीम भी सारकेगुड़ा पहुंच गई है। गुरुवार देर शाम वकीलों ने सारकेगुड़ा के पीड़ितों से चर्चा की थी और उन्हें थाने में एफआइआर कराने के लिए तैयार किया था। इसके बाद शुक्रवार की सुबह ग्रामीण एकजुट होकर बासागुड़ा थाने पहुंचे, लेकिन यहां एफआईआर दर्ज न होने पर ग्रामीण सत्याग्रह पर बैठ गए।
विभिन्न धाराओं में केस दर्ज करने के लिए दिया था आवेदन
दिल्ली से पहुंचे मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने दैनिक जागरण के सहयोगी प्रकाशन नईदुनिया से कहा कि इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, आइजी इंटेलिजेंस मुकेश गुप्ता, सीआरपीएफ व पुलिस के अफसरों समेत वारदात में शामिल जवानों के खिलाफ हत्या, साक्ष्य मिटाने और फर्जी आरोप गढ़ने की विभिन्न् धाराओं में केस दर्ज करने के लिए आवेदन दिया गया था, जिसे एसडीओपी विनोद मिंज ने लेने से इंकार कर दिया। आवेदन पढ़ने के बाद एसडीओपी विनोद मिंज ने कहा 2012 में हुई वह घटना दुखद है।
न्यायिक आयोग ने रिपोर्ट दी है जो सरकार के पास है। रिपोर्ट को विधानसभा में रखा गया है। इस मामले में करवाई की मांग को लेकर विधायकगण राज्यपाल के पास भी गए थे। यह शासन स्तर का मामला है। वहीं से निर्णय होगा। ऊपर से निर्देश आएगा तो ही हम एफआईआर कर पाएंगे।
एसडीओपी की इस बात से असंतुष्ट ग्रामीण थाने के सामने ही तत्काल एफआईआर की मांग को लेकर धरने पर बैठ गए। इस मामले में लड़ाई लड़ रही कमला काका ने कहा कि हम सत्याग्रह के रूप में इस लड़ाई को लड़ेगे। इस पूरी घटना के गवाह गांव के ग्रामीण हैं, जो अपने मारे गए परिजनों को न्याय दिलाने के लिए पूरी तरह संकल्पित हैं।
यह है मामला
28 जून 2012 को बीजापुर व बासागुड़ा से निकले कोबरा बटालियन व सीआरपीएफ जवानों ने सारकेगुड़ा गांव में ग्रामीणों पर गोलियां चलाईं जिसमें 17 ग्रामीण मारे गए। मृतकों में आठ स्कूली बच्चे भी शामिल थे। ग्रामीण फर्जी मुठभेड़ की जांच की मांग लेकर मानवाधिकार आयोग तक पहुंचे। तब विपक्ष में रही कांग्रेस ने मुद्दे को आगे बढ़ाया। भाजपा सरकार ने न्यायिक आयोग का गठन किया। आयोग की रिपोर्ट में मुठभेड़ को फर्जी बताया गया है। मीडिया में रिपोर्ट लीक होने के बाद बवाल मचा हुआ है। रिपोर्ट विधानसभा में भी पेश की जा चुकी है।